वीर छन्द,,,(आल्हा छन्द)
=========================
सदा न यॊद्धा रण मॆं जीतॆ, रहॆं न सदा हाँथ हथियार ।
जीना मरना वहीं पड़ॆगा,जिसका जहां लिखा करतार ॥
कई साल तक रहा ज़ॆल मॆं, बाँका सरबजीत सरदार ।
उसॆ छुड़ा ना पायॆ अब तक,सॊतॆ रह गयॆ पाँव पसार ॥
हाय हमारॆ मौनी बाबा, करतॆ रहॆ नॆह- सत्कार ।
लूटा खाया इस भारत कॊ,गूँगी बनी रहीं सरकार ॥
भईं सभायॆं सब नाहक मॆं,दुश्मन ठहरा नीच गवाँर ।
छॊड़ दियॆ कुछ कैदी उसनॆ, बॊला इसॆ लगादॊ पार ॥
बॊला बॆटा तब भारत का, पापी सुनलॊ कान लगाय ।
इसी घड़ी की ख़ातिर मैया,पाला मुझकॊ दूध पिलाय ॥
पैदा नहीं हुआ जॊ मारॆ, जब तक चण्डी करॆ सहाय ।
बाँई भुजा भगतसिंह मॆरॆ,दहिनॆ विंध्य-वासिनी माय ॥
सिरपॆ साया गुरु-गॊविँद का,छाती बज्र गहॆ हनुमान ।
राहू - कॆतू हैं आँखिन मॆं,मंगल शनी महा बलवान ॥
आज निहत्था ही निपटूँगा, मॆरॆ हाँथ नहीं किरपान ।
याद दिला दूँ दूध छठी का, भारत माँ की मैं संतान ॥
जिस धरती पर मैं हूँ जन्मा, पैदा हॊतॆ सजॆ कटार ।
एक बराबर सवा लाख कॆ, हॊता भारत का सरदार ॥
माँगूं भीख ज़ान की तुमसॆ,मॆरॆ जीवन कॊ धिक्कार ।
मुझॆ कसम है भारत माँ की,खाऊँ नहीं पींठ पॆ वार ॥
नहीं गीदड़ॊं कॆ जायॆ हैं, हम नाहर कॆ लाल कहाँय !
एक मरॆगा यहाँ ज़ॆल मॆं, पैदा लाख वहाँ हॊ जाँय ॥
बच्चा,बच्चा भारत माँ का,ठॊंकॆ ताल युद्ध मॆं आय ।
रण-चण्डी हैं माता बहनॆं, कच्चा जायॆं पाक चबाय ॥
सदा मौत सॆ हम हैं खॆलॆ, जीतॆ हरदम शीश उठाय ।
नहीं किसी सॆ डरनॆ वालॆ, चाहॆ काल खड़ा हॊ आय ॥
बड़ॆ सूरमा दॆखॆ हम नॆं, जब जब भागॆ पींठ दिखाय ।
कायरता की हदॆं तॊड़ दीं, कुत्तॆ भारत मॆं पहुँचाय ॥
दॊ-दॊ आतंकी कुत्तॊं कॊ, सूली पर हम दिया चढ़ाय ।
हाल वही उन सबका हॊगा, जॊ ज़ॆलॊं मॆं रहॆ मुटाय ॥
खड़ॆ शॆर कॆ सम्मुख काहॆ, गीदड़ आँखॆं रहॆ दिखाय ।
माँ का दूध पिया जॊ तुमनॆ,बारी-बारी लॊ अज़माय ॥
बातॆं सुनकॆ सरबजीत की, दुश्मन गयॆ सनाका खाय ।
धरती पर है खड़ा हमारी, रहा हमॆं ही आँख दिखाय ॥
इतना कहकॆ फिर पीछॆ सॆ,उन नॆ दीन्हा वार चलाय ।
भारत माँ का प्यारा बॆटा, धरनी गिरा तरॆरा खाय ॥
एक निहत्थॆ कॆ ऊपर सब, करनॆ लगॆ घपा-घप वार ।
ज्यॊं पिंजड़ॆ मॆं बंद शॆर का,कायर कुत्तॆ करॆं शिकार ॥
मुर्छा आई सरबजीत कॊ, बहनॆ लगी खून की धार ।
बूँद बूँद कहती जाती थी,भारत माँ की जय जयकार ॥
कवि-"राज बुन्दॆली"
०५/०५/२०१३
=========================
Comment
एक निहत्थॆ कॆ ऊपर सब, करनॆ लगॆ घपा-घप वार ।
ज्यॊं पिंजड़ॆ मॆं बंद शॆर का,कायर कुत्तॆ करॆं शिकार ॥
मुर्छा आई सरबजीत कॊ, बहनॆ लगी खून की धार ।
बूँद बूँद कहती जाती थी,भारत माँ की जय जयकार ॥... . वाह वाह !
इस आल्हा में आपकी काव्य- प्रतिभा उभर कर आयी है,भाईजी. रचना में आल्हा का रंग पुख़्ता है.
इस ऊर्जस्वी रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद और ढेर सारी शुभकामनाएँ.
कवि राज बुन्देली जी हार्दिक बधाई इस औजपूर्ण वीर रस की रचना के लिए पढ़ते पढ़ते एक चलचित्र सा आँखों के समक्ष चल रहा था भारत के उस वीर को शत शत नमन साथ ही आपकी इस लेखनी को भी नमन जिसने अभिभूत ,भावविभोर कर दिया |
Ashok Kumar Raktale जी भाई साहब,,,,,,,धन्यवाद,,,,और आभार आपने उस त्रुटि की ओर ध्यान दिलाया,,,,,,,,,,
वाह! बहुत सुन्दर सुधार किया है आदरणीय राज जी. बधाई.
PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी भाई साहब,,,, बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,
बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) जी भाई साहब आभार आपका दिल की गहराइयो से,,,,,,,,,,
अरुन शर्मा 'अनन्त' जी भाई साहब,,,मेरा यह वीर छन्द मे प्रथम प्रयास था और आप लोगो ने जो प्रोत्साहन दिया है,,,,मै नमन करता हूं आपके स्नेह को,,,,,,,,,,
आपने कमाल कर दिया! हार्दिक बधाई स्वीकारें.
जैसे दमके दामिनी गगन में लहू उबल उबल उबलता जाय
बहुत खूब सूरत वीर रस छंद .
सीखूंगा
बधाई सर जी
झूम उठा.
वाह वाह वाह क्या बात है आदरणीय अथाह जोश से लबालब भरा छंद अत्यंत मनोहारी है, कहीं कहीं तो आपने कमाल ही कर दिया है हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online