तिरंगे तुझे सुनानी है ....
सन ४७ की रात में
आज़ादी की बात में
दर्दीले आघात में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के शोलों में
रंग बसन्ती चोलों में
जय हिन्द के बोलों में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
राजगुरु सुखदेव भगत
और मंगल पण्डे लक्ष्मी बाई
गाँधी शेखर और शिवा की
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के दीवानों की
सरहद के जवानों की…
Added by Sushil Sarna on August 16, 2019 at 6:44pm — 2 Comments
संतान (क्षणिकाएं ) ....
बुझ गए बुजुर्ग
करते करते
रौशन
अपने ही चिराग
.....................
कर रही
वृक्षारोपण
वृद्धाश्रम में
वृद्धों की हाथों
उनकी ही संतान
.......................
हो गया
संस्कारों का
दाहसंस्कार
मौन बिलखता रहा
कहकहों में
संतान के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 12:57pm — 6 Comments
अभिव्यक्ति का संत्रास ...
वरण किया
आँखों ने
यादों का ताज
पूनम की रात में
होती रही स्रावित
यादें
नैन तटों से
अविरल
तन्हा बरसात में
वीचियों पर
यादों की
तैरती रही
परछाईयाँ
देर तक
तन्हा अवसाद में
कर न सके व्यक्त
अधरों से
अन्तस् के
सिसकते जज्बातों की
अव्यक्त अभिव्यक्ति का संत्रास
शाब्दिक अनुवाद में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 6, 2019 at 5:06pm — 10 Comments
वो मेरा था तारा ...
यादों के बादल से
नैनों के काजल से
लहराते आँचल से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
महकती फिजाओं से
परदेसी हवाओं से
बरसाती राहों से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
सपनों के अम्बर से
खारे समंदर से
मन के बवंडर से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
यादों के नीड से
महकते हुए चीड से
ख्वाबों की भीड़ से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2019 at 3:35pm — 6 Comments
चंद हाइकु ...
संग दामिनी
धक-धक धड़के
प्यासा दिल
तड़पा गई
विगत अभिसार
बैरी चपला
लुप्त भोर
पयोद घनघोर
शिखी का शोर
छुप न पाया
विरह का सावन
दर्द बहाया
खूब नहाई
रूप की अंगड़ाई
रुत लजाई
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2019 at 5:07pm — 4 Comments
ले बाहों में सोऊँगी ....
सावन की बरसात को
प्रथम मिलन की रात को
धड़कते हुए जज़्बात को
संवादों के अनुवाद को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
अपनी प्रेम कहानी को
भीगी हुई जवानी को
बारिश की रवानी को
नैन तृषा दिवानी को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
उस नशीली रात को
उल्फ़त की बरसात को
अजनबी मुलाक़ात को
हाथों में थामे हाथ को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना…
Added by Sushil Sarna on August 2, 2019 at 5:19pm — 4 Comments
कैसे भूलें हम ....
पागल दिल की बात को
सावन की बरसात को
मधुर मिलन की रात को
अधरों की सौगात को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतर्मन की प्यास को
आती जाती श्वास को
भावों के मधुमास को
उनसे मिलन की आस को
बोलो
कैसे भूलें हम
नैनों के संवाद को
धड़कन के अनुवाद को
बीते पलों की याद को
तिमिर मौन के नाद को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतस के तूफ़ान को
धड़कन की पहचान को
अधरों की…
Added by Sushil Sarna on July 31, 2019 at 12:38pm — 4 Comments
मेरा प्यारा गाँव:(दोहे )..............
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।1।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।2।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।3।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गई वो ठाँव।4।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गयी वो ठाँव।
मुझको…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2019 at 2:00pm — 7 Comments
प्रीत भरे दोहे .....
अगर न आये पास वो, बढ़ जाती है प्यास।
पल में बनता प्रीत का , सावन फिर आभासll
छोड़ो भी अब रूठना , सावन रुत में तात।
बार बार आती नहीं ,भीगी भीगी रात।।
नैन नैन को दे गए , गुपचुप कुछ सन्देश।
अन्धकार में देह से , हुआ अनावृत वेश। ।।
यौवन की नादानियाँ , सावन के उन्माद।
अंतस के संवाद का ,अधर करें अनुवाद।।
याचक दिल की याचना , दिल ने की स्वीकार।
बंद नयन में हो गया , अधरों का…
Added by Sushil Sarna on July 24, 2019 at 2:30pm — 3 Comments
तन्हाई में ...
होती है
बहुत ज़रूरत
तन्हाई में
तन्हा हाथ को
अपने से
एक हाथ की
बोलता रहे
जिसका स्पर्श
सदियों तक
अलसाई सी तन्हाई में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 20, 2019 at 8:05pm — 6 Comments
सजन रे झूठ मत बोलो ...
