कोरोना के चक्र की, बड़ी वक्र है चाल।
लापरवाही से बने, साँसों का ये काल।।
निज सदन को मानिए, अपनी जीवन ढाल।
घर से बाहर है खड़ा ,संकट बड़ा विशाल।।
मिलकर देनी है हमें, कोरोना को मात।
काल विभूषित रात की, करनी है प्रभात।।
निज स्वार्थ को छोड़कर, करते जो उपकार।
कोरोना की जंग के ,वो सच्चे किरदार।।
हाथ जोड़ कर दूर से, कीजिये नमस्कार।
हर किसी पर आपका, होगा ये उपकार।।
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on April 9, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
क्षणिकाएँ :
थरथराता रहा
एक अश्क
आँखों की मुंडेर पर
खंडित हुए स्पर्शों की
पुनरावृति की
प्रतीक्षा में
बहुत सहेजा
अंतस के बिम्बों को
अंतर् कंदरा में
जाने
किस बिम्ब के प्रहार से
बह निकला
आँखों के
स्मृति कलश से
गुजरे पलों का सैलाब
तुम्हें
पता ही नहीं चला
तुम जन्मों से
कर रहे हो
वरण
सिर्फ़
मृत्यु का
हर कदम से पहले
हर कदम के बाद
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 7, 2020 at 7:23pm — 1 Comment
मीठे दोहे :
चौखट से बाहर नहीं, रखना अपने पाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।
मीठे रिश्तों की यहाँ, मीठी लगती छाँव।।
मीठे रिश्तों की यहां,मीठी लगती छाँव।
बार-बार मिलती नहीं,ऐसी मीठी ठाँव।।
बार बार मिलती नहीं, ऐसी मीठी ठाँव।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना…
Added by Sushil Sarna on April 4, 2020 at 4:54pm — 4 Comments
समय :
न जाने किस अँधेरे की जेब में
सिमट जाता है समय
न जाने कब उजालों के शिखर पर
कहकहे लगाता है समय
अंतहीन होती है समय की सड़क
बिना पैरों का ये पथिक
अपने काँधों पर ढोता है सदा
कल, आज और कल की परतों में
साँस लेते लम्हों की अनगिनित दास्तानें
और नुकीली सुईयों के पाँव के नीचे रौंदे गए
आफ़ताबी अरमानों के बेनूर आसमान
क्षणों की माल धारण किये
उन्नत भाल का ये आहटहीन अश्व
सृष्टि चक्र का वो वाहक है…
Added by Sushil Sarna on April 3, 2020 at 3:00pm — 4 Comments
क्षणिकाएँ :
क्या ख़बर
हम फिर
मिलें न मिलें
मगर
छोड़ जाऊँगा मैं
समय के भाल पर
हमारे मिलन की गवाह
परछाईयाँ
काँपते चाँद की
.............................
झुलसे हुए होठों पर
रुक गया
फिसल कर
एक अश्क
बेवफ़ाई का
....................
खाली घड़ा
सूखी रोटी
टूटे छप्परों से झाँकती
झूठी आस की
धवल चाँदनी
सुशील सरना /2.4.20
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 2, 2020 at 5:20pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on April 1, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
आसमाँ .....
बहुत ढूँढा
आसमाँ तुझे
दर्द की लकीरों में
मोहब्बत के फ़कीरों में
ख़ामोश जज़ीरों में
मगर
तू छुपा रहा
धड़कन की तड़पन में
यादों के दर्पण में
कलाई के कंगन में
वक्त सरकता रहा
सागर छलकता रहा
अब्र बरसता रहा
मगर
तू न समझा
मैं किसे ढूँढता हूँ
पागल आसमाँ
मैं तो
इस दिल की ज़मी का
आँखों की नमी का
अपनी ज़बीं का
आसमाँ ढूँढता हूँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 30, 2020 at 8:30pm — 3 Comments
होली के दोहे :
नटखट नैनों ने किया, कुछ ऐसा हुड़दंग।
नार नशा हावी हुआ, फीकी लगती भंग।।१
साजन लेकर हाथ में, आये आज गुलाल।
बाहुबंध में शर्म से, लाल हो गए गाल।। २
अधरों पर है खेलती, एक मधुर मुस्कान।
तन पर रंगों ने रची, रिश्तों की पहचान।। ३
होली के त्योहार पर ,इतना रखना ध्यान।
नारी का अक्षत रहे ,रंगों में सम्मान।।४
गौर वर्ण पर रंग ने, ऐसा किया धमाल।
नैनों नें की मसखरी, गाल हो गए लाल।।…
Added by Sushil Sarna on March 6, 2020 at 5:08pm — 4 Comments
ज़बान :
बड़ी अजीब है ये दुनिया
जाने कितने ताले लगाए फिरती है
अपनी ज़बान पर
खूनी मंज़र चुपचाप सह जाती है
हकीकत में किसी के पास
वो ज़बान ही नहीं
जो सच को बयाँ कर सके
इसीलिये अक्सर लोग
रूहानी आवाज़ को
अपने अंदर ही दफ़्न कर लेते हैं
घोंट देते हैं अहसासों का गला
और छटपटाने देते हैं
वेदना की व्याकुलता को
किसी परकटे पंछी की तरह
अंदर ही अंदर
रूहानी परतों के…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 4, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on January 30, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
चंद क्षणिकाएँ :......
