For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Shashi bansal goyal's Blog (21)

विकल्प ( लघुकथा )

कुछ क्षण ही बीते होंगे उस कोहराम को मचे।इला की दृष्टि घड़ी पर गई।ऑफिस का समय हो रहा था।रोज की ही कहानी है सोच उसने अपने आँसू पौंछे और तुरन्त रसोई में पहुँच लंच' तैयार कर दफ़्तर को निकल गई।दिनभर मन उचाट ही रहा।शाम को लौटते हुए उसके कदम मायके की ओर मुड़ गये।

" अरे इला बेटी ! कैसी है ? आ भीतर आ ..."

" ठीक हूँ माँ।"इला ने एक ओर पर्स पटका और धम्म से सोफ़े पर बैठ गई।

" आज फिर हाथ उठाया कमल ने ?" इला अक़्सर तभी आती,जब उसका कमल से झगड़ा होता।ये बात इला की माँ बहुत अच्छे से जानती थी… Continue

Added by shashi bansal goyal on October 8, 2017 at 10:39pm — 4 Comments

अपनी जिम्मेदारी तय करें ( आलेख - हिन्दी दिवस विशेष )

चौदह सितम्बर आते ही सरकारी संस्थानों , विद्यालयों आदि में हिन्दी भाषा की यूँ याद आने लगती है , जैसे सावन महीना लगते ही मायके वालों को बेटी को बुलाने की आती है । उसकी खातिरदारी में जैसे तरह तरह की योजनाएँ बनती हैं , ठीक वैसे ही हिन्दी भाषा पखवाड़े को लेकर शुरू हो जाती हैं । जैसे पंद्रह दिन बीते नहीं कि बेटी की विदा की चिंता सताने लगती है, वैसे ही पखवाड़ा निपटते ही हिन्दी भाषा को एक कोने में पटक वही पुराना ढर्रा चलने लगता है ।

 

चौदह सितम्बर हिन्दी दिवस , दिवसों की श्रृंखला में एक ओर दिवस… Continue

Added by shashi bansal goyal on September 13, 2016 at 5:18pm — 4 Comments

पुरस्कार ( लघुकथा )// शशि बंसल

चिर प्रतीक्षित पत्रिका का अंक हाथ में आते ही कुसुम ने जल्दी-जल्दी पन्ने पलटने शुरू कर दिए । उसकी दृष्टि विशेष पृष्ठ पर जाकर ठहर गईं । हर्षातिरेक से दौड़कर पापा के पास पहुँची।" पापा , आज मैंने आपका सिर गर्व से ऊँचा कर दिया ।ये देखिये इस प्रतिष्ठित पत्रिका द्वारा आयोजित आलेख प्रतियोगिता में मुझे प्रथम पुरस्कार मिला है और आप हो कि सदा ही मुझे लिखने - पढ़ने से डाँटते रहते हैं । ये तो मम्मी है जो मुझे सदैव प्रोत्साहित करती हैं और लिखने में सहायता करतीं हैं ।"



उन्होंने कुसुम के हाथों से… Continue

Added by shashi bansal goyal on October 5, 2015 at 8:44pm — 7 Comments

अंतहीन अवकाश ( लघुकथा )//शशि बंसल

अंतहीन अवकाश ( लघुकथा )//शशि बंसल

=============================



मुसलाधार बारिश होने के कारण आज अस्पताल से अवकाश ले घर पर ही थी ।काम से फ़ारिग़ हुई तो खिड़की पर आ बैठी ।नीचे झाँका , गली में ज्यादा रौनक नहीं दिखाई दी ।दो-तीन स्कूली बच्चे थे , जो सड़क पर भरे हुए पानी में उछल-कूद करते हुए हँस रहे थे । सामने की दुकानों ने भी ग्राहकी न होते देख आधे शटर गिरा दिए थे । कुछ रिक्शेवाले रिक्शे खाली छोड़ सामने गुमटी पर गरम - गरम चाय की सुड़कियाँ लगा रहे थे । तभी एक रिक्शा गाड़ी आते हुए दिखाई दी, '… Continue

Added by shashi bansal goyal on October 3, 2015 at 5:56pm — 6 Comments

भाव ( लघुकथा ) // शशि बंसल

" सुनिए , परसों से श्राद्ध शुरू हो रहे हैं । पड़ोस वाली चाची जी कह रही थीं , बहू घर में सुख शांति चाहिए हो तो , सोलह दिन पितरों की खूब सेवा कर । अब मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि जो हैं ही नहीं , उनकी सेवा कैसी ?



" शरीर तो ईश्वर का भी नहीं है । फिर कौन सा तुम्हे हाथ पाँव दबाना है या दवा - दारू करनी है । परम्परा अनुसार कुछ स्वादिष्ट पकवान बनाना , हाथ जोड़ना और खाना - खिलाना ,बहुत हुआ तो चार रिश्तेदार भी बुला भेजना । इस बहाने थोड़ी जय - जयकार भी हो जायेगी तुम्हारी । बस हो गया श्राद्ध ।वो तो… Continue

Added by shashi bansal goyal on September 23, 2015 at 7:13pm — 5 Comments

करें सेवा हिन्दी की // शशि बंसल

करें सेवा हिन्दी की

==================

१४ सितम्बर का दिन यानि हिन्दी दिवस के नाम। हिन्दी यानि भारतीयों की राष्ट्र - भाषा , बहुतों की मातृभाषा। समझ नहीं आता गर्व करूँ या शर्मिंदा होऊँ ? अपनी ही भाषा के लिए एक दिवस औपचारिक रूप से निर्वाह कर, एक परम्परा भर निभाकर ...... । संसार में भारत ही ऐसा देश है , जहाँ अपनी राष्ट्र-भाषा को बताने के लिए , जताने के लिए, मानने के लिए दिवस मनाया जाता है। जोर-शोर से गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं , विद्यालयीन स्तर पर अनेक प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती…

Continue

Added by shashi bansal goyal on September 13, 2015 at 7:00pm — 12 Comments

हैसियत ( लघुकथा )

दफ़्तर के गेट के बाहर अपनी स्कूटी निकाल ही रही थी कि एक बूढ़ी भिखारिन ने अपना भीख का कटोरा उसके आगे कर दिया ।वह उसे देखते ही पहचान गई , क्योंकि उसके मौहल्ले में भी अक़्सर वह भीख माँगा करती थी । उसने  चिल्लर कटोरे में डाल कुछ अनुमानते हुए चोर नज़रें उसके पैरों पर टिका दीं ।  



" ये क्या ? फिर नंगे पैर ? वो चप्पल कहाँ हैं , जो परसों ही मैंने पहनने को दी थीं ?



" घर रख दी बाईजी । उसी रोज़ कहा था , पैसा-लत्ता दे दो बस । पर आप मानी ही नहीं । "



" एक तो तुम्हारे बुढ़ापे पे तरस… Continue

Added by shashi bansal goyal on August 26, 2015 at 10:52pm — 19 Comments

बस और नहीं .. ( लघुकथा )

कुछ काम से कमरे में आई तो देखा , उसका पति सूटकेस में कपड़े जमा रहा था , हैरान हो उसने पूछा ," कहीं बाहर जा रहे हैं ? मुझे कुछ बताया भी नहीं ? यूँ अचानक .. आखिर बात क्या है ? "

" ....................... "

"मैं कुछ पूछ रही हूँ , जवाब क्यों नहीं देते । "

"तुम्हें नहीं लगता संगीता तुमने कुछ पूछने में बहुत देर कर दी । "

"देखो, बच्चों के खाने का समय हो रहा है । फिर मिन्नी की अधूरी पड़ी नई ड्रेस भी सिलना है और बेटू कह रहा था , उसके सिर में दर्द है तो मालिश भी करनी है I सो अभी मेरे…

Continue

Added by shashi bansal goyal on August 18, 2015 at 6:00pm — 11 Comments

चुभन ( लघुकथा )

" ये कैसा बकवास प्रोजेक्ट तैयार किया है । छोड़ो , तुमसे न होगा ।अब सुरेखा ही इस प्रोजेक्ट पर काम करेगी । " कहते हुए प्रोजेक्ट की ' हार्ड कॉपी 'अनीता के बॉस ने अपने पास रख ली ।
आज सुरेखा को उस प्रोजेक्ट को प्रजेंट करना था । प्रोजेक्टर पर प्रजेंटेशन चल रहा था , अनीता विस्मित हो मामूली हेर-फेर से अपने ही प्रोजेक्ट पर तालियों की चुभन महसूस कर रही थी ।सहसा उसकी नज़रें बॉस की ओर घूम गईं , जो शरारती अंदाज़ में कह रही थीं , " और झटको मेरा हाथ ।"

मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on July 26, 2015 at 10:31pm — 8 Comments

जैसा बीज़ वैसी फ़सल ( लघुकथा )

"जानती है ? नया मेहमान आने वाला है सुनकर, माँ-बाबूजी कितने खुश हैं । "

"और आप ? "

" हाँ , माँ कह रही थीं , बड़ी भाभी की दोनों संतानें लड़कियाँ हैं, इसलिए बहू से कहना कि वह सिर्फ़ बेटा ही जने । "

"आपने क्या कहा ? '

