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Chetan Prakash's Blog – August 2023 Archive (6)

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1212 2121 1212 122

चला जाऊँगा जहाँ से तुम्हें सँवार कर के

तुम्हारी इन ख़ामियों को कहीं निखार कर के

नवाज़ा मुझको ख़ुदा ने वो अज़्म धार कर के

बुलंदी बख़्शी है उस ने ग़ज़ल बहार कर के

बड़े बड़ो को दिखाया है आइना ख़ुदा ने

निकाल दी हैंकड़ी भी उन्हें सुधार कर के

वो चोर मौसेरे भाई हैं बागबाँ चहेते

उन्हें गिरा दो निगाह से दोस्त ख़ार कर के

बहार सावन की आयी कली- कली खिली है

कि हो…

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Added by Chetan Prakash on August 28, 2023 at 2:30pm — No Comments

ताज़ा ग़ज़लः

221    2121    1221   212

अच्छा हो तुम पढ़ो ये ग़ज़ल दोस्त ध्यान से

मैंने कहा है इसको बड़े मान - कान से

हम राह में बढेंगे तो मंज़िल मिलेगी ही

मक़सद भी होगा पूरा जियें आन - बान से

हर शख़्स बदहवास अभी भागता शहर

हलकान ज़िन्दगी में है वो खान - पान से

अवसाद इस सदी की समस्या जनाब है

तनहाई मारती रही इनसान जान से

अनजान है ज़माना अभी शोध चाँद पर

आग़ाज भारती हुआ इस बार शान से

आदम…

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Added by Chetan Prakash on August 24, 2023 at 9:18am — No Comments

सावन गीत....कजरी

मोरा साजन छूटो जाय

सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..

पपीहा करत है पी हू पी हू

मोहे जोबन विरह हो जाय

सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!

कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में

मोरा सावन सूखौ जाय

सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!

नाचत मोर बदरिया बरसत है

मोरा आँगन बिसरौ जाय

सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!

मरौ ददुरवा बूँद  पी  रह जाय

लो सोवत रहत साल भर वो तो

मो पै बिन पिया…

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Added by Chetan Prakash on August 21, 2023 at 2:30pm — 1 Comment

एक ताज़ा ग़ज़ल

212 1222 212 1222

दिलजले लगे हैं फिर घर नया बसाने में

रह गये हैं वो खुद पीछे हमें उठाने में

रतजगे कई होते दोस्त घर बनाने में

भारती बहा है खूँ फिर इसे बसाने में

राह भटके रहबर अब ख़ुदगर्ज़ हुए हैं वो

बेलगाम होकर याँ व्यस्त घर लुटाने में

बाँट कर हुकूमत ने साधे स्वार्थ अपने हैं

पर लगे ज़माने उसको हमें जगाने में

भुखमरी ग़रीबी हटती नहीं हटाने से

बढ़ रही अमीरी उल्टा उसे भगाने…

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Added by Chetan Prakash on August 16, 2023 at 8:30am — 2 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1212 1212 1212 1212

सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से

मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से

निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से

वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से

रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में

मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से

हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है

ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से

निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं…

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Added by Chetan Prakash on August 14, 2023 at 2:30pm — 2 Comments

दरबारी राग पंचक

कौन बाँधे तू बता, बिल्ली ...घंटी आज ।

चूहों की बारात है, गधों के सर स्वराज।।

ग़ज़ल की बज़्म है सजा, चूहों.. का दरबार ।

कहते कलाम... शोहदे, होते ....हाहाकार ।।

रोबोट हो गये सखा, सच के पैरोकार ।

शेर हथेली पीटते, करते हैं जयकार ।।

अब तो शिकार हो रहे, शायर मंच विकार ।

रीमोट, सिद्ध बन गये, ग़ज़ल कहें..दरबार ।।

बनते मूर्ख बुद्ध यहाँ, फँसे हैं वाग्जाल ।

कौन यहाँ है पूछता, मरहूम…

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Added by Chetan Prakash on August 3, 2023 at 12:00pm — No Comments

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