बह्र
1222-1222-1222-12
चलो हमदर्द बन जाओ, ख़यालों की तरह।।
कोई खुश्बू ही बिखराओ गुलाबों की तरह।।
बहुत थक सा गया हूँ जिंदगी से खेल कर।
कजा आगोश में भर लो दुशालों की तरह।।
मुझे बंजर में नफरत से कहीं भी फेंक दो।
वही उग आऊंगा मैं भी, अनाजों की तरहा।।
मुझे पढ़ना अगर चाहो तो पढ़ लेना यूँ ही ।
हुँ यू के जी के बस्ते में, किताबों की तरह।।
मेरी तुलना न कर उल्फ़त, गुलों की बस्ती' से।
मैं काफिर मैकदे में…
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 20, 2019 at 7:00am — 1 Comment
बह्र 1222-1222-1222-1222
बता हर सिम्त तेरा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुझे लेकर अकेला बनके मुझमे कौन रहता है।।
अगर अब मुस्कुराते हो मेरी जद्दोजहद से तुम।
तो बोलो आज तुम सा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।
भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है।।
गरीबी के दिये सा गर्दिशों में भी मैं जगमग हूँ।
मेरे घर अब उजाला बन के मुझमें कौन रहता है।।
बहा कर खत तेरे सारे यूँ गंगा के…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on January 17, 2019 at 6:35pm — 2 Comments
बह्र- 2122-2122-2122-22
है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।
जो समझ पाए न तुम क्या फायदा कहकर है।।
शोर कितना ही मचाये, या करे अब बकझक।
मैं समझ लेता हूँ मेरा दिल भी इक दफ्तर है।।
खुश नशीबी है मेरी नफ़रत मुहब्बत जंग की।
हार कर भी जीतने जैसा ही इक अवसर है।।
अब मैं ढक लेता हूँ खुद-का ये बदन अच्छे से।
अब नहीं मैं पहले जैसा गन्दगी अंदर है।।…
Added by amod shrivastav (bindouri) on December 23, 2018 at 3:01pm — 2 Comments
बह्र - 1222-122-2212-22
कोई यूँ खुश हुआ हो अपना खुदा पाकर।।
बहुत पछताएंगे वो मेरा पता पाकर।।
सफर चलना है कैसे ,लेकर चलन कैसा।
उन्हें अहसास होगा ,आबोहवा पाकर।।
वो अपनी ज़द में ही अपना आशियाँ चुन लें ।
कहाँ होता है आदम से बा वफ़ा पाकर।।
मुझे अब मुल्क़ से ये मजहब ही निकालेगा ।
बहुत खुश है मुझे यह जलता हुआ पा कर ।।
मैं अपनी आरजू अब अपना कहूँ कैसे ।
ये तो खुश है मेरे बच्चों से दगा पा कर…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on October 18, 2018 at 7:29pm — No Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on October 7, 2018 at 11:06pm — 4 Comments
बहर
1212-1122-1212-22
मेरे खयाल में अब फासलों से आती है।।
तुम्हारी याद भी अब दूसरों से आती है।।
कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।
है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।
की जर्रा जर्रा कही टूट कर है बिखरा यूँ।
सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है।।
मसल चुका हुँ सभी कुछ मैं जह्न के भीतर।
अभी भी तेरी कसक , हौसलों से आती है।।
गुजर रही है मुहब्बत की तिश्नगी दे कर।
जो…
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 13, 2018 at 9:30pm — 5 Comments
बह्र - 2122-1221-22
इतना उलझा है आदम बसर में।।
खुद से पूछे वो है किस सफर में ।।
क्या समझ पाएगे रात भर में।।
फर्क है इस नजर उस नजर में।।
ना बदल पाऊं बिलकुल न बदले।
पर है कोशिश उड़ूँ कुतरे पर में।।
अपनी मंजिल से है लापता जो ।
चीखता फिर रहा, रह-गुजर में।।
हर मुसाफिर की कोशिस यही बस।
सब सलामत रहे मेरे घर में।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक- अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
बह्र-212-212-212-212
घर पे अपने बुरा या भला ठीक हूँ।।
गुमशुदा हूँ अगर गुमशुदा ठीक हूँ।।
पर्त धू की चढ़ी,दीमकों का बसर।
हो लगी चाहे सीलन पता ठीक हूँ।।
