हार गया समय ... !
कि जैसे अतिशय चिन्ता के कारण
आसमान काँपा
आज कुछ ज़्यादा अकेला
थपथपा रहा हूँ
कोई भीतरी सोच और
अनुभवों की द्दुतिमान मंणियाँ ...
तुम्हारी स्मृतिओं की सलवटों के बीच
मेरे स्नेह का रंग नहीं बदला
हार गया समय
समझौता करते ...
एकान्त-प्रिय निजी कोने में
दम घुटती हवा
अँधेरे का फैलाव, उस पर
कल्पना का नन्हा-सा आकाश
टंके हुए हैं वहाँ…
ContinueAdded by vijay nikore on December 31, 2013 at 1:00pm — 32 Comments
प्राण-समस्या
सहारा युगानयुग से
फूलों को बेल का, पाँखुरी को फूल का
पत्तों को टहनी का
अब मुझको .... तुम्हारा
बहुत था
बाहों को साँसो के लिए ....
कुछ भी तो नहीं माँगा था
तुमने मुझसे
न मैंने तुमसे .... इस पर भी
स्नेह का अनन्त विस्तार
अभी भी बिछा है बिना तुम्हारे
बारिश की बूँदों में बारिश के बाद
आँगन की सोंधी मिट्टी में
कि जैसे .... तुम आ गए
हर खुला-अधखुला…
ContinueAdded by vijay nikore on December 16, 2013 at 7:00am — 20 Comments
अमृता प्रीतम जी और ईश्वर
कई लोग जो अमृता प्रीतम जी की रचनाओं से प्रभावित हैं अथवा उनके जीवन से परिचित हैं, उनकी मान्यता है कि अमृता जी विधाता में विश्वास नहीं करती थीं। इस कथन में वह ठीक हैं भी और नहीं भी। यह इसलिए कि अमृता जी का लेखक-जीवन इतना लम्बा था कि यह मान्यता इस पर निर्भर है कि वह कब किस पड़ाव में से गुज़रीं, और उनकी उस पड़ाव के दोरान की रचनाएँ क्या इंगित करती हैं।
अमृता जी की रचनाओं के लिए असीम श्रद्धा के नाते और जीवन को उनके समान असीम…
ContinueAdded by vijay nikore on December 11, 2013 at 5:30pm — 18 Comments
वह भीगा आँचल
धूप
कल नहीं तो परसों, शायद
फिर आ जाएगी
अलगनी पर लटक रहे कपड़ों की सारी
भीगी सलवटें भी शायद सूख ही जाएँगी
पर तुम्हारा भीगा आँचल
और तुम अकेले में ...
उफ़ ...
तुमने न सही कुछ न कहा
थरथराते मौन ने कहा तो था
यह बर्फ़ीला फ़ैसला
दर्दीला
तुम्हारा न था
फिर क्यूँ तुम्हारी सुबकती कसक
कबूल कर जाती है…
ContinueAdded by vijay nikore on December 10, 2013 at 9:00am — 31 Comments
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