For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिसके पुरखे भटकाने की - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२


ये मत समझो मान के अपना गले लगाने आया है
जीवन में  खुशियाँ  कैसे  हैं  भेद  चुराने  आया है।१।

**
अनहोनी सी लगती मुझको अब कुछ होने वाली है
नदिया के तट आज समन्दर प्यास बुझाने आया है।२।

**
जिसके पुरखे भटकाने की रोटी खाया करते थे
वो कहता है आज देश को राह दिखाने आया है।३।

**
जिस बस्ती को दसकों पहले हमने खूब सदाएँ दी
उस बस्ती को सूरज  देखो  आज जगाने आया है।४।

**
अपने हिस्से तूफाँ तो थे माझी भी क्या खूब मिला
पतवारों  को  तोड़-ताड़कर  यार  बचाने  आया है।५।

**
कर्ज उधारी उपहारों की रीत धनिक के हिस्से में
कौन भला ऐसे निर्धन  के  ठौर ठिकाने आया है।६।

**

मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2020 at 5:46am

आ. भाई मनोज कुमार जी, सादर आभार।

Comment by मनोज अहसास on January 21, 2020 at 7:18pm

अच्छी गजल हुई आदरणीय मित्र हार्दिक बधाई सतत प्रयत्नशील रहें सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2020 at 12:22pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on January 19, 2020 at 9:04pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

'जिस बस्ती को दसकों पहले हमने खूब सदाएँ दी'

इस मिसरे में 'दसकों' को ''दशकों" और 'दी' को "दीं" कर लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2020 at 6:48am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । गजल पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए आभार। ओबीओ परिवार के गुणी जनों के परामर्श से लेखन को सुधारने का प्रयास कर रहा हूँ । आपका स्नेहाशीष बना रहे यही आकाक्षा है । सादर...

Comment by vijay nikore on January 16, 2020 at 4:46pm

आप गज़ल अच्छी लिखते हैं। हार्दिक बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2020 at 12:54pm

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 15, 2020 at 10:29am

आदरणीय मुसाफ़िर भाई, सादर अभिवादन। इस सुंदर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 3:54pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। आपको गजल अच्छी लगी, लेखन सपल हुआ। स्नेह एवं उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 14, 2020 at 12:48pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। लाज़वाब गज़ल।

जिसके पुरखे भटकाने की रोटी खाया करते थे
वो कहता है आज देश को राह दिखाने आया है।३।

**
जिस बस्ती को दसकों पहले हमने खूब सदाएँ दी
उस बस्ती को सूरज  देखो  आज जगाने आया है।४।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service