सूरज की गरमी को देखो, पड़ती सब पे भारी
सूखे ताल तलैया भाई, पिघली सड़कें सारी
सूख चली देखो हरियाली, सहमा उपवन सारा.
पंथिन को तो छांह नहीं अब, क्योंकर चलता आरा
पशु पक्षी सब प्यास के मारे, हुए हाल बेहाल
जल संसाधन मंत्री ए.सी., बैठे फेंके जाल
उनकी बात भी छोड़ो भैया, ऐसा कुछ करवा दो
आँगन अन्दर बाहर तालन, मां पानी भरवा दो
वृहद पौध रोपण की भाई, कर लो अब तैयारी
देंगे सब आशीष तुम्हें जो, दुनिया तुम पे वारी
जैसे बचाते अपना जीवन वैसे बचा अब बारी
जल संरक्षण किया नहीं तो, जल पे मारामारी ||
Comment
प्रदीप कुमार कुशवाह जी जल सरक्षण पर बहुत सुन्दर बेहतरीन लिखा है बहुत बधाई
आदरणीय लोहानी जी , सादर
Namskaar Pradeep ji antim panktiyon me puri ki puri kavita ka saar likh diya aapne sach yadi aaj bhi jalsanrakshan ke baare me nahi socha to wo din door nahi jab dusra dwitiy vishw yuddg paani ke liye hoga.
आदरणीय कुशवाहा जी,नमस्कार, बदलते पर्यावरण की चिंता और समाधान दोनों प्रस्तुत करती उत्तम रचना..साधुवाद....
सन्देश देती रचना, बधाई .
वृहद पौध रोपण की भाई, कर लो अब तैयारी
देंगे सब आशीष तुम्हें जो, दुनिया तुम पे वारी
जैसे बचाते अपना जीवन वैसे बचा अब बारी
जल संरक्षण किया नहीं तो, जल पे मारामारी ||
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