हाइकु मुक्तिका:संजीव 'सलिल'
*
जग माटी का
एक खिलौना, फेंका
बिखरा-खोया.
फल सबने
चाहे पापों को नहीं
किसी ने ढोया.
*
गठरी लादे
संबंधों-अनुबंधों
की, थक-हारा.
मैं ढोता, चुप
रहा- किसी ने नहीं
मुझे क्यों ढोया?
*
करें भरोसा
किस पर कितना,
कौन बताये?
लुटे कलियाँ
बेरहमी से माली
भंवरा रोया..
*
राह किसी की
कहाँ देखता वक्त
नहीं रुकता.
अस्त उसी का
देता चलता सदा
नहीं जो सोया.
*
दोष विधाता
को मत देना गर
न जीत पाओ.
मिलता वही
'सलिल' उसको जो
जिसने बोया.
*
**************
Comment
परम आदरणीय सलिल जी सादर, बहुत सुन्दर हाइकु मुक्तिका का निर्माण,उतनी ही सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय आचार्यजी, मुझसे हुई आपकी अपेक्षा मुझे अभिभूत कर गयी. अवश्य प्रयास करूँगा.
आभार
आदरणीय आचार्य जी, किसी ने सच ही कहा है कि ..बात से ही बात बनती है, बहुत ही सुन्दर प्रयोग देखने को मिला, हाईकू मुक्तिका को हम लोग हाइकू का भारतीय संस्करण भी कह सकते हैं । बहुत ही बढ़िया जानकारी । एक बार पुनः बधाई ।
saurabh jee
apka abhe shat-shat. is vidha men apki rachna kee prateeksha hai. tb tk main kuchh naya karne men jutata hoon.
अद्भुत और एक अभिनव प्रयास हेतु सादर बधाइयाँ, आचार्य जी. दोहा-ग़ज़ल की एक संकर किंतु अत्यंत रोचक विधा के पश्चात हाइकू-मुक्तिका का सामने आना अपने वांगमय के उस अमर वाक्य आनो भद्राः कृतवो यन्तु विश्वतः को ही प्रतिपादित करता है. हम आर्यावर्तीय मनस प्रत्येक सुगढ़ को स्वीकारते हैं और अपना बना कर उसे अपनी शैली में प्रस्तुत करते हैं.
आप द्वारा हुआ प्रयास स्तुत्य और अनुकरणीय है. ..
सादर
प्रिय बागी जी!
हाइकु मुक्तिका संकर विधा है. यह जापानी छंद हाइकु के हिन्दीकरण को मुक्तिका के शिल्प में प्रस्तुत करती है. अतः इसमें दोनों छंद रूपों के लक्षण अपेक्षित है. वर्णिक छंद हाइकु के ३ पदों में ५-७-५ वर्णों का होना अनिवार्य है.
मुक्तिका में समान पदभार की पंक्तियाँ होती हैं. प्रथम दो पंक्तियों में पदांत-तुकांत समान होता है. शेष पंक्तियों में एक पंक्ति छोड़कर हर दूसरी पंक्ति में पदांत तुकांत समान होता है. दोनों को मिश्रित करने पर ५-७-५ वर्ण ऐसे चुनें जाएं जिनकी मात्रा समान हो तथा हर दूसरे हाइकु में पदांत तुकांत मिले तो उसे हाइकु मुक्तिका कहा जाना चाहिए. शेष चर्चा मंच पर उपस्थित विद्वान साथी करेंगे ही. मैंने आपका मंतव्य शिरोधार्य कर श्री गणेश कर दिया है.
आदरणीय आचार्य जी, यह प्रस्तुति पढ़ बरबस ही एक प्रश्न कौध गया कि, क्या "हाईकू मुक्तिका" विधा, जापानी "हाइकू" विधा से अलग है ? कृपया जानकारी साझा करना चाहेंगे ।
लुटे कलियाँ
बेरहमी से माली
भंवरा रोया..
*
राह किसी की
कहाँ देखता वक्त
नहीं रुकता.
अस्त उसी का
देता चलता सदा
नहीं जो सोया.
*
दोष विधाता
को मत देना गर
न जीत पाओ.
मिलता वही
'सलिल' उसको जो
जिसने बोया.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
बधाई आदरणीय सलिल जी
सादर
*
बहुत सुन्दर, कथ्य सान्द्र, सारगर्भित मुक्तिका आदरणीय संजीव जी, मुक्तिका को हाइकू की तरह ५-७-५ में लिखने के अभिनव प्रयास हेतु हार्दिक बधाई.
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