For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (835)

आज के दोहे :

कोरोना के चक्र की, बड़ी वक्र है चाल।

लापरवाही से बने, साँसों का ये काल।।

निज सदन को मानिए, अपनी जीवन ढाल।

घर से बाहर है खड़ा ,संकट बड़ा विशाल।।

मिलकर देनी है हमें, कोरोना को मात।

काल विभूषित रात की, करनी है प्रभात।।

निज स्वार्थ को छोड़कर, करते जो उपकार।

कोरोना की जंग के ,वो सच्चे किरदार।।

हाथ जोड़ कर दूर से, कीजिये नमस्कार।

हर किसी पर आपका, होगा ये उपकार।।

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 9, 2020 at 8:00pm — 2 Comments

क्षणिकाएँ :

क्षणिकाएँ :

थरथराता रहा

एक अश्क

आँखों की मुंडेर पर

खंडित हुए स्पर्शों की

पुनरावृति की

प्रतीक्षा में



बहुत सहेजा

अंतस के बिम्बों को

अंतर् कंदरा में

जाने

किस बिम्ब के प्रहार से

बह निकला

आँखों के

स्मृति कलश से

गुजरे पलों का सैलाब

तुम्हें

पता ही नहीं चला

तुम जन्मों से

कर रहे हो

वरण

सिर्फ़

मृत्यु का

हर कदम से पहले

हर कदम के बाद

सुशील सरना…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 7, 2020 at 7:23pm — 1 Comment

मीठे दोहे :

मीठे दोहे :

चौखट से बाहर नहीं, रखना अपने पाँव।

घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।।

घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।

मीठे रिश्तों की यहाँ, मीठी लगती छाँव।।

मीठे रिश्तों की यहां,मीठी लगती छाँव।

बार-बार मिलती नहीं,ऐसी मीठी ठाँव।।

बार बार मिलती नहीं, ऐसी मीठी ठाँव।

अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।।

अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।

घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 4, 2020 at 4:54pm — 4 Comments

समय :

समय :

न जाने किस अँधेरे की जेब में

सिमट जाता है समय

न जाने कब उजालों के शिखर पर

कहकहे लगाता है समय

अंतहीन होती है समय की सड़क 

बिना पैरों का ये पथिक

अपने काँधों पर ढोता है सदा

कल, आज और कल की परतों में

साँस लेते लम्हों की अनगिनित दास्तानें

और नुकीली सुईयों के पाँव के नीचे रौंदे गए

आफ़ताबी अरमानों के बेनूर आसमान



क्षणों की माल धारण किये

उन्नत भाल का ये आहटहीन अश्व

सृष्टि चक्र का वो वाहक है…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 3, 2020 at 3:00pm — 4 Comments

क्षणिकाएँ :

क्षणिकाएँ :

क्या ख़बर
हम फिर
मिलें न मिलें
मगर
छोड़ जाऊँगा मैं
समय के भाल पर
हमारे मिलन की गवाह

परछाईयाँ
काँपते चाँद की

.............................

झुलसे हुए होठों पर
रुक गया
फिसल कर
एक अश्क
बेवफ़ाई का

....................

खाली घड़ा
सूखी रोटी
टूटे छप्परों से झाँकती
झूठी आस की
धवल चाँदनी


सुशील सरना /2.4.20
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on April 2, 2020 at 5:20pm — 4 Comments

कोरोना पर कुछ दोहे :

कोरोना पर कुछ  दोहे :
वृत कोरोना का नहीं, इतना भी आसान।
रहना निज आवास में, है मात्र समाधान।।
कोरोना के काल से, हुआ विश्व…
Continue

Added by Sushil Sarna on April 1, 2020 at 5:30pm — 4 Comments

आसमाँ .....

आसमाँ .....

