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आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये

फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये

 

गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं

घाटियों में आप इन बादलों को देखिये

 

रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर

आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये

 

दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे

दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये

 

रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा

मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये

 

आपके सर पर चलो एक छत है तो सही

जी रहे हैं किस तरह बेघरों को देखिये

 

आजकल ‘खुरशीद’ भी बादलों में जा छुपा

तीरगी है हर तरफ़ गर्दिशों को देखिये

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by दिनेश कुमार on January 14, 2015 at 6:32am
Behtarin gazal hui hai...waaaaah Khurshid bhai....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 13, 2015 at 10:51pm

आदरणीय खुर्शीदभाई, आपकी ग़ज़ल सीधी सादी ज़ुबान में बहुत कुछ साझा करती है. इस ग़ज़ल का मतला भी उसी मेयार का है.
जबकि गोद में वादी लिए .. एक खूबसूरत दृश्य प्रस्तुत कर रहा है.
इस ग़ज़ल का मक्ता भी मुझे पसंद आया.
इस उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 13, 2015 at 10:10pm

कल्पना की ऊँची उड़ान .....रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर..आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये.......शानदार रचना ,आदरणीय खुरशीद जी  आपको हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 13, 2015 at 7:32pm
आदरणीय खुर्शीद जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल कीजिये।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 13, 2015 at 6:52pm
आपके सर पर चलो एक छत है तो सही
जी रहे हैं किस तरह बेघरों को देखिये
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, बधाई , सादर।
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 13, 2015 at 6:44pm
वाह वाह बहुत खूब आदरणीय!

मक्ता लाजवाब वाह!


आजकल ‘खुरशीद’ भी बादलों में जा छुपा
तीरगी है हर तरफ़ गर्दिशों को देखिये
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 13, 2015 at 5:29pm

खुर्शीद भाई

बहुत उम्दा गजल कही आपने i कई अशआर दिल में उतरते चले गए i आपको बधाई i

Comment by Shyam Narain Verma on January 13, 2015 at 2:17pm

खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

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