मौन सरोवर ....
जुदा न होना
मेरे होकर
कैसे कह दूँ तुम स्वप्न हो
मेरी श्वास का तुम दर्पण हो
बोलो प्रिय
कहाँ गए तुम
मेरी पलक में सपने बो कर
जीवनतल की अकथ कथा तुम
प्रेम पलों की मधुर ऋचा तुम
तुम बिन देखो
सूख न जाएँ
अभिलाषा के मौन सरोवर
अभी यहाँ थे अभी नहीं हो
मेरी क्षुधा की सुधा तुम्हीं हो
जीवन दुर्लभ
तुमको खोकर
तुम अंतस की अमर धरोहर
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on May 20, 2020 at 7:49pm — 6 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
सीख लिया शब्दों ने
जीना और मरना
बिना परिधान बदले
देह का
साथ रहकर
व्योम को
सूक्ष्म से अलंकृत करो
कि स्वप्न भी
कल्पना हैं
अचेतन मन की
कह दिया काँपती लौ ने
दिए से
आज मैं सो जाऊंगी
तुम्हारी गोद में
क्रूर पवन के वेग से आहत होकर
शायद मेरा उजाला
अंधेरों को
नहीं भाया
मिट गई
जीत की आकांक्षा
तिमिर में
इक दूजे से
हारते हुए
हम के…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 17, 2020 at 9:37pm — 6 Comments
भेद :
समझा दिया मैंने
अपने बच्चों को
सत्य और असत्य में क्या है भेद
समझा दिया
मैंने अपने बच्चों को
भानु से फैला उजास
कितने रंगों को होता है
समझा दिया मैंने
यह भी अपने बच्चों को
कि रंगीली गिरगिट का
कौन सा रंग असली और कौन सा नकली होता है
मगर
मुझे ये समझाने में
बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा
कि इंसान का कौन सा रंग असली है
और कौन सा नकली
शायद वक्त के साथ
वो इस…
Added by Sushil Sarna on May 15, 2020 at 6:19pm — 3 Comments
जाने कितनी दूर थी, जाने कितनी पास।
जाने किसकी जोह में, रुकी हुई थी श्वास।।
जाने किसकी जोह में, तरल हो गई आस।
एक श्वास थी ज़िंदगी, एक श्वास संत्रास।।
जीवन के विश्राम तक, मिटी न मन की जोह।
करते करते सो गया, जीव सत्य की टोह।।
बड़ा अजब है जीव का, जीवन के प्रति मोह।
जीत न पाया अंत से, खूब किया विद्रोह।।
मृत्यु देह की है सखा, जीवन गहरी खोह।
फिर भी इस संसार से, मिटे न मन का मोह।।
सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on May 14, 2020 at 10:30pm — 2 Comments
घर :
अच्छा है या बुरा है
जैसा भी है
मगर
ये घर मेरा है
इस घर का हर सवेरा
सिर्फ और सिर्फ
मेरा है
मैं
दिन रात
इसकी दीवारों से बातें करता हूँ
मेरे हर दर्द को
ये पहचानती हैं
मैं
कौन हूँ
ये अच्छी तरह जानती हैं
धूप
हर रोज
इन दीवारों को धो देती है
दीवारों पर टंगे अतीतों पर
रो देती है
कल भी कहते थे
ये आज भी कहते हैं
ये घर उनका का है
दीवारों पर उनकी यादों…
Added by Sushil Sarna on May 12, 2020 at 8:59pm — 2 Comments
माटी :कुछ दोहे
माटी मिल माटी हुआ, माटी का इंसान।
माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।।
माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।
माटी- माटी हो गया, साँसों का अभिमान।।
माटी -माटी हो गया, साँसों का अभिमान।
खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।।
खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।
पल भर में माटी हुआ माटी का परिधान।।
पल भर में माटी हुआ, माटी का परिधान।
माटी के पुतले यही, तेरी है पहचान।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 11, 2020 at 7:31pm — 3 Comments
मातृ दिवस पर माँ को अर्पित कुछ दोहे :
माँ सृष्टि का नाम है, माँ में चारों धाम।
बिन माँ के संसार में, कहीं नहीं विश्राम।।
हौले -हौले गोद में, सोया माँ का लाल।
हुआ बड़ा तो देखिए, भूला माँ का हाल।।
नौ माह किया गर्भ में, माँ ने बड़ा ख़याल।
बिन बोले ही रो पड़ी, दुखी हुआ जब लाल।।
हर दम चाहे माँ यही, सुखी रहे संतान।
माँ देती संतान को, साँसों का वरदान।।
बिन देखे संतान को, मिटे न माँ की भूख।
भूख़ी हो संतान तो,…
Added by Sushil Sarna on May 10, 2020 at 6:02pm — 3 Comments
मन के जतन :
फूल हुए शूल हुए
रास्ते की धूल हुए
अर्थहीन हो गए
अर्द्ध रैन स्वप्न
अवरोध प्रीत के
छंद सजे गीत के
सृष्टि में अट्हास हुआ
प्रीत का उपहास हुआ
सहमे
तन और मन
मेघों के आँचल पर
खुशबू से नाम लिखे
अनुरोधों की देहरी पर
बेमोल बिक गए
अंतर मौन स्वप्न
स्वीकार सभी खो गए
वनपाखी से हो गए
सायों से मिलने के
व्यर्थ हुए जतन
क्यूँ रोये नैना
न वो जाने
न…
Added by Sushil Sarna on May 6, 2020 at 7:14pm — 3 Comments
आहट .....
