नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य
इस बार चुनाव लड़ने की
हमने भी ठानी है,
हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है
यह बात हमने अभी अभी जानी है |
बचपन में हममें से जो
पढ़ाई में पिछड़ जाता था
चाचा ताऊ उसे नेता बनाने की
सलाह दे जाता था |
हम तो थे शुरू से ही
अव्वल पढ़ाई में ,
चदते गए सीढियां
स्कूल से कालेज,
कालेज से विश्वविद्यालय
की चढ़ाई में |
निकल गई आधी उम्र
भागते भागते नौकरी के पीछे ,
और कोई काम भी नहीं कर सके
डिग्रियों के बोझ के नीचे |
बेरोज़गारी भत्ता नहीं मिलेगा
हम कर गए चालीस पार,
बुढ़ापा पेंशन में पड़े
अभी पूरे बीस साल |
न काम है
न ही कमाई,
बीवी बच्चों की नजर में
हमारा काम कपड़े, बर्तन व
घर की साफ़ सफाई |
ऐसी जलालत की जिंदगी से तो
नेता बनना अच्छा लगता है ,
छुटपुट नेताओं को
चमचा बनाना अच्छा लगता है |
चांदी सोने के मुकुट व सिक्के
गले में करारे नोटों की मालाएं
सजाना अब सच्चा लगता है |
बीवी बच्चों का रौब अब मुझ पर नहीं
बल्कि, बाहर कानून तोड़ने में चलता है |
क्योंकि कानून बनाने वाले भी हम,
तोड़ने और मरोड़ने वाले भी हम |
अगर कोई ज्यादा चै चै करे भी तो
लालीपॉप से मुंह बंद
करवाने वाले भी हम |
वैसे आजकल जनता
अधिक जागने लगी है,
हमारे बनाये अधिकारों को
मांगने लगी है |
वो क्या जाने हमारी चतुराई को,
दो धारी कसाई को |
सत्ता में रहेंगें तो
जनता को सतायेंगें,
विपक्ष में रहेंगें तो
सत्ता धारियों से
ता-था थैय्या करवाएंगें |
मौलिक एवं अप्रकाशित
-उषा तनेजा
Comment
रचना में आजके हालात की अच्छी खिंचाई हुई है.
बधाई व शुभकामनाएँ.
निकल गई आधी उम्र
भागते भागते नौकरी के पीछे ,
और कोई काम भी नहीं कर सके
डिग्रियों के बोझ के नीचे |......................बहुत सही सच्चाई को शब्द मिले हैं, डिग्रियों के बोझ तले कई कामों को युवा बहुत कमतर आंकने लगते हैं...
इस व्यंग रचना पर बधाई
बहुत अच्छा सधा हुआ व्यंग्य! बधाई!
आदरणीय vijay nikore जी , Kewal Prasad जी, Saurabh Pandey जी, Laxman Prasad Ladiwala जी, DILEEP KUMAR JAISWAL जी, Ashok Kumar Raktale जी, coontee mukerji जी आप सब का दिल से किया गया उत्साहवर्धन मेरे दिल के अति करीब है. मैं आप सब के लेखन के आसपास तो नहीं फिर भी आपकी सहानुभूतिपूर्ण सलाह मुझे बहुत कुछ सिखाएगी जरूर. इसी विश्वास के साथ
आपकी सब की आभारी
बहुत सलीके से कहा गया व्यंग्य जो सच्चाई भी बयां करता है. सादर / कुंती .
आदरणीया सादर, बेरोजगार युवाओं के मानस का सही चित्रण किया है. इनकी पीड़ा रचना में पूरी तरह मुखर हो रही है. बहुत बहुत बधाई.सुन्दर रचना.
Usa ji mujhe
निकल गई आधी उम्र
भागते भागते नौकरी के पीछे ,
और कोई काम भी नहीं कर सके
डिग्रियों के बोझ के नीचे |
बेरोज़गारी भत्ता नहीं मिलेगा
हम कर गए चालीस पार,
बुढ़ापा पेंशन में पड़े
अभी पूरे बीस साल | bahut achchhi lagi.............nice
'
वर्तमान हालत में आपकी सोच ही सही लगती है
बेरोजगारी दूर करने के विचार से भी सही दिखती है - हां हां हां -----
अच्छी हास्य रचना बन पड़ी है, बधाई उषा तनेजा जी
नेताओं के चरित्र का बढिया विश्लेषण हुआ है. बढिया प्रयास के लिए बधाई.. .
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