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देख के मैं अपने पंखों को
आहत हो बेबस रह जाती.
पर कुछ थोड़े समय बाद ही
नए जोश और उम्मीदों से
इन पंखों को पुनः जोड़ती,
फिर मन को विश्वास दिलाती ,आशा और उम्मीद पर जिंदगी टिकी हुई है ,बहुत बढ़िया बधाई |
v nice
Monika ji... apki kavita me jo ashawadi soch hai woh bahut sunder hai........
sunder bahvon ke liye badhai
abhar
मोनिका जी, समय के साथ अनेकों भाव आते हैं और जाते हैं , उन्ही भावों को आप सहेजने का प्रयास की है , बधाई आपको |
कुछ थोड़े समय बाद ही
नए जोश और उम्मीदों से
इन पंखों को पुनः जोड़ती,
फिर मन को विश्वास दिलाती ,
और पुनः ये ख्वाहिश करती
इस सुन्दर से नील गगन में
जी भर ऊँची भरूं उड़ान ....
Bahut hi sundar bhaav hai...
देख के मैं अपने पंखों को आहत हो बेबस रह जाती. पर कुछ थोड़े समय बाद ही नए जोश और उम्मीदों से इन पंखों को पुनः जोड़ती, फिर मन को विश्वास दिलाती , और पुनः ये ख्वाहिश करती इस सुन्दर से नील गगन में जी भर ऊँची भरूं उड़ान .......
जीवन को नए सिरे से जीने की आशा जगती ये पंक्तियाँ निराश मन में नई उमंग जगा जाती हैं
बहुत-बहुत बधाई आपको मोनिका जी !
रचना बेशक पुरानी है लेकिन तासीर नई सी लगती है।
बधाई
Aap sabhi ko hardik dhanyavaad. aur han Prachi ji apni kavita zarur yaha post kriye.
मोनिका जी,
पर कुछ थोड़े समय बाद ही
नए जोश और उम्मीदों से
इन पंखों को पुनः जोड़ती,
फिर मन को विश्वास दिलाती ,
और पुनः ये ख्वाहिश करती
इस सुन्दर से नील गगन में
जी भर ऊँची भरूं उड़ान .......
बहुत सुन्दर उम्मीद जगाती रचना. बधाई.
मोनिका जी आपकी यह कविता बहुत कुछ कह रही है पंख टूटना उनको जोड़ कर फिर प्रयास करना फिर पंखों का टूट जाना यही सब तो होता आया है एक नारी की जिंदगी में बाकी सब कुछ प्राची जी ने कह दिया .आपको बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
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