घर बदला, बदला जहां, बदले बदले लोग ।
अर्थ बदलते देखिए, क्या जोगी क्या जोग ।।
पलकों से उतरी जरा, धीरे धीरे रात ।
शामों की दहलीज पे, साए करते बात ।।
धुंधली धुधली हो गई, यादों की सौगात।
अफरातफरी वक़्त की, ये कैसे हालात।।
आवाजे होती गई, सब की जब खामोश।
शहर बिचारा क्यों मढ़े, सन्नाटे को दोष।।
ढलती शामों में किया, पीपल ने संतोष।
बिछड़ गई परछाइयाँ, सूरज भी खामोश ।।
हमने जब से ले लिया, इश्क़…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 3:00am — 8 Comments
मिलना तो दिल खोल के, मिल लो मेरे यार।
छोटी सी है ज़िन्दगी, तुम छोड़ो तकरार ।।
बहुत दिनों से गर्म है, सपनो के बाज़ार ।
बदल रहे है देखकर, रिश्तो के आसार।।
आँखे भर भर आ गई, छूकर उनके पाँव।
यादों में फिर छा गया, बरगद वाला गाँव।।
मौसम की पदचाप भी, गुमसुम और उदास।
आँगन की तुलसी डरी, सहमा देख पलाश ।।
रहने दो गुल बाग में, गुंचा और बहार ।
हरियाली का इस तरह, ना बाटो सिंगार।।
मालिक के दीदार…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 2:30am — 12 Comments
वक़्ते-पैदाइश पे यूं
मेरा कोई मज़हब नहीं था
अगर था मैं,
फ़क़त इंसान था, इक रौशनी था
बनाया मैं गया मज़हब का दीवाना
कि ज़ुल्मत से भरा इंसानियत से हो के बेगाना
मुझे फिर फिर जनाया क्यूँ
कि मुझको क्यूँ बनाया यूं
पहनकर इक जनेऊ मैं बिरहमन हो गया यारो
हुआ खतना, पढ़ा कलमा, मुसलमिन हो गया यारों
कहा सबने कि मज़हब लिक्ख
दिया किरपान बन गया सिक्ख
कि बस ऐसे धरम की खाल को
मज़हब के कच्चे माल को…
Added by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 2:00am — 22 Comments
2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122
रात की काली सियाही जिंदगी में छा गई तो आप ही बतलाइये हम क्या करेंगे
चार दिन की चांदनी जब आदमी को भा गई तो आप ही समझाइये हम क्या करेंगे
जन्नतों के ख्वाब सारे टूटकर बिखरे हुए है, बस फ़रिश्ते रो रहे इस बेबसी को
दो जहाँ के सब उजालें तीरगी जो खा गई तो आप ही फरमाइये हम क्या करेंगे…
Added by मिथिलेश वामनकर on November 29, 2014 at 10:30pm — 21 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |