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2122 2122 2122 212 

मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहे
पीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहे

वो ग़लत हैं जानते थे पर अहेतुक स्नेहवश
हम सभी से मित्रवत व्यवहार भी करते रहे

आपके मंतव्य में थे अन्यथा कुछ अर्थ तो
मौन रहकर भाव से प्रतिकार भी करते रहे

दुष्प्रचारित कर रहे वो क्या कहूँ छल छद्म पर
शत्रुओं का पक्ष लेकर प्यार भी करते रहे

लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम में
अस्तु वो संबंध में व्यापार भी करते रहे

दुख विरह स्वीकार करके प्रेम के सम्मान में
अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहे

लिजलिजा हो मौन तो कायर समझते हैं सभी
तो अहिंसक शस्त्र पर नित धार भी करते रहे

शांति का हो पथ प्रदर्शित इसलिये बहुधा यहाँ
कर्म हम रणछोड़ के अनुसार भी करते रहे

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' 1 hour ago

क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी...

लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम में
अस्तु वो संबंध में व्यापार भी करते रहे

दुख विरह स्वीकार करके प्रेम के सम्मान में
अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहे

शांति का हो पथ प्रदर्शित इसलिये बहुधा यहाँ
कर्म हम रणछोड़ के अनुसार भी करते रहे

वाह वाह अनुपम हरेक शेर कमाल....आपका धन्यवाद इस ग़ज़ल के लिए 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey 5 hours ago

आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान अपने सहयात्रियों को भी इसे सुनाया था. अपरिहार्य कारणों से लेकिन टिप्पणी नहीं दे पाया था. . 

इस गजल के प्रत्येक शेर पर पहले ढेर ढेर ढेर ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकार करें.

शांति का हो पथ प्रदर्शित इसलिये बहुधा यहाँ
कर्म हम रणछोड़ के अनुसार भी करते रहे .. 

ऐसी मिसरा-दर-मिसरा तार्किक गजलें पटल पर कम ही आती हैं. 

शुभातिशुभ

Comment by Chetan Prakash 19 hours ago

वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय!

"कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते रहे" ।

आदरणीय, भाव की व्याख्या जरूर कीजिए  !

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय yesterday

बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on Thursday

अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहे
वाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी करूँगा.
क्या ही खूब हो गया है यह आ. रवि जी 
बधाई 

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