बहुत ढूँढा
आसमाँ तुझे
दर्द की लकीरों में
मोहब्बत के फ़कीरों में
ख़ामोश जज़ीरों में
मगर
तू छुपा रहा
धड़कन की तड़पन में
यादों के दर्पण में
कलाई के कंगन में
वक्त सरकता रहा
सागर छलकता रहा
अब्र बरसता रहा
मगर
तू न समझा
मैं किसे ढूँढता हूँ
पागल आसमाँ
मैं तो
इस दिल की ज़मी का
आँखों की नमी का
अपनी ज़बीं का
आसमाँ ढूँढता हूँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on March 30, 2020 at 8:30pm — 3 Comments

होली के दोहे :

होली के दोहे :

नटखट नैनों ने किया, कुछ ऐसा हुड़दंग।

नार नशा हावी हुआ, फीकी लगती भंग।।१

साजन लेकर हाथ में, आये आज गुलाल।

बाहुबंध में शर्म से, लाल हो गए गाल।। २

अधरों पर है खेलती, एक मधुर मुस्कान।

तन पर रंगों ने रची, रिश्तों की पहचान।। ३

होली के त्योहार पर ,इतना रखना ध्यान।

नारी का अक्षत रहे ,रंगों में सम्मान।।४

गौर वर्ण पर रंग ने, ऐसा किया धमाल।

नैनों नें की मसखरी, गाल हो गए लाल।।…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 6, 2020 at 5:08pm — 4 Comments

ज़बान :

ज़बान :

बड़ी अजीब है ये दुनिया 

जाने कितने ताले लगाए फिरती है 

अपनी ज़बान  पर 

खूनी मंज़र चुपचाप सह जाती है 

हकीकत  में किसी के पास 

वो ज़बान  ही नहीं 

जो सच को बयाँ कर सके 

इसीलिये अक्सर लोग 

रूहानी आवाज़ को 

अपने अंदर ही दफ़्न कर लेते हैं 

घोंट देते हैं अहसासों का गला 

और छटपटाने देते हैं 

वेदना की व्याकुलता को 

किसी परकटे पंछी की तरह 

अंदर ही अंदर 

रूहानी परतों के…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 4, 2020 at 7:42pm — 2 Comments

कुछ क्षणिकाएँ :

कुछ क्षणिकाएँ :



इतना तो न था

खालीपन

तुम्हारी मिलने से पहले

जितना हो गया

तुम से बिछुड़ने के बाद

ख़्वाबों की ज़मीन पर

अहसासों की ओस

पिघल गयी

तुम्हारी यादों से



......................

प्रयास

क्षितिज छूने का

विशवास

झूठे वादों का

प्यास

मरीचिका सी



.......................



माह

बदलते -बदलते

आ जाता है

कैलेंडर का अंतिम माह

अर्थात

वर्ष का चरम

और होते होते

हो जाता… Continue

Added by Sushil Sarna on January 30, 2020 at 4:00pm — 4 Comments

चंद क्षणिकाएँ :......

चंद क्षणिकाएँ :......

होती है

बिना हत्या के भी

हत्या

अदृश्य भावों की

खून की लालिमा से भी गहरे

लाल रिश्तों की

................

तमन्नाओं का झुंड

बेबसी की बेड़ियाँ

मिट गई ज़िंदगी

रगड़ते- रगड़ते

ऐड़ियाँ

फुटपाथ पर

............................

भूख की झंकार

प्रश्नों का अम्बार

पेट का संसार

.............................



रिश्तों के राग

पैसे की आग

झुलसे…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 11, 2020 at 8:42pm — 6 Comments

दिल की बात .... एक प्रयास ...

दिल की बात .... एक प्रयास ...

कैसे बोलूँ मैं भला, अपने मन की बात।

ताने देंगे सब मुझे, जब होगी प्रभात।।

नैनों की ये सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल।

कह देंगे सब बेशरम,कैसी बीती रात।।

नैनों के संवाद में, दिल ने मानी हार।

बेकाबू फिर हो गए, अंतस के जज़्बात।।

प्रणय पलों में अंततः, हारे सब स्वीकार।

अवगुंठन में रैन के, खूब हुए उत्पात।।

अंग -अंग में रच गयी प्रथम प्रीत की गंध।

श्वास-श्वास में बस गई, वो मधुर…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 7, 2020 at 9:09pm — 8 Comments

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...

