दोहा
तुलसी तुलसी सब कहे, दास न कहता कोए!
राम चरित मानस पढ़े, दोनहु परगट होए !!
तुलसी के जस राम हैं, सूर कहें घनशाम !!
राम रामायण दिनकर, सूर सागर सुभान!!
मोल बड़ा अनमोल है, राम चरित के बोल!
घट घट में बस जात है, दया.दान रस घोल!!
मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!
मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!
मंगल मूरति दास की, चित बैठाये राम !
क्षण ही संकट.दोस मिटे, सुमरे जस हनुमान!!
बन बड़वानल उभरे , चढत चढ़े दिन माहि !
सत्यम ऐसी कौन गति, साँझ होत बुडाही !!
बढ़त बढ़त घट जात है, दोपहर बिंदु भान !
घटत घटत बढ़ जात है, ढ़लत साँझ दिनमान!!
सब सुहावना जगत में, झांक न देखे कोए!
अंतरमन तो रोज दिखे, निरमल मन न होए!!
के पीसत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डे(गुरूजी), सुप्रभात! आप के सुझावों को मैंने शिष्य की तरह शिरोधार्य किया है! ‘बिन गुरू ज्ञान कहॅा से पाउॅ‘ आपका यह मंच अच्छा और विशाल भी है मुझे किसी साथी ने सलाह दी थी कि मुझे यहॅा भरपूर सहयोग और आत्मीयता मिलेगी, सो मैं अबोध बालक की भॅाति शिष्ट परिसर मे हॅू! मेरी किसी बात को अन्यथा न लिये जाने की कृपा की जाये! मैं वैसा ही करूॅगा जैसा आप लोगों का निर्देश मिलता रहेगा! मेरा उद्देश्य केवल समाज की विकृतियों को यथा प्रयास दूर करने हेतु सत्य का पक्ष प्रस्तुत कर सकूॅ ! आपके सम्मान मे ही मेरा वजूद बन सकेगा! अतः आपके आदर एवं सम्मान में एक बार पुनः क्षमा प्राथी हॅू! कृपया आशीष बनाये रखें! कृतज्ञ पूर्ण बहुत बहुत आभार..!
डॉ.प्राची की सलाह के आगे कुछ कहने को नहीं रह जाता.
भाई केवल प्रसादजी, आपका यह छंद-प्रयास प्रभावित तो करता है.किन्तु.. ...
पिछले दो दिनों में आपकी कई-कई रचनाएँ देख गया हूँ.
एकबात अवश्य कहनी है, कभी-कभी लगता है, ऐसे अनुशासनहीन प्रयास का औचित्य ही क्या है ? यदि यह अभ्यास किसी प्रासंगिकता के समानान्तर है तो मुझे फिर कुछ नहीं कहना.
शुभेच्छाएँ.. .
सुखद दोहे केवल प्रसाद जी! शुभकामनाये!
धन्यवाद आदरणीया प्राची जी! आपने बहुत बेहतर तरीके से ज्ञान कराया है अतिशय धन्यवाद!
मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!
मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!
सुन्दर dohe likhe hain aapne
आदरणीय केवल प्रसाद सत्यम जी,
आदरणीया डॉ प्राची जी के कहे को संज्ञान कीजिए!
दोहे पढ़कर आनन्द आया।
बधाई।
आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी,
दोहे पढ़कर आनन्द आया।
बधाई।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
बहुत बढ़िया आदरणीय बधाई आपको इन दोहों के सृजन हेतु
आदरणीया डॉ प्राची जी के कहे को संज्ञान कीजिए ये छंदों की डॉ हैं दवाई दी है जैसे ही आप इसे लेंगे त्वरित लाभ होगा
सादर शुभकामनाएँ
सुन्दर दोहे खूब भाए हार्दिक बधाई श्री केवल प्रसाद सत्यम जी
आदरणीय केवल प्रसाद सत्यम जी,
उत्कृष्ट विषय पर आपके सुन्दर दोहा प्रयास को पड़ना सुखद है। आपको बहुत बहुत बधाई ..
तुलसी तुलसी सब कहे, दास न कहता कोए!
राम चरित मानस पढ़े, दोनहु परगट होए !!......'ए' की मात्रा 2 गिनी जाती है, अतः दोनों ही सम चरणों में मात्रा 12 हो रही है
तुलसी के जस राम हैं, सूर कहें घनशाम !!..........बहुत सुन्दर पंक्ति
राम रामायण दिनकर, सूर सागर सुभान!!............इस पंक्ति में गेयता बाधित है
मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!
मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!............इस पद में कथ्य बहुत स्पष्ट नहीं है
मंगल मूरति दास की, चित बैठाये राम !
क्षण ही संकट.दोस मिटे, सुमरे जस हनुमान!!...........विषम चरण की मात्रा 14 हो रही है
बन बड़वानल उभरे , चढत चढ़े दिन माहि !.............विषम चरण की मात्रा 12 है यहाँ
सत्यम ऐसी कौन गति, साँझ होत बुडाही !!............ माहि और बुडाही के तुक में समानता नहीं है
बढ़त बढ़त घट जात है, दोपहर बिंदु भान !...................प्रवाह बाधित है
घटत घटत बढ़ जात है, ढ़लत साँझ दिनमान!!
सब सुहावना जगत में, झांक न देखे कोए!...............'ए' वर्णाक्षर की मात्रा 2 होती है इसलिए सम चरण की मात्रा यहाँ 12 है
अंतरमन तो रोज दिखे, निरमल मन न होए!!
निरंतर अभ्यास से मात्रा गणना व प्रवाह स्वतः ही सधते जायेंगे..
इस सद प्रयास के लिए शुभकामनाएं
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