मेरा लहजा है कोई कहे न कहे।
मैं रदीफ़ ए ग़ज़ल काफिया ठीक हूँ।।
ठाठ की टोकरी या तुअर झाड़ की ।
घर के सपने संजो अधभरा ठीक हूँ।।
शान ओ शौक़त न कोई बसर चाहिए।
बस है चादर फटी अध-ढका ठीक हूँ।।
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आमोद बिन्दौरी…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on August 18, 2018 at 5:00pm — 4 Comments
2122-2122-2122-212
आप को जाना ही है तो आज कल इतवार क्यों।
तोडना गर दिल ही है तो प्यार और मनुहार क्यों।।
आप की नजरें बयाँ क्यों कर बहाना है नया ।
आप की यह भीगती पलकों में ये उपहार क्यों।।
शौख था गर भूलना ही भूल जाते बे -शबब।
खुशबुएँ ज़ेहनी , अभी भी कर रहे गुलजार क्यों।।
रोक लो यह छटपटाती रूह का एहसास है ।
जल चुका है आशियाँ जो खोज इसमें प्यार क्यों।।
देखना गर चाहते हो मेरे चेहरे में ख़ुशी।
हाथ में लेकर खड़े हो आप…
Added by amod shrivastav (bindouri) on August 5, 2018 at 1:01pm — 4 Comments
2122-2122-2122
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आज खुद को आज कहकर जानता है।।
हल वो बूढ़ा सा शज़र ,पर जानता है।।
किसका कितना पेट भूखा रह गया अब ।
घर का चूल्हा ही ये बेहतर जानता है ।।
कैसा बीता है शरद और ग्रीष्म बरखा।
मुझसे बेहतर घर का छप्पर जानता हैं।।
कैसे कटती हैं मेरी तन्हा सी रातें ।
खाट तकिया और बिस्तर जानता है।।
दर्द के किस दौर से गुजरा हुआ मैं।
आह का निकला ही अक्षर जानता है।।
आमोद बिंदौरी , मौलिक…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on May 24, 2018 at 9:30am — 5 Comments
बह्र:- 2122-2122-2122-212
एक तरफ़ा हो नहीं सकता कोई भी फैसला।।
दर्द दोनों ओर देगा ये सफर ये रास्ता।।
अब रकीबत का असर आया है रिस्ते में मेरे।
दरमियाँ अब दिख रहा है दूरियां और फासला।
बीज रिश्ता ,फासले के आज कल बोने लगा ।
अब फसल नफरत की पैदा खेत में वो कर रहा।।
लाख समझाया मगर उनको समझ आया नहीं।
दम मुहब्बत तोड़ देगी, गर नहीं होंगे फ़ना।।
बस जरा सा मुस्कुराकर कर दिया हल मुश्किलें।
फर्क अब पड़ता नहीं ,मैं…
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 7, 2018 at 10:53pm — 10 Comments
बह्र -1212-1122-1212-22
बड़ा शह्र है ये अपना पता नहीं मिलता।।
यहाँ बजूद भी हँसता हुआ नहीं मिलता।।
दरख़्त देख के लगता तो आज भी ऐसा ।
के ईदगाह में अब भी खुदा नहीं मिलता।।
समाज ढेरों किताबी वसूल गढ़ता है।
वसूल गढ़ता ,कभी रास्ता नहीं मिलता।।
मैं पढ़ लिया हूँ कुरां,गीता बाइबिल लेकिन ।
किसी भी ग्रन्थ में , नफरत लिखा नहीं मिलता।।
मुझे भी दर्द ओ तन्हाई से गिला है पर।
करें भी क्या कोई हमपर फ़िदा नहीं…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 30, 2018 at 11:11am — 6 Comments
बह्र ,2122-2122-2122
फिर मैं बचपन दोहराना चाहता हूँ।।
ता -उमर मैं मुस्कुराना चाहता हूँ ।।
जिसमें पाटी कलम के संग दवाइत।
मैं वो फिर लम्हा पुराना चाहता हूँ ।।
कोयलों की कूह के संग कूह कर के ।
मौसमी इक गीत गाना चाहता हूँ ।।
टाटपट्टी ,चाक डस्टर, और कब्बडी।
दाखिला कक्षा में पाना चाहता हूँ।।
ए बी सी डी, का ख् गा और वर्ण आक्षर।
खिलखिलाकर गुनगुनाना चाहता हूँ ।।
आमोद बिन्दौरी / मौलिक /अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 24, 2018 at 11:23am — 5 Comments
बह्र:-221-2121-2221-212
आधा है तेरा साथ ओर आधी जुदाई है।।
कुछ इस तरह चिरागे दिल की रौशनाई है ।।
चहरे में मुस्कुराहटें आई हैं लौट कर ।
जब जब भी मैंने याद की ओढ़ी रजाई है।।
विस्मित नहीं हुई अभी,अपनी हो आज भी।
रिश्ता जरूर बदला है अब तू पराई है।।
कितना भी पढ़ लो जिंदगी की इस किताब को ।
मासूस हो यही अभी,आधी पढाई है।।
