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कागज़ की नाव :कहानी

“यार अच्छी-खासी नौकरी है तुम्हारी ये दिन रात इंटरनेट और मोबाइल पर क्या खेल खेलते रहते हो, थोड़ा हम लोगों के पास भी बैठा करो, पिता ने बड़ी ही मित्रतापूर्वक भाव से ‘आनंद’ से पूछा !

आनंद ने अपना लैपटॉप बंद करते हुए बड़े ही सहज भाव से कहा “कुछ नहीं पिताजी आपकी समझ से बाहर है यह सब, जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊँगा तब आपको अपने आप पता चल जाएगा !”

पिता अपना सा मुहँ लेकर खामोश हो गए तभी आनंद की माँ आ गईं और उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, बेटा सबकुछ तो ठीक चल रहा है, अच्छी खासी तन्खाव्ह है तुम्हारी, हम भी तुम से कुछ अपेक्षा नहीं करते, बस तुम्हारी शादी हो जाए तो मैं और तुम्हारे पिता भी गंगा नहा आयें !

शादी का नाम सुनते ही आनंद भड़क गया और कहने लगा “आप दोनों बस शादी के पीछे पड़े रहो, इसके अलावा कोई काम तो है नहीं आप दोनों को !”

बेटे का इस तरह का व्यवहार देखकर दोनों एक दुसरे का मुहं देखने लगे और चुपचाप अपने कमरे में चले गए !

समय बीतता गया, इधर आनंद अपने उसी ढर्रे में लगा रहा और एक दिन अचानक ख़ुशी से अपने पिता और माँ के गले लगकर बोला “लो आज आपका बेटा करोड़पति बन गया है !” माँ की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था पर पिता के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आयीं !  उन्होंने पूछ ही लिया “आनंद ये कैसे हुआ? कुछ बताओगे तुम?”

आनंद ने कहा “आप लगता है मुझ पर शक कर रहें है?” तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैंने ये सारा पैसा शेयर बाजार से कमाया है !

वो तो ठीक है बेटा पर बाजार में लगाने के लिए तुम्हारे पास पैसा आया कहाँ से? “पिता ने कुछ ज्यादा ही ऊँची आवाज में पूछ लिया !”

अब आनंद ने सब कुछ सच ही बताना उचित समझा ,उसने बताया कि किस तरह उसने अपनी सैलरी ,बैंकों से पर्सनल लोन और अपने दोस्तों से उधार पैसे ले-लेकर शेयर बाजार में पैसा लगाया और आज उन शेयरों का मूल्य १ करोड़ से भी ज्यादा हो गया था !

इतना सुनते ही माँ ने चहकते हुए कहा “आप तो बेकार में ही मेरे बेटे पर शक कर रहे हो” पर आनंद के पिता ने उन्हें बीच में ही डांटकर चुप करा दिया और आनंद को टोकते हुए कहा “आनंद आज ही अपने सारे शेयर बेच दे और इस कागज़ की नाव की सवारी बंद कर बाहर निकल आ, जिसका जितना लिया है उतना वापस कर दे !”

“वापस कर दूं ? आपका दिमाग खराब हो गया है क्या?” अभी तो बाजार चढ़ रहा है, देखना आप में कैसे इस १ करोड़ को २ करोड़ में बदलता हूँ ! माँ ने भी आनंद कि बात का समर्थन किया और कहने लगी, “अरे आप भी न ,कुछ पता-वता तो है नहीं आपको, अरे सही तो कर रहा है मेरा लाल !”

पिता चुप हो गए, दिन बीतते गए और एक दिन आनंद के चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख उन्होंने पूछ ही लिया “क्या बात है आनंद इतने परेशान क्यों दिख रहे हो?”

आनंद फफककर रोने लगा और उसने बताया कि कैसे १ का २ बनाने के चक्कर में वो लगा रहा और बाजार की गिरावट की मार उस पर कैसे पड़ी , कैसे बैंकों और दोस्तों ने, उससे अपना कर्जा मांगने के लिए उस पर दबाव बनाया और कैसे आज वो ५७ लाख के क़र्ज़ के नीचे दबा पड़ा था, और कैसे क़र्ज़ चुकाने के लिए उसने अपनी माँ के गहने तक गिरवी रख दिए थे !

पिता सन्न रह गए, इधर आनंद कि माँ भी मुहं लटका कर चुपचाप आँसूं बहा रहीं थी !

पिता थोडा सा नर्वस जरूर हुए पर चेहरे पर झूठी मुस्कान लाते हुए बोले, “चलो कोई बात नहीं, जो बीत गयी सो बात गयी ” अपना वो नॉएडा वाला मकान तो इससे ज्यादा में बिक ही जाएगा,वैसे भी खाली ही पड़ा रहता है आजकल, पर तुम दोनों मगर कसम खाओ आज से मेरा कहना मानोगे, अब अश्रुपूरित माँ और बेटे उनके चरणों में पड़े थे ! पिता ने माहौल को हल्का करने के लिए डीवीडी पर गाने चला दिए, और तभी एक गाना बज उठा “वो कागज़ की नाव तुम्हारी कहो जफ़र कैसे डूबी , तुम तो यार बड़े माहिर थे ऐसी नाव चलानें में...!!

© हरि प्रकाश दुबे

“मौलिक एवम् अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on June 26, 2017 at 12:23am

 बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय  सुनील प्रसाद(शाहाबादी) जी ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 26, 2017 at 12:22am

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज जी ,रचना पर आपके समर्थन के लिए आपका आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 26, 2017 at 12:20am

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ,आपकी सीख से काफी कुछ समझ आ गया है , पुनः ध्यान मैं रखकर ही रचना पोस्ट करूँगा ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 26, 2017 at 12:17am

आदरणीया  rajesh kumari जी ,हार्दिक आभार आपका ,आपकी बातों को संज्ञान में लेते हुए  इसे कहानी की श्रेणी मैं ही रख दिया है ,पुनः आभार आपका ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 26, 2017 at 12:13am

सहमत आदरणीय  Ravi Prabhakar सर ! सादर

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 24, 2017 at 2:34pm
सुन्दर सार्थक संदेश देती कथा।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 23, 2017 at 11:29pm
बहुत ही शानदार ढंग से गहरे भाबो का चित्रण किया है ..सादर बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 10:25pm

आ०  दीदी  श्री ने जो कहा , उसे धान में रखिये , नाटक में सबसे छोटा एकांकी होता है उस एक अंक में कुछ दृश्य होते है   लघु कथा भी बस एक दृश्य ही है . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 18, 2017 at 8:39pm

एक सच्चा सार्थक सन्देश दे रही है ये कहानी बहुत अच्छी है किन्तु ये लघु कथा की श्रेणी में नहीं आएगी इसमें बहुत से काल खंड हैं इसे कहानी की श्रेणी में रख सकते हैं .बहुत बहुत  बधाई आपको .

Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2017 at 11:21am

आदरणीय हरि दुबे भई जी, मुझे यह रचना किसी भी प्रकार से लघुकथा नहीं लगी। सादर

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