वही हँसाता है हमें, वही रुलाता है
गम ओर ख़ुशी देकर आज़माता है
अपनों की अहमियत भी सीखाता है
बिछुडों को फिर वही मिलाता है
यकीं खुदा का तो बड़ा सीधा है
मारता है वही,वही जिलाता है
इसका उसका क्या है जग में
सबका हिस्सा तो वही बनाता है
नेमतें उसकी तो बड़ी निराली है
छीनता है कभी,कभी दिलाता है
मेरे घर में कभी तुम्हारे घर में
खुशियाँ भी तो वही पहुँचाता है
आखिर भूले…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 17, 2012 at 11:15am — No Comments
जिम्मेदारियाँ
हो राज या समाज
धर्म निभाना
जिम्मेदारियाँ
खुद का आंकलन
जाँच परख
जिम्मेदारियाँ
जब भी हो चुनाव
खरा ही लेना
जिम्मेदारियाँ
धरती या आकाश
प्यार ही बाँटे
Added by नादिर ख़ान on October 16, 2012 at 12:44pm — 3 Comments
तालाब में मगरमच्छ
शिकार की तलाश में हैं
गिरगिट अपना रंग बदले
दबे पाँव जमे हैं
मकड़ियाँ जाल बुनने में
व्यस्त हैं ।
इन सबके बीच
फूलों को फर्क नहीं पड़ता…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 12, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
हमने शेरों को ठिकाने दिये हैं
आज गीदड़ हमें डराने लगे हैं
जिनके हाथों में रहनुमाई दी थी
बस्तियाँ हमारी वो जलाने लगे हैं
जिन्हे धर्म का मतलब नहीं पता
लोग क़ाज़ी उन्हें बनाने लगे हैं
लूट-खसोट, धोखा जिनका ईमान
वो तहज़ीब हमको सिखाने लगे हैं
जो आए तो थे ख़बर हमारी लेने
हौंसला देख ख़ुद लड़खड़ाने लगे हैं
Added by नादिर ख़ान on October 7, 2012 at 11:30pm — 10 Comments
ये परेशानियाँ तो आनी-जानी है
मधुमेह तो कभी दिल की बीमारी है
गम है तो खुशी की वजहें भी हैं
रोते गुज़रे तो क्या जिंदगानी है
दिल के ज़ख़्मों से यूँ न घबराओ
बीते वक़्त की ये हसीं निशानी है
वक़्त बे वक़्त कुछ नहीं होता
जो मिला सब खुदा की मेहरबानी है
हर काम कल पर न छोड़ा करो
बर्बादिये वक़्त भी एक बीमारी है
गम की वजहें समझ नहीं आती
यही तो हमारी तुम्हारी कहानी है
Added by नादिर ख़ान on October 4, 2012 at 6:32pm — 4 Comments
मनाना तो चाहता हूँ ईद
मगर बंद है
मेरे दिल के दरवाज़े
और ईद का चाँद
मुझे दिखाई नहीं पड़ता
दिवाली,दशहरा कैसे मनाऊँ
मेरे अन्दर का रावण
नहीं मरता मुझसे
बापू की जयंती है
पर मै
उनसे भी शर्मिंदा हूँ
मेरे अन्दर हिंसा है
लालच है
मै नहीं मिला पाता
अपनी नज़रें
उनकी तस्वीर से
जिन शहीदों ने
जान तक दे दी
हमारी आज़ादी के लिए
हमने उनका सब कुछ लूट…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on September 30, 2012 at 7:00pm — 5 Comments
तुम जल रहे हो, हम जल रहे हैं
ख़ुद अपनी आँच में पिघल रहे हैं
नया दौर हैं नये हैं रस्मों-रिवाज़
अब इंसानियत के पैगाम बदल रहे हैं
बाज़ारों की रौनक है, जादू का खेल
किस…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on September 28, 2012 at 4:00pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |