For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२

भँवरे कलियाँ तरु  झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|

दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|

कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|

जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|

 

नव लाल गुलाल मले मितवा हँसती सखियाँ हँसती नगरी|

कजरा लहका गज़रा महका  मुख लाल हुआ पिघली सगरी|   

तन काँप उठा धड़का जियरा चुप देह रही चुप होंठ हिले|    

पर बोल पड़ी अँखियाँ पगली छलकी झट प्रीत भरी गगरी|

मौलिक एवं अप्रकाशित  

Views: 1252

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2017 at 1:03pm

आद० मोहम्मद आरिफ़ जी ,आपको ये सवैया छंद मुक्तक पसंद आये दिल से आभार आपका .

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on March 9, 2017 at 10:12am
आदरणीया राजेश कुमारी जी फाग की सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Ram Ashery on March 9, 2017 at 8:29am

फाग से सरोबोर रचना के लिए आपको बधाई स्वीकार हो 

Comment by vijay nikore on March 8, 2017 at 11:02pm

मनमोहक रचना के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी

Comment by Satyanarayan Singh on March 8, 2017 at 10:54pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सादर बधाई प्रेषित है 

    

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 8:55pm
आदरणीया राजेश मैम बहुत अच्छी लगी आपकी प्रस्तुति। ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 8, 2017 at 7:02pm

आदरनीया राजेश जी , बहुत सुन्दर सवैया की रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by रामबली गुप्ता on March 8, 2017 at 6:57am
आदरणीया बहन राजेश कुमारी जी सवैयों पर प्रयास अच्छा हुआ है। दिल से बधाई लीजिये। बताना चाहूँगा कि सवैये के चारों पदों में तुकांतता का निर्वहन होता है जबकि आपने दोनों सवैयों के तीसरे पद में तुकांतता नही रखी है। ये दुर्मिल मुक्तक हो सकता है सवैया नही। इसी प्रकार दूसरे सवैये में 'सगरी' शब्द का क्या आशय लिया है आपने? या फिर कोई आंचलिक शब्द है? उदाहरण स्वरूप दुर्मिल का एक प्रयास देखिए-
प्रिय से रँगवावन को चुनरी,मन मोद लिए मुसकाय चली।
सब छोड़ जहाँ के लाज सखे! भर थाल गुलाल उड़ाय चली।
पट पीत व लाल हरा रँग से, मन को रँग प्रेम रँगाय चली।
नव यौवन के मद से सबके, मन में मदिरा छलकाय चली।।
Comment by नाथ सोनांचली on March 7, 2017 at 3:29pm
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत दुर्मिल सवैया, क्या कने, मन खुस हो गया। बधाई आपको सादर।
Comment by Mohammed Arif on March 6, 2017 at 6:50pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब,फाग बयार से सराबोर आपके दुर्मिल सवैया ने मुझे बहुत प्रभावित किया । होली की रंगों भरी शुभकामनाएँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
32 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
7 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service