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Pratibha pande's Blog (42)

लंच बॉक्स (लघुकथा)

"मैंने अपना लंच बॉक्स खुद पैक कर लिया है, निकल रहा हूँ मै।"

"आज इतनी जल्दी क्या है निखिल को' रचना सोचने लगी I

उसने बाहर कमरे में आकर समय देखा, दस बज गए थेI आज उसे हर हाल में दो बजे से पहले पोस्ट ऑफिस जाकर अपनी कविता पोस्ट कर देनी है I लगभग एक महीने पहले अपने बेटे को हिंदी कविता पढ़ाते समय उसके दिमाग़ में एक बहुत पुराना दबा हुआ कीड़ा फिर रेंगने लगा थाI कॉलेज के दिनों में वो कविता लिखती थी और तारीफ भी पाती थीI फिर सब छूट गयाI कुछ दिन पहले एक अखबार में उसने कविता भेजने का आमंत्रण पढ़ कर…

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Added by pratibha pande on July 12, 2015 at 4:00pm — 7 Comments

लघु कथा मट्ठियाँ

अम्मा  फ़ैल कर  जमीन पर   बैठी  आवाज़  करके  चाय  सुड़क  रही  थी I  मैं  अपने  दोनों  बच्चों  के  चेहरों  पर,  अम्मा  को  लेकर चिढ      साफ़  देख  पा  रही  थी I

" सविता  , तू  डब्बा भर के  मट्ठियाँ  क्यों  नहीं  बना  के  रख लेती ,I  सुबह  शाम  पकड़ा  दिया कर इनके हाथों में I दिन  भर  तंग  करते  हैं ये बना  वो  बना I"

" माँ , इन्हें  पसंद  नहीं  है मट्ठियाँ I"

" पसंद  नहीं  हैं ? अरे  तुम्हारी  मम्मा  की  बुआ , गर्मी  की छुट्टियों  में  आती  थी , दो  महीने  के  लिए अपने…

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Added by pratibha pande on July 6, 2015 at 6:16pm — 12 Comments

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दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
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