"कहना क्या ? मैं माँ से अलग थोड़े हूँ , और तू भी माँ की इच्छा के विरूद्ध तो जाने से रही ।"

"सो तो है , पर माँ जी की इच्छा पूरी हो , उसकी जवाबदेही आपके ही हाथों में है । "

"मेरे हाथों में ? पागल हो गई है क्या ? '

"लो भई ! साइंस ग्रेजुएट हो । इतना भी नहीं…

Continue

Added by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 7:30pm — 19 Comments

फ़र्क ( लघुकथा )

"हम फलों से जरा लदे नहीं , हर राह चलता पत्थर फेंकना शुरू कर देता है । सिर्फ इसीलिए क्योंकि हम राह पर अनाथों के तरह फल-फूले हैं ।"

"हाँ भाई ! ठीक कहते हो । यदि  हम भी किसी बाग़ की शोभा होते तो नाज़ों से पलते , ठाठ से रहते । पत्थर की कोई छुअन हम तक नहीं पहुँच पाती ।"

"अजीब विडम्बना है , परवरिश गुलशन में मिले तो कीमत लाखों की , सरे राह क्या जन्मे ,आँख का कांटा हो गए ।"

"हूँ...। गोया कि बाग़ से इतर हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं । "

युवा पेड़ों के वार्तालाप को सुन पास खड़ा बूढ़ा वृक्ष बोल…

Continue

Added by shashi bansal goyal on July 21, 2015 at 8:30pm — 10 Comments

गाँठ ( लघुकथा )

" नीरू ! क्या हमारे दाम्पत्य में इतनी दूरी आ गई है , कि अब तुम्हे तस्वीरों में भी मेरा साथ गवारा नहीं ? "

" हम साथ थे ही कब ? बस कोरा भ्रम था । "

" हमारे बच्चे ...? क्या इन्हें भी भ्रम कहोगी ? "

" नहीं ...। तब मुझे हमारे बीच तीसरे की उपस्थिति का भान नहीं था । "

" लौट भी तो आया हूँ , चाहो तो गाँठ बाँध के रख लो , ताकि फिर कभी ...।"

" गाँठ तो तब भी बाँधी गई थी न , जब हमने सप्तपदी ली थी ? "

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on July 18, 2015 at 4:23pm — 3 Comments

प्रेयसी ( लघुकथा )

" ओफ्फो... ये बारिश भी न , एन दफ़्तर जाने के समय ही शुरू होती है ,पता नहीं क्या बैर है मुझसे । आज इतनी जरूरी मीटिंग है कि , अवकाश भी नहीं ले सकती ।" दीपा बड़बड़ाती बालकनी में खड़ी वर्षा रुकने की प्रतीक्षा करने लगी ।



तभी अंदर से लिखने में व्यस्त पति महोदय का आदेशात्मक स्वर कानों से टकराया , " दीपा ! समय है , तो एक प्याला चाय ही बना दो ।"



" जी ! बना देती हूँ ।" कह , मन ही मन बड़बड़ाते हुए रसोई में चली गई ।" बस जब देखो अपनी पड़ी रहती है , ये नहीं खुद गाड़ी से छोड़ आते । पर नहीं ।साहब… Continue

Added by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:29pm — 10 Comments

लाठी (लघुकथा )

" पिताजी , मुझे प्रोन्नत कर आप ही के दफ़्तर में स्थानांतरित कर दिया गया है ।निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ , बेटे या बॉस की भूमिका में किसे चुनूँ ? "
" 'अफकोर्स !' बॉस की ।रहा तुम्हारे अधीन काम करना , तो बेटा.. , पिता भले ही संतान को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाये परंतु , उसे पिता होने का वास्तविक अहसास तभी होता है , जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।

.
मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on July 11, 2015 at 5:00pm — 10 Comments

लेपटॉप ( लघुकथा )

" अम्मा , दद्दा , छुटके ! ई देखो , नए फिसनवा की पेटी । ऊ सहर की सड़क पे मिळत रही । "

" तनिक खोल तो मुनिया , कउनो गहना- जेबर भए तो दरोग़ा के बुलवाई के पड़ी ।"

" खोलत हैं अम्मा , ई का ? भीतर तो दर्पन चिपकत रही , वो भी ठुस्स भेसईंन रंगत ।"

" का कहत है ? फैंक अबहीं । जुरूर ई सुसरा सहर वाले कौनों जादू-टोना करके पटकत गईल ।"

" पर दद्दा , ई के भीतरे जो ढेर डिबियाँ जमत रहि , ऊ का , का ? "

" जिज्जी , तनक उहे बी तो .....का पता , कौनो गोली- बिस्किट ही धरें हों । "

