For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अक्षय गीत ....

मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ

मैं पग पग  आगे  बढ़ता  हूँ
कुछ भी कहने से डरता  हूँ
पीर हृदय की कह  न  सकूं
बन दीप शलभ मैं जलता हूँ

शशांक का विरह गीत कहूँ,या रैन की निर्दयी रीत कहूँ
तुम ही बताओ  कैसे  प्रिय , मैं  कोई  अक्षय  गीत कहूँ

अतृप्त तृषा  है. घूंघट  में
अधरों की हाला प्यासी है
स्वप्न नीड़  पर  नयनों  के
पी बिन  घोर  उदासी  है

देह की अतृप्त धड़कन को ,निष्ठुर पलों का संगीत कहूँ
तुम  ही  बताओ  कैसे  प्रिय , मैं  कोई  अक्षय गीत कहूँ

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 855

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on February 15, 2017 at 1:43pm

आदरणीय   Ram Asheryजी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का  दिल से आभार। 

Comment by Ram Ashery on February 11, 2017 at 10:59pm

अति सुंदर रचना  आपने अपने मन की अभिव्यक्ति बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत की है आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो 

Comment by Sushil Sarna on January 7, 2017 at 1:20pm

आदरणीय   vijay nikore      जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का  दिल से आभार। 

Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 11:38am

बहुत ही  सुन्दर गीत, भाव भी उच्च-कोटि के ... हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।

Comment by Sushil Sarna on December 28, 2016 at 4:43pm

आदरणीय  सुरेश कुमार 'कल्याण'  जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का  दिल से आभार। 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 27, 2016 at 8:01pm
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर।
Comment by Sushil Sarna on December 26, 2016 at 2:37pm

आदरणीय डॉ गोपाल  जी भाई साहिब प्रस्तुति को अपना मूल्यवान समय देकर उसके तकनीकि पक्ष से रूबरू करवाना  .... हृदय आपको नमन  करता है। प्रथम तो सृजन को प्रोत्साहन देने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित मात्रिक त्रुटि को मैं सुधार कर इसे आपकी कसौटी पर खरा उतारने का पूरा प्रयास करूंगा। सृजन आपके मार्गदर्शन का दिल से आभारी है। 

Comment by Sushil Sarna on December 26, 2016 at 2:31pm

आदरणीय समर कबीर साहिब व्यस्तता के बीच भी आपका प्रस्तुति को अपना आशीर्वाद देना  ... दिल नमन एवम हार्दिक आभार व्यक्त करता है। 

Comment by Sushil Sarna on December 26, 2016 at 2:30pm

आदरणीय  Mahendra Kumar     जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का  दिल से आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2016 at 8:40pm

आ०  सरना जी , आपकी रचना 16 मात्रिक छंद पर चलकर बीच बीच में टूट गयी है यानी कि मात्राए पूर्ण नहीं रह पायी इससे गेयता बाधित हुयी है जैसे - 

मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,   या टूटे मन की प्रीत कहूँ

2 2 1   1 2  2   2 1  1 2      2  2 2  2    2    2 1 1 2   (16,16) अरिल्ल की भाँति
तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,  मैं कोई अक्षय गीत कहूँ

 2    2  1 2 2   2 2    2       2   2 2  2 2     2 1 1 2     (15,16) अरिल्ल में प्रत्येक चरण का प्रथम  अक्षर गुरु होता है जैसा अपने किया भी है पर 'तुम ही बताओ में प्रथम अक्षर गुरु न होने से गड़बड़ हो गयी . पूरी कविता इस निकष  पर कसेंगे तो लाजवाब गीत बन जाएगा. सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service