ककहरा
क- काले दिल कपड़े सफ़ेद
ख- खादी की नियत में छेद
ग- गद्दार देश को बेच रहे
घ- घर को रहे भालो से भेद
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
च- चिड़िया थी जो सोने की
छ- छलनी है आतंक की गोली से
ज- जहां तहां है ख़ून खराबा
झ- झगड़े, जात-धर्म की बोली से
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
ट - टंगी है आबरू चौराहे पे माँ की
ठ - ठगी सी आंसू बहाती है
ड - डरी हुयी है बलात्कारियों से
ढ - ढंग से जी नहीं पाती है
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
त - तलवे चाट रहा ईमान
थ - थूक रहा है देश जहान
द - देश तो जाए गर्त में अब
ध - धरा रह गया स्वाभिमान
न - नहीं नहीं अभी नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं
प - पढना- लिखना सब बेकार
फ- फ़ैशन की ऐसी चली बयार
ब - बच्चे- बूढ़ों का अत्याचार
भ - भाषा का सामूहिक बलात्कार
म - मत बोलो कुछ भी
मनो हुआ कुछ नहीं
य - यलगार, यलगार, यलगार
र - रुको मत बढ़ने की गुहार
ल - लड़ो या मरो कुछ करो तो यार
व - वरना देश का ना होगा उद्धार
श - शर्मशार करो माँ को नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं
ष - षटकोण सा रंगीन बनाना है
स – सरहद भी घर भी सजाना है
ह - हर ओर ख़ुशी फैलाना है
क्ष - क्षत्रिय की तरह तलवार उठाओ या
ज्ञ- ज्ञानी की तरह कलम उठाओ पर
श्र - श्रृंगारित सम्मानित देश बनाओ
Comment
//हाँ मैंने आज कल की पुस्तकों में श्र देखा है। //
मैं आपकी प्रस्तुति पर अनावश्यक बहस चला कर इस थ्रेड को भटकाना नहीं चाहता, किन्तु, जिन पुस्तक(ओं) में आपने इस वर्ण श्र को वर्णमाला के रूपमें देखा है क्या वे पुस्तकें मान्य व भाषायी तौर पर स्तरीय हैं ? भाईजी, भाषाओं की वर्णमालाएँ हमारे-आपके जैसे सामान्य पाठकों और जानकारों के हिसाब से नियत नहीं होतीं. तभी मैं ऐसा निवेदन कर रहा हूँ. इसे मेरा व्यक्तिगत मत न समझ कर विश्वस्त जानकारी समझियेगा.
प्रयोगधर्मी रचना हेतु पुनः धन्यवाद.
@PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA, @ SANDEEP KUMAR PATEL, @ Er. Ganesh Jee "Bagi", @ Laxman Prasad Ladiwala, @ Dr.Prachi Singh, @ अरुन शर्मा "अनन्त", @ सूबे सिंह सुजान आप सभी ने मेरी कविता सराही इसके लिए मैं आप सब का आभारी हूँ और प्रयासरत हूँ की सतत कुछ नया लिख सकूं, और यदि मुझसे लिखने में या टाइपिंग में कोई भूल हो तो क्षमा करें। एक बार फिर धन्यवाद!
क्ष- क्षत्रिय की तरह तलवार उठाओ या
वाह रणवीर जी
सादर
नवीनता लिए हुए
बधाई
अछा और सुखद प्रयास हुआ है, रणवीर जी.
एक बात : वर्णमाला में से त्र कहाँ गया और श्र कैसा अक्षर है, भाई ? .. :-)))
बेहतरीन साहब
बहुत बहुत बधाई इस संदेशात्मक अभिव्यक्ति हेतु
आदरणीय रणवीर प्रताप सिंह जी, एक पूर्ण कविता वह भी प्रत्येक पक्ति ककहरा से प्रारंभ, सलाम है आपकी कल्पना शक्ति की, बहुत ही खुबसूरत रचना , बहुत बहुत बधाई इस शानदार अभिव्यक्ति पर |
क्ष - क्षत्रिय की तरह तलवार उठाओ या
ज्ञ- ज्ञानी की तरह कलम उठाओ पर
श्र - श्रृंगारित सम्मानित देश बनाओ.................इन सकारात्मक पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई
मित्रवर क से ज्ञ का सुद्नर सृजन देखते ही बनता है रचना का यह अनोखा रूप मन को भा गया हार्दिक बधाई.
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