दिल
हर आहट को
पहचानता है
आहट
बेशक्ल नहीं होती
होती हैं उसमें
हज़ारों ख़्वाहिशें
जिनके इंतज़ार में
ज़िंदगी
रहती है ज़िंदा
फ़ना होने के बाद भी
सहर होती है साँझ होती है
वक़्त मगर
ठहरा ही रहता है
किसी आहट के इंतज़ार में
नज़रें
अपनी ख़्वाहिशों के अक़्स
देखने को बेताब रहती हैं
तसव्वुर में
ज़िंदा रहती हैं
आहटें
मगर
मिलता है धोख़ा
सायों…
Added by Sushil Sarna on April 29, 2020 at 8:04pm — 6 Comments
झूठ
नहीं, नहीं
रहने दो
सच और झूठ की ये तकरार
सच में बेकार है
सत्य
जब उजागर होता है
तो आघात देता है
और झूठ जब उजागर होता है
तो शर्मिंदगी का शूल देता है
फिर क्यूँ मुझे
अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो
सच कहूँ
यदि आघात ही सहना है तो
मुझे ये झूठ अच्छा लगता है
कम से कम मौन पलों में
स्नेह का आवरण तो नहीं हटता
कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता
स्पर्शों की आँधी
सत्य के चौखट पर…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 9:00pm — 4 Comments
दिल के दोहे :
पागल मन की मर्ज़ियाँ, उत्पाती उन्माद।
हुए अलंकृत स्वप्न से, नैनों के प्रासाद।।
वंचक नैनों का भला , कौन करे विश्वास।
इनके हर अनुरोध में, छलके तन की प्यास।।
नैनों के अनुरोध को, नैन करें स्वीकार।
लगती है इस खेल में, दिल को अच्छी हार।।
हृदय कुंज में अवतरित, हुई पिया की याद।
नैन तीर को कर गई, अश्कों से आबाद।।
तृषा हुई बैरागिनी, द्रवित हुए शृंगार।
हौले-हौले दिन ढला, रैन बनी…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 7:10pm — 8 Comments
कोरोना के चक्र की, बड़ी वक्र है चाल।
लापरवाही से बने, साँसों का ये काल।।
निज सदन को मानिए, अपनी जीवन ढाल।
घर से बाहर है खड़ा ,संकट बड़ा विशाल।।
मिलकर देनी है हमें, कोरोना को मात।
काल विभूषित रात की, करनी है प्रभात।।
निज स्वार्थ को छोड़कर, करते जो उपकार।
कोरोना की जंग के ,वो सच्चे किरदार।।
हाथ जोड़ कर दूर से, कीजिये नमस्कार।
हर किसी पर आपका, होगा ये उपकार।।
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on April 9, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
क्षणिकाएँ :
थरथराता रहा
एक अश्क
आँखों की मुंडेर पर
खंडित हुए स्पर्शों की
पुनरावृति की
प्रतीक्षा में
बहुत सहेजा
अंतस के बिम्बों को
अंतर् कंदरा में
जाने
किस बिम्ब के प्रहार से
बह निकला
आँखों के
स्मृति कलश से
गुजरे पलों का सैलाब
तुम्हें
पता ही नहीं चला
तुम जन्मों से
कर रहे हो
वरण
सिर्फ़
मृत्यु का
हर कदम से पहले
हर कदम के बाद
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 7, 2020 at 7:23pm — 1 Comment
मीठे दोहे :
चौखट से बाहर नहीं, रखना अपने पाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।
मीठे रिश्तों की यहाँ, मीठी लगती छाँव।।
मीठे रिश्तों की यहां,मीठी लगती छाँव।
बार-बार मिलती नहीं,ऐसी मीठी ठाँव।।
