For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Umesh katara's Blog – May 2015 Archive (4)

अदालत ने मेरा क़ातिल मुझे ठहरा दिया साहिब

1222 1222 1222 1222

---------------------------------------

मुहब्बत है कभी जिसने मुझे कहला दिया साहिब

मगर फिर घाव उसने ही बहुत गहरा दिया साहिब 



जरूरत ही नहीं होती मुहब्बत में व़फाओं की 

के बच्चों की तरह उसने मुझे बहला दिया साहिब



सड़क पर भूख से बेचैन माँ आँसू बहाती है

निवाला बेटे को जिसने ,कभी पहला दिया साहिब

 

मुहब्बत मिट नहीं पायी दीवारों में चुनी फिर भी

रक़ीबों ने जमाने से बहुत पहरा दिया साहिब



बहुत छेड़ा है दुनिया ने खुदा की पाक…

Continue

Added by umesh katara on May 20, 2015 at 4:47pm — 10 Comments

ग़ज़ल -उमेश कटारा

2122  2122 2122

--------------------------------------------

मर्ज बढ़ता जा रहा अब क्या रखा है

बेअसर होती दवा अब क्या रखा है



ढ़ूँढ ले अब हम सफर कोई नया तू 

मुस्करादे कब कज़ा अब क्या रखा है



रच रहे हम साजिशें इक दूसरे को 

साथ चलने में बता अब क्या रखा है



साथ आना जाना भी क्यों महफिलों में 

बन्द कर ये सिलसिला अब क्या रखा है



शहर पूरा है, मगर आया नहीं तू

बिन मिले ही मैं चला अब क्या रखा है



उमेश कटारा

मौलिक व…

Continue

Added by umesh katara on May 9, 2015 at 9:52am — 13 Comments

रेल की पटरी जैसे चलती ,साथ चले हैं हम दोनों

पग पग तेरा मान करूँ 
अपमान मेरा मत कर तू भी
एक दिन तो सबको मरना है
अभिमान जरा मत कर तू भी
जीवन की आँख मिचौली में
ठहरूँ पल भर मैं पलक तले 
क्या है भरोसा कल सुबह तक 
कौन बचे और कौन जले
कौन मिलेगा बीच सफर में
साथ मेरे ही चलता जा
आयू भी आधी निकल गयी 
हाथ मले तो मलता जा
इक दूजे को देते रहें है
जाने क्यों हम गम दोनों
रेल की पटरी जैसे चलती
साथ चले हैं हम दोनों

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित




Added by umesh katara on May 7, 2015 at 7:20am — 8 Comments

ग़ज़ल --उमेश-------------पत्थरों के शहर में हुआ हादसा

बन्द कर दो सितम अब खुदा के लिये

जुल्म कितना करोगे अना के लिये



कत्ल करदे मगर यूँ न बदनाम कर

हाथ उठने लगे हैं दुआ के लिये



इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा

पास पैसे न हों जब दवा के लिये



चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी

है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये



बाद जाने के तेरे बचा कुछ नहीं

जी रहा हूँ फ़कत मैं क़जा के लिये



पत्थरों के शहर में हुआ हादसा

मर गया इश्क देखो व़फा के लिये



उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित…

Continue

Added by umesh katara on May 3, 2015 at 9:00am — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service