शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है अपने खाने में से वो किसी को पूंछते नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.
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स्नेही पाठक जी
सादर आभार
kushwaha ji aapki laghu katha ek sandesh hai badhai
आदरणीय प्रदीप कुमार सिहं जी, सार्थक कथ्य। हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर,
वाह वाह आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी ने जो इतना सटीक जबाव दिया है उसको सुनके तो शर्मा जी चुपचाप घर चले गये होंगे ...और आयेगे राम नवमी के बाद ....!
बधाई इस सटीक वार पे आदरणीय संदीप सिंह जी!
तीक्ष्ण कटाक्ष! बधाई आदरणीय!
शर्मा जी ब्राह्मण है वे तो स्वयं जज्मान के याहा निमंत्रितहोते है | नवरात्री को ही अपने घर की कन्या को ही खिलाकर नवरात्रि मना लेते है ? अब ठेलेवाले से लेकर कार्यालय समय में अपनी क्षुधा शांत करे या वहाः भी नवरात्रि मनाकन्या को खिलाने का दायित्व निर्वाह करे ? नाहक ही शर्माजी को शर्मिनदा कर रहे है ? अब बिचारे शर्माजी क्याजवाब देते चुप रहने में ही भलाई समझी | हां ब्राह्मण समझ आपने एक केला उन्हें भी देकर नेक काम क्या है |
शर्मा जी नवरात्र में आप घर में कन्या नहीं खिलाते ? - ये पंक्तिया आगे सब कुछ बया कर रही है | बधाई भाई श्रीप्रदीप जी अच्छी लघु कथा के लिए
नवरात्र में कन्या पूजन का अर्थ ही न समझने वाली मानसिकता पर करारा प्रहार करती लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय प्रदीप जी
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने आदरणीय //वास्तविक पूजा या व्रत यही है किसी निर्धन की सहायता करो !!हार्दिक बधाई
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