नजरों से हूबहू अभी वो ही गुजर गया।
जिसकी है जुस्तजू मुझे, तन पे सिलाई है…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2018 at 7:10pm — 12 Comments
बह्र 2122-2122-2122-212
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दे रहा है ज़िस्म को जो दर कदम पर इक सिला।।
इक तेरी तस्वीर और अंतिम तिरा वो फैसला।।
खंडरों की शानों शौक़त दिन ब दिन बेहतर हुई।
जैसे पतझड़ कह रहा हो लौट मुझको मय पिला।।
बढ़ रहा हूँ कुछ कदम, हूँ कुछ कदम ठहरा हुआ।
बाद तेरे टूटने जुड़ने लगा है हौसला।।
ना कभी ओझल हुआ था,ना ही ओझल हो कभी।
इसमें है अहसासे उलफत ,इश्क का जो भी मिला।।
चल चलें कुछ दूर पैदल, दो कदम मंजिल बची ।
दो कदम…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 20, 2018 at 6:30pm — 8 Comments
बह्र:-2122-2122-2122-212
बढ़ गई जिस दौर रिश्तों की नमीं और दूरियां ।।
खुद-ब-खुद लेनी पड़ी खुद को खुद की सेल्फियां।।
जिसको समझा शान आखिर अब वो आ कर के खड़ा ।।
मुँह चिढ़ाता दौर मेरा ,खुद -जनी नाकामियां।।
नाम अब है गर्व का ,खुदग़रज ओऱ बे अदब।
झुकना अब न चाहता हैं नवजवां कोई मियां।।
देश के होने लगे जब मज़हबी हालात यूँ।।
राजनीतिक सेंकने लगते हैं अपनी रोटियां।।
रास्ता सबका अलग, अब बँट ही जाना है…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 11:56am — 5 Comments
बह्र:-2122-2122-2122-212
तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया
"ये ख़बर ज्यूँ ही मिली कि तू पराया हो गया
धुंध छा जाती न आँखें रोक पाती अश्क अब।
तेरे बिन जीवन यूँ मेरा टूटी माला हो गया।।
कैसे खुद को मैं बचाता प्यार का है रंग चटख।
प्रेम के रंग से लिपट जब ईश ग्वाला हो गया।।
कुछ बताया अश्क ने यूँ अपनी इस तक़दीर पर।
जब से प्याली में वो टपका तब से हाला हो गया।।
ठोकरें बदली…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 15, 2018 at 4:00pm — 11 Comments
जिन्दा इक सवाल है ।
सबका एक ख्याल है ।।
कुछ मंदिर को दो ,
कुछ मस्जिद को दो ..
सब को जरूरत है खुशियों की
ईश्वर भी निढाल है
जिन्दा एक सवाल है
रोटी , कपड़ा , मकान
जरुरत है हर इंसान
वो बंगलों में रख दो
वो झोपड़े में रख दो
कंफ्यूशन , है बवाल है
जिन्दा एक सवाल है।
कमरा बना नहीं पाते
की बच्चे सुरक्षित हों !
मंदिर बनेगा..मस्जिद बनेगी
जमीनें आरक्षित हों ???
कौंधता ,…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2018 at 11:05am — 1 Comment
बह्र -212-221-221
सोंच को इक तीर करती है ।।
कुछ यूँ ये तस्वीर करती है।।
कुछ भी हो की बात कर और।
मन में हलचल पीर करती है।।
दर्द उलफत है ये सायद की।
दिल को रिसता नीर करती है।।
सुन सुनाई दे रहा कुछ यूँ।
ये हवा तपशीर करती हैं।।
बा वफ़ा या बेवफा ना वो।
फैसले तक़दीर करती है।।
जिंदगी भी बाद उलफत के।
पैरों में जंजीर करती है।।
खुद को पत्थर से रगड़ने के।
बाद…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2018 at 10:00am — 2 Comments
2122-2122-2122-212
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खूबसूरत है चमन चश्मा हटा कर देखिए।।
जीस्त में उल्फत भरा किरदार ला कर देखिए।।
ढाकिये अपने ही तन के जख्म कोई गम नहीं।
पर ये खुशियाँ गैर के चेहरे सजा कर देखिए।।
एक सा होगा नही हर आदमी हर दौर का।
भ्रान्तियों का आँख से चश्मा हटा कर देखिए।।
इक भलाई प्यार की देती है लज्जत बे सबब।
बस जरा घी सोंच में अपनी मिला कर देखिए।।
आदमी से आदमी को बाँटिये हरगिज नही।
मजहबी होता न हर आदम वफ़ा कर…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 4, 2018 at 4:00pm — 5 Comments
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