रहने दो
मेरे घावों पर
मरहम लगाने की कोशिश मत करो
मैं जानती हूँ
तुम्हारे मन में
मैं नहीं
सिर्फ मेरा तन है
जानती हूँ
रैन होते ही तुम आओगे
कुछ बहलाओगे कुछ फुसलाओगे
धीरे धीरे मैं बहल जाऊँगी
मोम सी पिघल जाऊँगी
न न करते
मर्यादाओं की दहलीज़ लाँघ जाऊँगी
भोर के साथ नशा उतर जाएगा
हर वादा बहक जाएगा
हर बार की तरह
मेरे मन में
फिर आने की कसक छोड़ जाओगे
हर इंतज़ार
बस…
Added by Sushil Sarna on July 19, 2019 at 4:24pm — 1 Comment
अहसास .. कुछ क्षणिकाएं
छुप गया दर्द
आँखों के मुखौटों में
मुखौटे
सिर्फ चेहरे पर
नहीं हुआ करते
.............................
छील गया
उल्फ़त की चुभन को
एक रेशमी खंजर
चुपके से
...........................
झील की आगोश में
चाँद की
चाँद संग सरगोशियाँ
कर गई बेनकाब
सह्र की
पहली किरण
........................
बन जाती
घास पर
ओस की बूँद
रोता है
जब चाँद
आसमान…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 15, 2019 at 6:53pm — 6 Comments
श्वासों में....
मैं नहीं चाहता अभी
मृत्यु का वरण करना
प्रेम का वरण करना
शेष है अभी
श्वासों में
प्रतीक्षा की दहलीज़ पर
खड़े हैं कई स्वप्न
निस्तेज से
अवसन्न मुद्रा में
साकार होने को
मैं नहीं चाहता
सपनों की किर्चियों से
पलक पथ को रक्तरंजित करना
तिमिर गुहा में
यथार्थ से
साक्षात्कार करना
शेष है अभी
श्वासों में
अभी अनीस नहीं हुई
मेरी देह
ज़िंदा हैं आज भी…
Added by Sushil Sarna on July 8, 2019 at 5:28pm — 2 Comments
वज़ह.....
बिछुड़ती हुई
हर शय
लगने लगती है
बड़ी अज़ीज
अंतिम लम्हों में
क्योँकि
होता है
हर शय से
लगाव
बेइंतिहा
दर्द होता है
बहुत
जब रह जाती है
पीछे
ज़िंदगी
जीने की
वज़ह
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 5, 2019 at 4:56pm — 4 Comments
मौन पर त्वरित क्षणिकाएं :
मौन तो
क्षरण है
शोर का
............
मन का
कोलाहल है
मौन
.............
मौन
स्वीकार है
समर्पण का
...............
मौन
प्रतिशोध का
शोर है
..............
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 26, 2019 at 8:12pm — 6 Comments
शब्द ....
शब्द
बतियाते हैं तो
सृजन बन जाते हैं
शब्द
बतियाते हैं तो
वाचाल हो उठती है
अंतस भावों की
पाषाण प्रतिमा
शब्द
बतियाते हैं तो
बन जाते हैं
कालजयी
शिलालेख
शब्द
बतियाते हैं तो
छीन लेते हैं
मौन में दबे दर्द की
मौनता को
इसीलिए
शब्दों का बतियाना
बड़ा अच्छा लगता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 23, 2019 at 5:02pm — 2 Comments
ख़्वाब ... (क्षणिका )
तैरता रहा तुम्हारा अक्स
मेरे ख़्वाबों के प्याले में
माहताब बनकर
मैं निहारता रहा
अब्र में
बिखरता ख़्वाब
छलिया माहताब में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 22, 2019 at 4:58pm — 6 Comments
कर्म आधारित दोहे :
अपने अपने नीड़ की, अपनी अपनी पीर।
हर बंदे के कर्म ही, हैं उसकी तकदीर।।
पाप पुण्य संसार में, हैं कर्मों के भोग।
सुख-दुख पाना जीव का ,मात्र नहीं संयोग।।
हर किसी के कर्म का, दाता रखे हिसाब।
देना होगा ईश को ,हर कर्म का जवाब।।
चाँदी सोना धन सभी, हैं जग में बेकार।
सद कर्मों से जीव का, होता बेड़ा पार।।
जग में आया छोड़कर, जब तू अपना धाम।
धन अर्जन के कर्म में, भूल गया तू…
Added by Sushil Sarna on June 20, 2019 at 2:33pm — 10 Comments
ताप संताप दोहे :
सूरज अपने ताप का, देख जरा संताप।
हरियाली को दे दिया, जैसे तूने शाप।।
भानु रशिम कर रही, कैसा तांडव आज।
वसुधा की काया फटी,ठूंठ बने सरताज।।
वसुंधरा का हो गया, देखो कैसा रूप।
हरियाली को खा गई, भानु तेरी धूप।।
मेघो अपने रहम की, जरा करो बरसात।
अपनी बूंदों से हरो, धरती का संताप।।
तृषित धरा को दीजिये, इंद्रदेव वरदान।
हलधर लौटे खेत में, खूब उगाये धान।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 19, 2019 at 7:04pm — 8 Comments
औरत.....
जाने
कितने चेहरे रखती है
मुस्कराहट
थक गई है
दर्द के पैबंद सीते सीते
ज़िंदगी
हर रात
कोई मुझे
आसमाँ बना देता है
हर सह्र
मैं पाताल से गहरे अंधेरों में
धकेल दी जाती हूँ
उफ़्फ़ ! कितनी बेअदबी होती है
मेरे जिस्म के…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2019 at 1:07pm — 1 Comment
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