" सैतान !…

Continue

Added by shashi bansal goyal on July 3, 2015 at 8:00pm — 9 Comments

एक पल ( लघुकथा )

अचानक भड़का दंगा और ऑटो की पिछली सीट पर बैठी बेहद भयभीत युवती । दूर - दूर तक कोई सूरत नहीं बच निकलने की ।अजीब सी कशमकश थी ऑटो छोड़ भागूँ या युवती की मदद करूँ ? जो कि कहीं से भी संभव नहीं दिख रही थी ।लोग और पास , और पास आते जा रहे थे ।सहसा लड़की ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया । उसकी आँखों में मृत्यु का उतना डर नहीं था जितना अपनी होने वाली दुर्गति का ।बस सिर्फ एक पल था मेरे पास निर्णय लेने को , और उस एक पल में ही मैंने माचिस की तीली सुलगा दी ।ऑटो धू-धू कर जलने लगा । ऊपर उठती लपटें राहत महसूस कर रही थीं ,… Continue

Added by shashi bansal goyal on June 19, 2015 at 5:00pm — 8 Comments

सौदा ( लघुकथा )

"वाह बनर्जी साहब ! आपके बाग़ की खूबसूरती देख़ कर हृदय गदगद हो जाता है ।और हो भी क्यों न ? आपने जो अपने बच्चों की तरह इन्हें सजाने-सँवारने में जीवन लगा दिया ।"



"हाँ लालाजी ।जवानी में यही सोच के रोपे थे कि इनकी छाँव में अपनी जीवन संध्या गुजारूँगा ।सो बस वही कर रहा हूँ ।"



" पर मैंने सुना है , आप सारे पेड़ों के फल पड़ौसियों और रिश्तेदारों में मुफ़्त ही बाँट देते हैं।भला ये क्या मूर्खता हुई , जबकि आपको इन उन्नत किस्मों के बाज़ार में मुँह-माँगे दाम मिल सकते हैं।"



" लालाजी !… Continue

Added by shashi bansal goyal on June 15, 2015 at 9:30pm — 16 Comments

कबाड़ ( लघुकथा )

"बाऊजी ! बच्चों के इम्तहान शुरू हो रहे हैं ।आपकी बहू चाहती थी , बेहतर होता अगर आप कुछ रोज़ भाईसाहब के यहाँ हो आते ।"
" पर बेटा ! अभी तो समय पूर्ण होने में दो माह बाकी हैं ।"
" वो तो ठीक है , पर आप तो जानते हैं , घर में एक ही अतिरिक्त कमरा है , वो भी ......।"
" कबाड़ी वाला ....कबाड़ी ....। बाऊजी ! कुछ कबाड़ है क्या ? "
"हाँ है तो.... शायद तुम्हारे बाजार में भी इसका कोई मोल न होगा...।"
मौलिक व अप्रकाशित ।

Added by shashi bansal goyal on June 11, 2015 at 8:30am — 26 Comments

ममता नहीं मरती ....( लघुकथा )

एक जोड़ा दो पहिया वाहन पर तेज़ गति से हाइवे पर गुजर रहा था ।स्त्री की गोद में एक नन्हा बालक था जो हवा के झोंकों से उनींदा हो रहा था ।पुरुष बार बार पीछे मुड़कर पत्नी से बात कर रहा था ।पत्नी ने टोका भी पर उसने अनसुना कर दिया ।अचानक वाहन का संतुलन बिगड़ गया , क्योंकि पीछे से आता हुआ एक ट्रक लगातार तेज हॉर्न देते हुए ' ओवर-टेक ' करने का प्रयास कर रहा था ।अनहोनी हो चुकी थी ।दंपत्ति सामने से आती बस से टकरा चुके थे ।स्थिति भाँप माँ ने दोनों हाथों से बच्चे को भींच लिया था ।गिरते हुए भी मस्तिष्क बच्चे को… Continue

Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:57am — 12 Comments

अंधी ममता ( लघु कथा )

" क्यों बेवजह सुबह सुबह बेटे पर चिल्ला रहे हो ।बच्चा ही तो है ।आपको भी बस बहाना चाहिए डाँटने का ।जैसे खुद से तो कभी गलती...।" मैं पूर्ण आवेग से पति से भीड़ गई थी ।
" बस बस बहुत हो गया ।चुप भी करो । या छुट्टी का पूरा दिन ख़राब करके ही मानोगी ।जैसे मैं तो उसका बाप हूँ ही नहीं।तुम्हारी तरह मैं भी ममता में अँधा हो जाऊँ तो बस ...।"
" करते रहो गुस्सा हुम् ....। आखिर एक माँ पत्नी से कैसे हार सकती है ? "
==========≠======
मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:56am — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service