बार बार मिलती नहीं, ऐसी मीठी ठाँव।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना…
Added by Sushil Sarna on April 4, 2020 at 4:54pm — 4 Comments
समय :
न जाने किस अँधेरे की जेब में
सिमट जाता है समय
न जाने कब उजालों के शिखर पर
कहकहे लगाता है समय
अंतहीन होती है समय की सड़क
बिना पैरों का ये पथिक
अपने काँधों पर ढोता है सदा
कल, आज और कल की परतों में
साँस लेते लम्हों की अनगिनित दास्तानें
और नुकीली सुईयों के पाँव के नीचे रौंदे गए
आफ़ताबी अरमानों के बेनूर आसमान
क्षणों की माल धारण किये
उन्नत भाल का ये आहटहीन अश्व
सृष्टि चक्र का वो वाहक है…
Added by Sushil Sarna on April 3, 2020 at 3:00pm — 4 Comments
क्षणिकाएँ :
क्या ख़बर
हम फिर
मिलें न मिलें
मगर
छोड़ जाऊँगा मैं
समय के भाल पर
हमारे मिलन की गवाह
परछाईयाँ
काँपते चाँद की
.............................
झुलसे हुए होठों पर
रुक गया
फिसल कर
एक अश्क
बेवफ़ाई का
....................
खाली घड़ा
सूखी रोटी
टूटे छप्परों से झाँकती
झूठी आस की
धवल चाँदनी
सुशील सरना /2.4.20
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 2, 2020 at 5:20pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on April 1, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
आसमाँ .....
बहुत ढूँढा
आसमाँ तुझे
दर्द की लकीरों में
मोहब्बत के फ़कीरों में
ख़ामोश जज़ीरों में
मगर
तू छुपा रहा
धड़कन की तड़पन में
यादों के दर्पण में
कलाई के कंगन में
वक्त सरकता रहा
सागर छलकता रहा
अब्र बरसता रहा
मगर
तू न समझा
मैं किसे ढूँढता हूँ
पागल आसमाँ
मैं तो
इस दिल की ज़मी का
आँखों की नमी का
अपनी ज़बीं का
आसमाँ ढूँढता हूँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 30, 2020 at 8:30pm — 3 Comments
होली के दोहे :
नटखट नैनों ने किया, कुछ ऐसा हुड़दंग।
नार नशा हावी हुआ, फीकी लगती भंग।।१
साजन लेकर हाथ में, आये आज गुलाल।
बाहुबंध में शर्म से, लाल हो गए गाल।। २
अधरों पर है खेलती, एक मधुर मुस्कान।
तन पर रंगों ने रची, रिश्तों की पहचान।। ३
होली के त्योहार पर ,इतना रखना ध्यान।
नारी का अक्षत रहे ,रंगों में सम्मान।।४
गौर वर्ण पर रंग ने, ऐसा किया धमाल।
नैनों नें की मसखरी, गाल हो गए लाल।।…
Added by Sushil Sarna on March 6, 2020 at 5:08pm — 4 Comments
ज़बान :
बड़ी अजीब है ये दुनिया
जाने कितने ताले लगाए फिरती है
अपनी ज़बान पर
खूनी मंज़र चुपचाप सह जाती है
हकीकत में किसी के पास
वो ज़बान ही नहीं
जो सच को बयाँ कर सके
इसीलिये अक्सर लोग
रूहानी आवाज़ को
अपने अंदर ही दफ़्न कर लेते हैं
घोंट देते हैं अहसासों का गला
और छटपटाने देते हैं
वेदना की व्याकुलता को
किसी परकटे पंछी की तरह
अंदर ही अंदर
रूहानी परतों के…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 4, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
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