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अरुन 'अनन्त''s Blog – April 2013 Archive (7)

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,

आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,

बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,

चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,

देश का नेता हमारा…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 28, 2013 at 4:17pm — 16 Comments

कविता : मैं रसिक लाल, तुम फूलकली

आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों, मित्रों एवं प्रिय पाठकों आप सभी को सादर प्रणाम. भौंरा और फूल पर आधारित उनके मिलन एवं विरह पर एक कविता लिखने का छोटा सा प्रयास किया है, आशा है आप सभी को पसंद आएगा.

रसिक लाल = भौंरे का नाम

मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.

मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

तुम मीठे रस की मलिका हो,

मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.

तुम मंद - मंद मुस्काती हो,

मैं होता रहता घायल हूँ.

मेरा तन काला,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 22, 2013 at 11:21am — 25 Comments

कुछ दोहे

पढ़ लिख कर आगे बढ़ें, बनें नेक इन्सान ।

अच्छी शिक्षा जो मिले, बच्चें भरें उड़ान ।।

बच्चे कोमल फूल से, बच्चे हैं मासूम ।

सुमन की भांति खिल उठें, बनो धूप लो चूम ।।

देखो बच्चों प्रेम ही, जीवन का आधार ।

सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 10, 2013 at 5:06pm — 11 Comments

दोहे एक प्रयास

नयन झुकाए मोहिनी, मंद मंद मुस्काय ।

  रूप अनोखा देखके, दर्पण भी शर्माय ।।

नयन चलाते छूरियां, नयन चलाते बाण ।

नयनन की भाषा कठिन, नयन क्षीर आषाण ।।

दो नैना हर मर्तबा, छीन गए सुख चैन ।…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 4, 2013 at 12:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल : रदीफ़ों काफियों को चाह पर अपने चलाता है.

बहर : हज़ज मुसम्मन सालिम

वज्न: १२२२, १२२२, १२२२, १२२२

रदीफ़ों काफियों को चाह पर अपने चलाता है,

बहर के इल्म में जो रोज अपना सिर खपाता है,

हुआ है सुखनवर* उसकी कलम करती ग़ज़लगोई*,

सभी अशआर के अशआर वो सुन्दर बनाता है,

कभी वो लाम* में जागे कभी वो गाफ़* में सोये,

सुबह से शाम तक बस तुक से अपने तुक भिड़ाता है,

मुजाहिफ* को करे सालिम, करे…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 3, 2013 at 2:30pm — 15 Comments

ओ बी ओ तृतीय वर्षगाँठ को समर्पित : 'मत्तगयन्द' सवैया

'मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ

जात न पात न भेद न भाव न रूप न रंग न डोर दिवारें.

एक धरा यह प्रेम भरी जँह प्रेम लिए हम आप पधारें,

सीख सिखाय रहे सबहीं यँह ज्ञान भरें अरु लेख निखारें,

देश विदेश मिलाय दिए जन मेल…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 2:33pm — 17 Comments

ओ बी ओ - शुभकामनाएं

ओबीओ का आज यह, दिवस बहुत है खास,
वर्षगांठ है तीसरी, सफल रहा प्रयास,

सफल रहा प्रयास, बना प्रीत संग धागा,

हमें मिला यह मंच, हमरा…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 1:00pm — 16 Comments

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