For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों तू बात नहीं करता

उस  नीम के पेड़ की?

जिसके भूत की बातों से,

बचपन में मुझे डराता था

और फिर मजे लेकर

मेरी हंसी उडाता  थाI

 

उस कुँए की भी तू

अब बात नहीं करता ,

जिसमे पत्थर फेंक

हम दोनों चिल्लाते थे ,

फिर कुँए के भूत भी

पलटकर आवाज़ लगाते थेI

 

उन इस्माइल चाचा का भी

जिक्र    तू टालता है

जिनके बाग़ से कच्चे 

अमरुद खाते थे और  

वो कितना चिल्लाते थे, 

पर रात को पके अमरुद

खुद घर दे जाते थे I

 

फोन में तू बातें करता है

गाँव की तरक्की की,

और मै  आवाजें सुन लेता हूँ

नीम और कुँए के रोने कीI

क्यों कि यार मै जानता हूँ

कि उस पेड़ पर  अब

भूत भी रहने से डरते हैं,

और उस कुँए से भी

लोग दूर ही रहते हैं I

 

ये तो बता ही सकता है कि

कितनी जोड़ी नपुंसक आँखें

जड़ी थी घरों की मुंडेर पर,

जब उन लड़कियों को मारकर

लटकाया था उस नीम पर?

या जब उनकी माँ

कुँए में कूदी थी

तो क्या कुँए के भूत भी

थे चिल्लाये

या वो भी सहमे रहे

मुहँ में ताला लगाये?

 

तू कैसे बताएगा

कि इस्माइल चाचा सूनी आँखों से

अब बस दरख्तों को हैं ताकते,

कि उन का बेटा जेहादी हो गया है

और मीठे अमरूदों में अब

शक का ज़हर घुल गया हैI

 

फिर भी मैं शहर में रहकर

बस गाँव को ही जीता हूँ,

आज के ज़ख्मों को

बीते कल की यादों से सीता हूँ I 

तेरे गढ़े हुए उन भूतों से

आज भी मेरा नाता है,

क्या करूँ यार i  

गाँव बहुत याद आता हैI

 

मौलिक और अप्रकाशित        

 

 

 

 

 

 

 

Views: 1795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on August 5, 2015 at 11:37am

आप देर से ही सही पर आईं तो,  इस  उत्साह वर्धन के लिए आपका दिल से आभार आ० राजेश कुमारी जी

Comment by pratibha pande on August 5, 2015 at 11:34am

आ० शरदिंदु जी रचना की सराहना के लिए आपका आभार

Comment by pratibha pande on August 5, 2015 at 11:32am

आ० मोहन सेठी जी  ,कविता पर उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:20pm

आज भूत से ज्यादा इंसान खतरनाक हो गए हैं इसमें कोई दो राय नहीं आपने अपनी बिम्बात्मक शैली में गाँव की जिस पावनता को याद दिलाया है वो हृदय स्पर्शी है ..आज कुछ भी तो नहीं रहा पहले जैसा बहुत ही अच्छी रचना है प्रतिभा जी नेट की प्रोब्लम के चलते देर से आना हुआ रचना पर ,दिल से ढेरों बधाई लीजिये |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on August 4, 2015 at 12:54pm
आदरणीया प्रतिभा जी, मुग्ध हो गया आपके विचार और कल्पना की इस सम्मिलित अभिव्यक्ति से. बहुत ही सामयिक, बहुत ही संवेदनशील रचना के लिए आपको साधुवाद. सादर.
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 8:13am

आदरणीया pratibha pande जी बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई ....दिल को छू गई 

Comment by pratibha pande on August 3, 2015 at 10:02pm
रचना की प्रशंसा के लिए आपका आभार आ० नादिर खान जी
Comment by नादिर ख़ान on August 3, 2015 at 9:01pm

और मै  आवाजें सुन लेता हूँ

नीम और कुँए के रोने कीI

क्यों कि यार मै जानता हूँ

कि उस पेड़ पर  अब

भूत भी रहने से डरते हैं,....

जब उन लड़कियों को मारकर

लटकाया था उस नीम पर?

या जब उनकी माँ

कुँए में कूदी थी

तो क्या कुँए के भूत भी

थे चिल्लाये

या वो भी सहमे रहे

मुहँ में ताला लगाये?...

अगर भूत वाकई होते... तो इंसानों की बस्ती से दूर भाग गए होते ...

सुंदर रचना के लिए शुभकामनायें, अदरणीया प्रतिभा जी .....

Comment by pratibha pande on August 3, 2015 at 8:31pm
उत्साहवर्धन के लिए आपका तहे दिल से आभार आ० हर्ष जी
Comment by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 6:50pm

आदरणीय pratibha pande जी बहुत ही मार्मिक रचना है....मेरी जानिब से ढेरों दाद !! आभार !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service