स्मृति घरौंदों में तेरा मैं

कालजयी श्रृंगार करूँ

अभिलाष यही है अंतिम पल तक

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ



श्वास सिंधु के अंतिम छोर तक

देना मेरा साथ प्रिय

उर -अरमानों के क्रंदन का

कैसे मैं परिहार करूँ

अभिलाष यही है अंतिम पल तक

प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ



मेरी पावन अनुरक्ति का

करना मत तिरस्कार प्रिय

दृग शरों के घावों का मैं

कैसे क्या उपचार करूँ

अभिलाष यही…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 27, 2019 at 6:30pm — 6 Comments

३ क्षणिकाएँ ....

३ क्षणिकाएँ ....


बाहर
प्रचंड तूफ़ान
संघर्ष का
अंतस में
शब्दहीन
गहरा सागर
स्पर्श का

अनुबंध
खंडित  हुए 
बाहुबंध
मंडित हुए
मौन सभी
दंडित हुए

प्रश्न
विकराल थे
उत्तरों के जाल थे
गोताखोर
विलग न कर सका
आभास को
यथार्थ से
अंत तक

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 23, 2019 at 7:30pm — 6 Comments

अहसास ...

अहसास ...

देर तक
देते रहे
दस्तक
दिल के दरवाज़े पर
वो अहसास
जो तुम
अपनी आँखों से
छोड़ गए थे
मेरी आँखों में
जाते वक्त

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 19, 2019 at 7:30pm — 4 Comments

विशाल सागर ......

विशाल सागर ......
सागर
तेरी वीचियों पर मैं
अपनी यादों को छोड़ आया हूँ
तेरे रेतीले…
Continue

Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 6:36pm — 6 Comments

सागर ....

सागर ....

नहीं नहीं

सागर

मुझे तुम्हारे कह्र से

डर नहीं लगता

तुम्हारी विध्वंसक

लहरों से भी

डर नहीं लगता

तुम्हारे रौद्र रूप से भी

डर नहीं लगता

मगर

ऐ सागर

अगर तुम

वहशियों से नोचे गए

मासूमों के

क्रंदन सुनोगे

तो डर जाओगे

किसी खामोश आँख में

ठहरा समंदर

देखोगे

तो डर जाओगे

खिलने से पहले

कुचली कलियों के

शव देखोगे

तो डर जाओगे

सदियों से तुमने

अपने गर्भ में

न…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 1:33pm — 2 Comments

तितली-पुष्प प्रेम :

तितली-पुष्प प्रेम :
तितली पूछे फूल से ,बता मुझे इक बात।
...........कैसे तेरी गंध से, भर जाते आघात।
...............हाली सी मुस्कान ले, यूँ बोला फिर पुष्प-…
Continue

Added by Sushil Sarna on December 7, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......

दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......

शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में।

ज़िंदगी उलझी रही सवालों और जवाबों में।

.कैद हूँ मुद्दत से मैं आरज़ूओं के शहर में -

उम्र भर ज़िन्दा रहे वो दर्द के सैलाबों में।

.........................................................



पूछो ज़रा चाँद से .क्यों रात भर हम सोये नहीं।

यूँ बहुत सताया याद ने .फिर भी हम रोये नहीं।

सबा भी ग़मगीन हो गयी तन्हा हमको देख के-

कह न सके दर्द अश्क से ज़ख्म हम ने धोये…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 6, 2019 at 5:32pm — 6 Comments

कुछ क्षणिकाएँ : ....

कुछ क्षणिकाएँ : ....

बढ़ जाती है

दिल की जलन

जब ढलने लगती है

साँझ

मानो करते हों नृत्य

यादों के अंगार

सपनों की झील पर

सपनों के लिए

...................

आदि बिंदु

अंत बिंदु

मध्य रेखा

बिंदु से बिंदु की

जीवन सीमा

.......................

तृषा को

दे गई

दर्द

तृप्ति को

करते रहे प्रतीक्षा

पुनर्मिलन का

अधराँगन में

विरही अधर

भोर होने…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 3, 2019 at 8:07pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service