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“हैलो! क्या चल रहा है ?”

“सर!  अभी प्रमुख नेताओं का भाषण बाकी है, लगता है लम्बा चलेगा । भीड़ भी काफी है।“

"ओके!" 

“हैलो! , सर !  मंच के ठीक सामने कुछ दूरी पर एक पेड़ है, उस पर एक आदमी फांसी लगाने की कोशिश कर रहा है।“

“अरे! “सोच क्या रहे हो ? , कैमरा घुमाओ उसकी तरफ !, फोकस करो! , हिलना भी मत जबतक................!”

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 8:03pm

प्रशंसात्मक  उदार प्रतिक्रिया  और आपकी    सदाश्यता के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करती हूँ आ. मिथिलेश वामनकर जी

Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 7:59pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार आ. विजय शंकर जी, सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2015 at 4:21pm

अच्छी लघुकथा है महिमा जी, बधाई स्वीकारें।

Comment by Mala Jha on May 2, 2015 at 8:54am
सत्यकथा पर आधारित बेहतरीन लघुकथा।बहुत बहुत बधाई आदरणीय महिमाश्री।
Comment by neha agarwal on May 2, 2015 at 2:49am
वाह आदरणीया महिमा जी बहुत खूब।
Comment by Archana Tripathi on May 2, 2015 at 1:45am
बहुत बेहतरीन लघुकथा
Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 12:11am
सच में, ऐसी संवेदनहीनता दिखाई दे जाती है. आदरणीया महिमा श्री जी, सफल लघु-कथा के लिए बधाईयाँ.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 1, 2015 at 9:17pm

केजरीवाल  की  सभा में ऐसा कुछ हुआ था - सही घटना पर सही फोकस . बधाई हो , सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 1, 2015 at 8:43pm

कमाल का प्लाट 

क्या कटाक्ष है, 

कथा, वातावरण, मर्म सब कमाल ही कमाल 

एक सशक्त और सफल लघुकथा 

अपने मर्म को जिस सघनता से अभिव्यक्त कर रही है, मुग्ध हूँ पढ़कर 

आदरणीय महिमा जी इस प्रस्तुति हेतु हृदय से बधाई दे रहा हूँ

और इस प्रस्तुति हेतु आभार भी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 7:24pm
“अरे! “सोच क्या रहे हो ? , कैमरा घुमाओ उसकी तरफ !, फोकस करो! , हिलना भी मत जबतक................!”
आखिर मीडिया जनता को समर्पित होता है, पूर्ण समर्पण भाव से कैमरे से शूट करते रहो.
बहुत सार्थक , लघु-कथा , आदरणीय महिमा श्री जी, बधाई. सादर।

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