गर है अंजाम महब्बत का क़यामत होना
मुझको मंजूर क़यामत से महब्बत होना
बे-मआनी नहीं ये सब है महब्ब्त की ख़ुराक
दरमियाँ उसके गिले शिकवे शिकायत होना
आस्माँ की ही अना का है नतीज़ा यारो
उसके ही चाँद सितारों में बगावत होना
बेच दी है मेरे गुलशन की महक गुलचीं ने
इसको कहते हैं अमानत में ख़यानत होना
ये ही करता है मुकम्मल मेरे अफ़साने को
तेरे क़िरदार में शामिल ये नज़ाकत होना
दिल्लगी भूल से करना न कभी मुझसे सनम
मार डालेगा तेरे दिल में अदावत होना
देखने ख़्वाब ज़रूरी हैं जिन आँखों के लिये
है ज़रूरी उन्हीं ख़्वाबों का हकीकत होना
खींच लायेगा तुझे दारो-रसन तक इक दिन
तुझ में कुछ हद से ज़ियादा ही शराफ़त होना
लिख दिया रब ने मेरे इश्क़ की पेशानी पे
अब तो लाज़िम है यहाँ मेरी हलाकत होना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।बेहतरीन गज़ल।
दिल्लगी भूल से करना न कभी मुझसे सनम
मार डालेगा तेरे दिल में अदावत होना
आद० लक्ष्मण भैया ,बहुत बहुत आभार आपको गज़ल पसंद आई
आ. राजेश दी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आद० समर भाई जी ग़ज़ल की तारीफ़ और विस्तृत समीक्षा के लिए दिल से शुक्रगुज़ार हूँ .आपकी इस्स्लाह से भाई जी मेरे शेर समृद्ध हो जाते हैं इस लिए हर रचना पर आपका इन्तजार रहता है .आपके मार्ग दर्शन के अनुसार इसमें कुछ संशोधन कर लूँगी .
आद० दयाराम मैथानी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आद० राज़ नवाद्वी जी आपको गज़ल पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपकी बात सही है है होना चाहिए ये टंकण मिस्टेक हुई है ठीक कर लूँगी
आद० राहुल जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आद० नरेन्द्र जी आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'
बे-मआनी नहीं ये सब हैं महब्ब्त की ख़ुराक'
इस मिसरे में सहीह शब्द है "ख़ूराक"
' ये फ़लक की ही अना का है नतीज़ा यारो
उसके ही चाँद सितारों में बगावत होना'
इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,सानी मिसरे में 'ही' शब्द भर्ती का है,शैर यूँ हो सकता है:-
'ये फ़लक ही की अना का है नतीजा यारो
इस तरह चाँद सितारों में बग़ावत होना'
' ये जो महकी मेरे गुलशन से रफ़ीकों की गली
इसको कहते हैं अमानत में ख़यानत होना'
इस शैर में 'ख़यानत' क़ाफ़िया ऊला मिसरा कमज़ोर होने से वो भाव पैदा नहीं हो सके जो होना थे ,ये शैर यूँ हो सकता है :-
'बेच दी है मेरे गुलशन की महक गुलचीं ने
इसको कहते हैं अमानत में ख़यानत होना'
' ये ही करता है मुकम्मल मेरे अफ़साने को
तेरे क़िरदार में शामिल ये नज़ाकत होना'
इस शैर के सानी मिसरे में 'नज़ाकत' शब्द स्त्रीलिंग है,इसलिये ऊला मिसरे में 'करता' की जगह "करती" शब्द उचित होगा ।
' दिल्लगी भूल से करना न कभी मुझसे सनम
मार डालेगा तेरा मुझसे अदावत होना'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,क्योंकि रदीफ़ 'होना' की जगह' "करना" हो रही है,ग़ौर करें ।
' अब तो लाज़िम तेरा बाइस-ए-हलाकत होना'
ये मिसरा लय में नहीं,यूँ हो सकता है:-
'अब तो लाज़िम है यहाँ मेरी हलाकत होना'
बाक़ी शुभ शुभ ।
आदरणीय राजेश कुमारी जी, बहुत सुंदर गजल हुई है। इस सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।
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