For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा

तुलसी तुलसी सब कहे, दास न कहता कोए!
राम चरित मानस पढ़े, दोनहु परगट होए !!

तुलसी के जस राम हैं, सूर कहें घनशाम !!
राम रामायण दिनकर, सूर सागर सुभान!!

मोल बड़ा अनमोल है, राम चरित के बोल!
घट घट में बस जात है, दया.दान रस घोल!!

मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!
मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!

मंगल मूरति दास की, चित बैठाये राम !
क्षण ही संकट.दोस मिटे, सुमरे जस हनुमान!!

बन बड़वानल उभरे , चढत चढ़े दिन माहि !
सत्यम ऐसी कौन गति, साँझ होत बुडाही !!

बढ़त बढ़त घट जात है, दोपहर बिंदु भान !
घटत घटत बढ़ जात है, ढ़लत साँझ दिनमान!!

सब सुहावना जगत में, झांक न देखे कोए!
अंतरमन तो रोज दिखे, निरमल मन न होए!!


के पीसत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 485

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 16, 2013 at 9:13am

आदरणीय सौरभ पाण्डे(गुरूजी), सुप्रभात! आप के सुझावों को मैंने शिष्य की तरह शिरोधार्य किया है! ‘बिन गुरू ज्ञान कहॅा से पाउॅ‘  आपका यह मंच अच्छा और विशाल भी है मुझे किसी साथी ने सलाह दी थी कि मुझे  यहॅा भरपूर सहयोग और आत्मीयता मिलेगी, सो मैं अबोध बालक की भॅाति शिष्ट परिसर मे हॅू! मेरी किसी बात को अन्यथा न लिये जाने की कृपा की जाये! मैं वैसा ही करूॅगा जैसा आप लोगों का निर्देश मिलता रहेगा! मेरा उद्देश्य केवल समाज की विकृतियों को यथा प्रयास दूर करने हेतु सत्य का पक्ष प्रस्तुत कर सकूॅ ! आपके सम्मान मे ही मेरा वजूद बन सकेगा! अतः आपके आदर एवं सम्मान में एक बार पुनः क्षमा प्राथी हॅू! कृपया आशीष बनाये रखें! कृतज्ञ पूर्ण  बहुत बहुत आभार..!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 7:22am

डॉ.प्राची की सलाह के आगे कुछ कहने को नहीं रह जाता.

भाई केवल प्रसादजी, आपका यह छंद-प्रयास प्रभावित तो करता है.किन्तु.. ...

पिछले दो दिनों में आपकी कई-कई रचनाएँ देख गया हूँ.

एकबात अवश्य कहनी है, कभी-कभी लगता है, ऐसे अनुशासनहीन प्रयास का औचित्य ही क्या है ? यदि यह अभ्यास किसी प्रासंगिकता के समानान्तर है तो मुझे फिर कुछ नहीं कहना.

शुभेच्छाएँ.. .

Comment by वेदिका on March 14, 2013 at 2:02am

सुखद दोहे केवल प्रसाद जी! शुभकामनाये!

धन्यवाद आदरणीया प्राची जी! आपने बहुत बेहतर तरीके से ज्ञान कराया है अतिशय धन्यवाद!  

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 4:46pm
आ॰ केवल प्रसाद सत्यम जी, आपके दोहे वाकई में लाजवाब हैं, पढकर आनन्द आया।
Comment by Yogi Saraswat on March 13, 2013 at 2:42pm

मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!
मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!

सुन्दर dohe likhe hain aapne

Comment by ram shiromani pathak on March 13, 2013 at 1:26pm

 आदरणीय केवल प्रसाद सत्यम जी,

आदरणीया डॉ प्राची जी के कहे को संज्ञान कीजिए!

दोहे पढ़कर आनन्द आया।

बधाई।

Comment by vijay nikore on March 13, 2013 at 10:52am

आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी,

 

दोहे पढ़कर आनन्द आया।

बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 10:43am

बहुत बढ़िया आदरणीय बधाई आपको इन दोहों के सृजन हेतु
आदरणीया डॉ प्राची जी के कहे को संज्ञान कीजिए ये छंदों की डॉ हैं दवाई दी है जैसे ही आप इसे लेंगे त्वरित लाभ होगा
सादर शुभकामनाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2013 at 10:30am

सुन्दर दोहे खूब भाए हार्दिक बधाई श्री केवल प्रसाद सत्यम जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2013 at 10:26am

 आदरणीय केवल प्रसाद सत्यम जी,
उत्कृष्ट विषय पर आपके सुन्दर दोहा प्रयास को पड़ना सुखद है। आपको बहुत बहुत बधाई ..

तुलसी तुलसी सब कहे, दास न कहता कोए!
राम चरित मानस पढ़े, दोनहु परगट होए !!......'ए' की मात्रा 2 गिनी जाती है, अतः दोनों ही सम चरणों में मात्रा 12 हो रही है 

तुलसी के जस राम हैं, सूर कहें घनशाम !!..........बहुत सुन्दर पंक्ति 
राम रामायण दिनकर, सूर सागर सुभान!!............इस पंक्ति में गेयता बाधित है 

मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!
मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!............इस पद में कथ्य बहुत स्पष्ट नहीं है 

मंगल मूरति दास की, चित बैठाये राम !
क्षण ही संकट.दोस मिटे, सुमरे जस हनुमान!!...........विषम चरण की मात्रा 14 हो रही है 

बन बड़वानल उभरे , चढत चढ़े दिन माहि !.............विषम चरण की मात्रा 12 है यहाँ
सत्यम ऐसी कौन गति, साँझ होत बुडाही !!............ माहि और बुडाही के तुक में समानता नहीं है 

बढ़त बढ़त घट जात है, दोपहर बिंदु भान !...................प्रवाह बाधित है
घटत घटत बढ़ जात है, ढ़लत साँझ दिनमान!!

सब सुहावना जगत में, झांक न देखे कोए!...............'ए' वर्णाक्षर की मात्रा 2 होती है इसलिए सम चरण की मात्रा यहाँ 12 है 
अंतरमन तो रोज दिखे, निरमल मन न होए!!

निरंतर अभ्यास से मात्रा गणना व प्रवाह स्वतः ही सधते जायेंगे..

इस सद  प्रयास के लिए शुभकामनाएं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service