दोहा पंचक. . . . यथार्थ
मन मंथन करता रहा, पाया नहीं जवाब ।
दाता तूने सृष्टि की, कैसी लिखी किताब।।
आदि - अन्त की जगत पर, सुख - दुख करते रास ।
मिटने तक मिटती नहीं, भौतिक सुख की प्यास ।।
जीवन जल का बुलबुला, पल भर में मिट जाय ।
इससे बचने का नहीं, मिलता कभी उपाय ।।
साँसों के अस्तित्व का, सुलझा नहीं सवाल ।
दस्तक दे आता नहीं, क्रूर नियति का काल ।।
साम दाम दण्ड भेद सब, कितने करो प्रपंच ।
निश्चित तुमको छोड़ना, होगा जग का मंच…
Added by Sushil Sarna on December 10, 2024 at 1:39pm — 4 Comments
कहते गीता श्लोक में, स्वयं कृष्ण भगवान।
मार्गशीर्ष हूँ मास मैं, सबसे उत्तम जान।1।
ब्रह्मसरोवर तीर पर, सजता संगम सार।
बरसे गीता ज्ञान की, मार्गशीर्ष में धार।2।
पावन अगहन मास में, करके यमुना स्नान।
अन्न वस्त्र के दान से, खुश होते भगवान।3।
चुपके - चुपके सर्द ले, मार्गशीर्ष की ओट।
स्वर्णकार ज्यों मारता, धीमी - धीमी चोट।4।
साइबेरियन सर्द में, खग करते परवास।
भारत भू पर शरण लें, मार्गशीर्ष में…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 9, 2024 at 8:30pm — 1 Comment
माँ के आँचल में छुप जाते
हम सुनकर डाँट कभी जिनकी।
नव उमंग भर जाती मन में
चुपके से उनकी वह थपकी ।
उस पल जाना ‘प्रेम पिता का’
कितनी…
ContinueAdded by Dharmendra Kumar Yadav on December 7, 2024 at 1:55pm — 1 Comment
वह दरदरी दरी का रंगीन झोला
डाकिए की तरह कंधे पर लटका कर
हाथ में लकड़ी की तख्ती लेकर
विद्यालय जाना
पुरानी काली कूई पर
तख्ती पोंछकर मुल्तानी मिट्टी मलना
धूप में सुखाकर सुलेख लिखना
और वाहवाही लूटना
मेरे सुखद अनुभव जिनसे
अगली पीढ़ियाँ अनभिज्ञ रहेंगी।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 4, 2024 at 2:00pm — 3 Comments
दोहा पंचक. . . कागज
कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।
तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।
कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।
कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।
कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।
रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।
कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।
हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।
कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।
कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 3, 2024 at 8:57pm — 2 Comments
कुंडलिया. . . .
मीरा को गिरधर मिले, मिले रमा को श्याम ।
संग सूर को ले चले, माधव अपने धाम ।
माधव अपने धाम , भक्ति की अद्भुत माया ।
हर मुश्किल में साथ, श्याम की चलती छाया ।
भजें हरी का नाम , साथ में बजे मँजीरा ।
भक्ति भाव में डूब, रास फिर करती मीरा ।
सुशील सरना / 1-12-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 1, 2024 at 9:10pm — 2 Comments
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