कभी काँटे बिछाते हैं कभी पलकें बिछाते हैं॥
सयाने लोग हैं मतलब से ही रिश्ते बनाते हैं॥
हमारे पास भी हैं ग़म उदासी बेबसी तंगी,
तुम्हें जब देख लेते हैं तो सब कुछ भूल जाते हैं॥
वो धमकी रोज देता है के घर मेरा जला देगा॥
बड़ी मासूमियत से उसको हम माचिस थमाते हैं॥
इबादत के लिए उसकी हमारा दिल ही काफी है,
न हम मंदिर बनाते हैं न हम मस्जिद बनाते हैं॥
ग़रीबों की गली में क़त्ल अरमानों का होता है,
जहां पर ख़्वाब पलने से ही पहले टूट जाते हैं॥
मुहब्बत के फसाने में वो ज़िंदा रहते हैं हरदम,
वफ़ा की राह में हँसकर जो अपना सर कटाते हैं॥
जगी आँखों से सपने देखते हैं जो यहाँ “सूरज”,
फ़लक पर चाँद तारों की तरह वो जगमगाते हैं॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
(स्वरचित और अप्रकाशित)
Comment
डाक्टर साहिब,
एक प्यारी गज़ल पोस्ट करने की हमारी वधाई कबूल करें ,हर शेर लाजवाब है
वाह एक और शानदार ग़ज़ल पढवाई डॉ बाली जी हर शेर कमाल का है दाद कबूल करें
ग़रीबों की गली में क़त्ल अरमानों का होता है,
जहां पर ख़्वाब पलने से ही पहले टूट जाते हैं॥
मुहब्बत के फसाने में वो ज़िंदा रहते हैं हरदम,
वफ़ा की राह में हँसकर जो अपना सर कटाते हैं॥ bahut sundar surya ji badhai
वाह वाह सर जी
एक एक शेर लाजवाब है किस किस की तारीफ करूँ
बस पढता ही गया
बहता ही गया
आनंद ही आनंद
हर शेर के लिए दाद पे दाद क़ुबूल कीजिये सर जी
स्नेह बनाये रखिये .........जय हो
खूब सूरत गजल हेतु हार्दिक बधाई. स्वीकार करें.
कभी भूले से सर्मिन्दा मेरे हमराज़ होते है
वो अपनी चाल चलते है मुझे ऐसे बनाते है
-"वेदिका "
लाजबाब रचना है आपकी ..:)
इस रवानगी और उम्दा भाव के साथ देर तक बहता रहा. मतले से ही जिस तरीके आपने बाँध लिया, मक्ते तक वही बना रहा है. यह ग़ज़ल आने वाले सालोंसाल तक आपकी सारी ग़ज़लों में अलग ही दखेगी.
बार-बार पढूँ और बार-बार दिल से दाद कहूँ.
हार्दिक बधाई, डॉक्टर साहब.
खूब सूरत गजल हेतु हार्दिक बधाई. सर जी
सादर प्रणाम सर
बहुत ही प्रेरक और हकीकत से रूबरू रचना ...
जगी आँखों से सपने देखते हैं जो यहाँ “सूरज”,
फ़लक पर चाँद तारों की तरह वो जगमगाते हैं॥
बहुत प्रेरक |आभार |
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