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अनुशासन (लघुकथा) / रवि प्रभाकर

“आज तो आप कुछ ज्यादा ही देर से आईं है, आपने तीन पीरीयड मिस कर दिए"  सरकारी स्कूल की अध्यापिका ने दूसरी अध्यापिका से कहा

“क्या बताऊँ, मुन्ने के स्कूल में आज ‘पेरेन्ट-टीचर मीट’ थी, सो वहाँ जाना बहुत ही जरूरी था, अब आप तो जानती ही हैं कि कान्वेंट स्कूलों में अनुशासन का कितना ध्यान रखा जाता है।”

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 11:31pm

लघुकथा समाप्त वहाँ होती है जहाँ तुलनात्मक रूप से अपने दायित्व और माहौल को कमतर बताया जाता है. इस बेहतरीन व्यंग्य के लिए हार्दिक धन्यवाद, रवि भाई.
इस विधा पर आपकी पकड़ मुग्ध तो करती ही है, आश्वस्त भी करती है.
इस लघुकथा के लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 2:58pm

काश ! मैडम अपने विद्यालय के प्रति भी अनुशासित होती i सुन्दर व्यंग्य i  शिक्षाप्रद लघु कथा i

Comment by Sushil Sarna on July 16, 2014 at 7:30pm

एक कटु सत्य  … जिसे अपने सहजता से कह दिया   … एक विचारणीय प्रश्न है ? हार्दिक बधाई इसे सब के साथ साझा करने के लिए। 

Comment by Shubhranshu Pandey on July 16, 2014 at 6:17pm

आदरणीय रवि जी, 

एक कड़वा सच. जिसे आपने बडी़ आसानी से कह दिया है. एक तो अपने बच्चे को कान्वेन्ट स्कूल में भेज दिया है. याने अपने स्कूल पर भरोसा नहीं है...

ये एक गम्भीर समस्या है सरकारी स्कूल की. सरकारी स्कूल में कोई सामर्थ्यवान अपने बच्चों को भेजता ही नहीं है. जिस दिन से किसी जिला के सरकारी अफ़सर अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने लगेंगे उसी दिन से इन स्कूलों की बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जायेगा...कथा पढ़्ने के बाद एक विचार आया जिसे आप सबों के साथ बांट लिया...

सादर.

Comment by विनय कुमार on July 16, 2014 at 6:12pm

बहुत कटु सत्य , मापदंड अलग अलग होते हैं | बधाई इस शानदार लघु कथा के लिए |

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2014 at 8:46pm
चलो मैडम ने कहीं तो अनुशासन का ख्याल रखाल. सत्य- कथा के लिए बधाई .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 15, 2014 at 8:18pm

जहाँ स्वतंत्रता  है वहां अनुशासन के यही हाल है... :))     बहुत ही बढ़िया विषय पर आपने अपनी लघुकथा साझा की आदरणीय रवि जी, आपको बहुत बहुत बधाई 

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