होती है
बिना हत्या के भी
हत्या
अदृश्य भावों की
खून की लालिमा से भी गहरे
लाल रिश्तों की
................
तमन्नाओं का झुंड
बेबसी की बेड़ियाँ
मिट गई ज़िंदगी
रगड़ते- रगड़ते
ऐड़ियाँ
फुटपाथ पर
............................
भूख की झंकार
प्रश्नों का अम्बार
पेट का संसार
.............................
रिश्तों के राग
पैसे की आग
झुलसे…
Added by Sushil Sarna on January 11, 2020 at 8:42pm — 6 Comments
दिल की बात .... एक प्रयास ...
कैसे बोलूँ मैं भला, अपने मन की बात।
ताने देंगे सब मुझे, जब होगी प्रभात।।
नैनों की ये सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल।
कह देंगे सब बेशरम,कैसी बीती रात।।
नैनों के संवाद में, दिल ने मानी हार।
बेकाबू फिर हो गए, अंतस के जज़्बात।।
प्रणय पलों में अंततः, हारे सब स्वीकार।
अवगुंठन में रैन के, खूब हुए उत्पात।।
अंग -अंग में रच गयी प्रथम प्रीत की गंध।
श्वास-श्वास में बस गई, वो मधुर…
Added by Sushil Sarna on January 7, 2020 at 9:09pm — 8 Comments
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...
स्मृति घरौंदों में तेरा मैं
कालजयी श्रृंगार करूँ
अभिलाष यही है अंतिम पल तक
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ
श्वास सिंधु के अंतिम छोर तक
देना मेरा साथ प्रिय
उर -अरमानों के क्रंदन का
कैसे मैं परिहार करूँ
अभिलाष यही है अंतिम पल तक
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ
मेरी पावन अनुरक्ति का
करना मत तिरस्कार प्रिय
दृग शरों के घावों का मैं
कैसे क्या उपचार करूँ
अभिलाष यही…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2019 at 6:30pm — 6 Comments
३ क्षणिकाएँ ....
बाहर
प्रचंड तूफ़ान
संघर्ष का
अंतस में
शब्दहीन
गहरा सागर
स्पर्श का
अनुबंध
खंडित हुए
बाहुबंध
मंडित हुए
मौन सभी
दंडित हुए
प्रश्न
विकराल थे
उत्तरों के जाल थे
गोताखोर
विलग न कर सका
आभास को
यथार्थ से
अंत तक
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 23, 2019 at 7:30pm — 6 Comments
अहसास ...
देर तक
देते रहे
दस्तक
दिल के दरवाज़े पर
वो अहसास
जो तुम
अपनी आँखों से
छोड़ गए थे
मेरी आँखों में
जाते वक्त
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 19, 2019 at 7:30pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 6:36pm — 6 Comments
सागर ....
नहीं नहीं
सागर
मुझे तुम्हारे कह्र से
डर नहीं लगता
तुम्हारी विध्वंसक
लहरों से भी
डर नहीं लगता
तुम्हारे रौद्र रूप से भी
डर नहीं लगता
मगर
ऐ सागर
अगर तुम
वहशियों से नोचे गए
मासूमों के
क्रंदन सुनोगे
तो डर जाओगे
किसी खामोश आँख में
ठहरा समंदर
देखोगे
तो डर जाओगे
खिलने से पहले
कुचली कलियों के
शव देखोगे
तो डर जाओगे
सदियों से तुमने
अपने गर्भ में
न…
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 1:33pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on December 7, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......
शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में।
ज़िंदगी उलझी रही सवालों और जवाबों में।
.कैद हूँ मुद्दत से मैं आरज़ूओं के शहर में -
उम्र भर ज़िन्दा रहे वो दर्द के सैलाबों में।
.........................................................
पूछो ज़रा चाँद से .क्यों रात भर हम सोये नहीं।
यूँ बहुत सताया याद ने .फिर भी हम रोये नहीं।
सबा भी ग़मगीन हो गयी तन्हा हमको देख के-
कह न सके दर्द अश्क से ज़ख्म हम ने धोये…
Added by Sushil Sarna on December 6, 2019 at 5:32pm — 6 Comments
कुछ क्षणिकाएँ : ....
बढ़ जाती है
दिल की जलन
जब ढलने लगती है
साँझ
मानो करते हों नृत्य
यादों के अंगार
सपनों की झील पर
सपनों के लिए
...................
आदि बिंदु
अंत बिंदु
मध्य रेखा
बिंदु से बिंदु की
जीवन सीमा
.......................
तृषा को
दे गई
दर्द
तृप्ति को
करते रहे प्रतीक्षा
पुनर्मिलन का
अधराँगन में
विरही अधर
भोर होने…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 3, 2019 at 8:07pm — 4 Comments
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