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यह रचना मैंने करीब १०-११ साल  पहले लिखी थी और आज जब इस रचना को पढ़ती हूँ तो ऐसा लगता है मानो न तब कुछ बदला था न आज कुछ बदला है बस अगर कुछ बदला है तो इस पुरुष प्रधान समाज में तीर मारने वाले बदल गए है. ये रचना हमेशा मेरे मन के निकट रही है इसलिए आप सभी तक पहुंचा रही हूँ ----
"उड़ान"
मैं हूँ इक छोटी सी चिड़िया
मन चाहे इस खुले गगन में
जी भर ऊँची भरू उड़ान .
पर जब भी मन की आशा को
स्वयं सार्थक करती हूँ,
तभी अचानक कंही दूर से
एक भयंकर तूफां आकर
मेरे कोमल पंखों को
ज़हर भरा एक तीर मार कर
मुझको घायल कर जाता है.
देख के मैं अपने पंखों को
आहत हो बेबस रह जाती.
पर कुछ थोड़े समय बाद ही
नए जोश और उम्मीदों से 
इन पंखों को पुनः जोड़ती,
फिर मन को विश्वास दिलाती ,
और पुनः ये ख्वाहिश करती
इस सुन्दर से नील गगन में
जी भर ऊँची भरूं उड़ान .......
मोनिका जैन "dolly"

Views: 911

Comment

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Comment by Rekha Joshi on May 20, 2012 at 2:41pm

देख के मैं अपने पंखों को 
आहत हो बेबस रह जाती.
पर कुछ थोड़े समय बाद ही
नए जोश और उम्मीदों से  
इन पंखों को पुनः जोड़ती,
फिर मन को विश्वास दिलाती ,आशा और उम्मीद पर जिंदगी टिकी हुई है ,बहुत बढ़िया बधाई |

Comment by Nilansh on May 12, 2012 at 11:40am

v nice

Comment by Roshni Dhir on May 11, 2012 at 9:08pm

Monika ji... apki kavita me jo ashawadi soch hai woh bahut sunder hai........

sunder bahvon ke liye badhai 

abhar 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2012 at 8:41pm

मोनिका जी, समय के साथ अनेकों भाव आते हैं और जाते हैं , उन्ही भावों को आप सहेजने का प्रयास की है , बधाई आपको |

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 7:20pm

कुछ थोड़े समय बाद ही
नए जोश और उम्मीदों से  
इन पंखों को पुनः जोड़ती,

फिर मन को विश्वास दिलाती ,
और पुनः ये ख्वाहिश करती 
इस सुन्दर से नील गगन में 
जी भर ऊँची भरूं उड़ान ....

Bahut hi sundar bhaav hai...

Comment by Bhawesh Rajpal on May 11, 2012 at 4:18pm

देख के मैं अपने पंखों को आहत हो बेबस रह जाती. पर कुछ थोड़े समय बाद ही नए जोश और उम्मीदों से  इन पंखों को पुनः जोड़ती, फिर मन को विश्वास दिलाती , और पुनः ये ख्वाहिश करती इस सुन्दर से नील गगन में जी भर ऊँची भरूं उड़ान .......  

जीवन को नए सिरे से जीने की आशा जगती ये पंक्तियाँ  निराश मन में नई उमंग जगा जाती हैं

बहुत-बहुत बधाई  आपको मोनिका जी  !

Comment by आशीष यादव on May 11, 2012 at 2:55pm

रचना बेशक पुरानी है लेकिन तासीर नई सी लगती है।
बधाई

Comment by Monika Jain on May 10, 2012 at 12:49am

Aap sabhi ko hardik dhanyavaad. aur han Prachi ji apni kavita zarur yaha post kriye.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 9, 2012 at 9:45pm

मोनिका जी,
               पर कुछ थोड़े समय बाद ही
        नए जोश और उम्मीदों से 
        इन पंखों को पुनः जोड़ती,
              फिर मन को विश्वास दिलाती ,
              और पुनः ये ख्वाहिश करती
        इस सुन्दर से नील गगन में
        जी भर ऊँची भरूं उड़ान .......
 बहुत सुन्दर उम्मीद जगाती रचना. बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 9, 2012 at 5:38pm

मोनिका जी आपकी यह कविता बहुत कुछ कह रही है पंख टूटना उनको जोड़ कर फिर प्रयास करना फिर पंखों का टूट जाना यही सब तो होता आया है एक नारी की जिंदगी में बाकी सब कुछ प्राची जी ने कह दिया .आपको बधाई इस सुन्दर रचना के लिए 

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