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Ram shiromani pathak's Blog – December 2014 Archive (5)

उनको अपने पास लिखूँ क्या?

उनको अपने पास लिखूँ क्या?
वो मेरे हैं ख़ास लिखूँ क्या?

तारीफ़ बहुत कर दी उनकी।
अपना भी उपहास लिखूँ क्या?

संत नहीं वह व्यभिचारी है।
उसका भी सन्यास लिखूँ क्या?

जिसने मेरा सबकुछ लूटा।
उसपे है विश्वास लिखूँ क्या?

जिसकी कोई नहीं कहानी।
उसका भी इतिहास लिखुँ क्या?

बूँद बूँद को तरसा है जो।
उससे पूँछो प्यास लिखुँ क्या?
************************
वज़्न_22 22 22 22
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 5:17pm — 19 Comments

शब ही नहीं सहर भी तू है।

22 22 22 22
शब ही नहीं सहर भी तू है।
मेरी ग़ज़ल बहर भी तू है।।

मेरे ज़ख्मों पे यूँ लगती।
मरहम साथ असर भी तू है।।

बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।

जीवन के हर पथ में मेरे।
मंजिल और सफ़र भी तू है।।

शाहिल तक पहुचाने वाली।
मेरी वही लहर भी तू है।।
**********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on December 28, 2014 at 4:00pm — 18 Comments

मैंने ऐसा मंज़र देखा

मैंने ऐसा मंज़र देखा।
बहती आँख समंदर देखा।।

मुझको अपना कहता था जो।
उसके हाथों खंजर देखा।।

मुखड़ा देखा जबसे उनका।
तबसे चाँद न अम्बर देखा।।

शायद कुछ तो दिख ही जाये।
मैंने खुद के अंदर देखा।

दूर दूर तक हरियाली थी।
धरती अब वो बंज़र देखा।।
**********************
राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 1:00pm — 24 Comments

फूल नहीं तो पत्थर कह दो

फूल नहीं तो पत्थर कह दो।
दो बातें पर हंसकर कह दो ।।

आज मुकम्मल कर दो ऐसे ।
एक दफे बस दिलबर कह दो ।।

साथ चलूँगा मरते दम तक।
मुझको अपना रहबर कह दो।।

माँ बाबा की बात सुने सब।
ऐसा सपनों में घर कह दो ।।

ऊँच नीच सम भाव रहा जो।
उसको भी तो बेहतर  कह दो।।

सदियों तक सुनने में आये। 
एक ग़ज़ल बस जमकर कह दो।।
*******************
राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on December 25, 2014 at 5:30pm — 30 Comments

दोहे 19(खिचड़ी)

जब से देखा है उन्हें'रहा न खुद का ज्ञान।

जादूगरनी या कहूँ'मद से भरी दुकान।।1 

दुख की रजनी जब गयी'सुख का हुआ प्रभात।

तरुअर देखो झूमते'नाच रहे हैं पात।।2

उपवन में ले आ गयीं'अनुपम एक सुगंध।

मन भँवरे ने कर लिया'जीने का अनुबंध।।3

मन उपवन में बस गया'उनका उजला चित्र।

बाकी सब धुँधला दिखे'अब तो मुझको मित्र।।4

नीति नियम हों साथ में'नेह भरा लघु कोष।

हिय उपवन में तब रहे'परम शांति संतोष।।5

मानवता…

Continue

Added by ram shiromani pathak on December 1, 2014 at 9:00pm — 20 Comments

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