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मोती..

आत्मावलोकन के क्षणों में

मन मेरे

जब तू जूझता

डूबता , उतराता

फिर थक के बैठ 

किनारे सुस्ताता है

औ तब ये सब 

देख रही होती हैं 

मेरी आँखे 

सबसे परे

उन सारे पलों को

तुझे जीते हुए

औ तभी

विहँस पड़ती हैं

उसी क्षण 

जब उनमें से 

चुन लेता है तू

एक मोती    

18th May2012

Views: 662

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Comment by Arun Sri on May 21, 2012 at 8:38pm

वाह ! बहुत गहरी बात कहती हुई रचना ! आत्मावलोकन का महत्त्व समझती हुई !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2012 at 8:07pm

महिमा जी, अच्छी रचना, आत्मावलोकन से ही मोती मिलते है, बहुत बढ़िया,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2012 at 3:48pm

आत्मावलोकन के क्षणों में.. . सही है मोती मिलते हैं.

सुन्दर रचना

Comment by Nilansh on May 20, 2012 at 11:35am

औ तभी

विहँस पड़ती हैं

उसी क्षण 

जब उनमें से 

चुन लेता है तू

एक मोती    

bahut sunder likha aapne 

bahut subhkaamnaayen

Comment by Rekha Joshi on May 20, 2012 at 10:38am

मेरी आँखे 

सबसे परे

उन सारे पलों को

तुझे जीते हुए

औ तभी

विहँस पड़ती हैं

ati sundr bhaav,mahima ji ,badhai 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 9:05am

महिमाजी
सादर, बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति. बधाई.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 19, 2012 at 11:38pm

...........

मेरी आँखे 

सबसे परे

उन सारे पलों को

तुझे जीते हुए.............महिमा जी ये खूबसूरत पलों के मोती बड़े अनमोल होते हैं ...जो वक़्त रहते चुन लेता वही किस्मत वाला होता है। इस रचना ने मन मोह लिया। बहुत बहुत बधाई !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 19, 2012 at 10:12pm

सुन्दर रचना महिमा जी . ये आँखें बोलती हैं ..मन मेरे तू ऐसे ही बुना कर सुन्दर ढेर सारे सुन्दर कृत्य और प्यारे   प्यारे  सपने  ..और ये आँखें देखती तज्बीजती ढूंढ  लायें  सुनहरे  मोती  ....हरी  ओउम  ...भ्रमर  ५ 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 19, 2012 at 8:39pm
प्रिय महिमा, सस्नेह 
मैं ये नहीं जनता 
ये छाया या रहस्य वाद है
इतना मैं जानू निर्विवाद है 
बधाई 
मैं भी कुशवाहा जी के सुर में सुर मिला दे रहा हूँ, सरिता दीदी ने मतलब समझा दिया है!
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 19, 2012 at 6:29pm
प्रिय महिमा, सस्नेह 
मैं ये नहीं जनता 
ये छाया या रहस्य वाद है
इतना मैं जानू निर्विवाद है 
बधाई 

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