For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्मावलोकन के क्षणों में

मन मेरे

जब तू जूझता

डूबता , उतराता

फिर थक के बैठ 

किनारे सुस्ताता है

औ तब ये सब 

देख रही होती हैं 

मेरी आँखे 

सबसे परे

उन सारे पलों को

तुझे जीते हुए

औ तभी

विहँस पड़ती हैं

उसी क्षण 

जब उनमें से 

चुन लेता है तू

एक मोती    

18th May2012

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on May 21, 2012 at 8:38pm

वाह ! बहुत गहरी बात कहती हुई रचना ! आत्मावलोकन का महत्त्व समझती हुई !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2012 at 8:07pm

महिमा जी, अच्छी रचना, आत्मावलोकन से ही मोती मिलते है, बहुत बढ़िया,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2012 at 3:48pm

आत्मावलोकन के क्षणों में.. . सही है मोती मिलते हैं.

सुन्दर रचना

Comment by Nilansh on May 20, 2012 at 11:35am

औ तभी

विहँस पड़ती हैं

उसी क्षण 

जब उनमें से 

चुन लेता है तू

एक मोती    

bahut sunder likha aapne 

bahut subhkaamnaayen

Comment by Rekha Joshi on May 20, 2012 at 10:38am

मेरी आँखे 

सबसे परे

उन सारे पलों को

तुझे जीते हुए

औ तभी

विहँस पड़ती हैं

ati sundr bhaav,mahima ji ,badhai 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 9:05am

महिमाजी
सादर, बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति. बधाई.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 19, 2012 at 11:38pm

...........

मेरी आँखे 

सबसे परे

उन सारे पलों को

तुझे जीते हुए.............महिमा जी ये खूबसूरत पलों के मोती बड़े अनमोल होते हैं ...जो वक़्त रहते चुन लेता वही किस्मत वाला होता है। इस रचना ने मन मोह लिया। बहुत बहुत बधाई !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 19, 2012 at 10:12pm

सुन्दर रचना महिमा जी . ये आँखें बोलती हैं ..मन मेरे तू ऐसे ही बुना कर सुन्दर ढेर सारे सुन्दर कृत्य और प्यारे   प्यारे  सपने  ..और ये आँखें देखती तज्बीजती ढूंढ  लायें  सुनहरे  मोती  ....हरी  ओउम  ...भ्रमर  ५ 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 19, 2012 at 8:39pm
प्रिय महिमा, सस्नेह 
मैं ये नहीं जनता 
ये छाया या रहस्य वाद है
इतना मैं जानू निर्विवाद है 
बधाई 
मैं भी कुशवाहा जी के सुर में सुर मिला दे रहा हूँ, सरिता दीदी ने मतलब समझा दिया है!
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 19, 2012 at 6:29pm
प्रिय महिमा, सस्नेह 
मैं ये नहीं जनता 
ये छाया या रहस्य वाद है
इतना मैं जानू निर्विवाद है 
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service