For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो

बहर: हज़ज मुसम्मन सालिम

वही दिलकश नज़ारा हो वही मौसम सुहाना हो,

वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो,

जुबां से कह नहीं पाया नज़र से तुम नहीं समझी,

बताना हो बड़ा मुश्किल कठिन उससे छुपाना हो,

पलटकर देखना तेरा ग़लतफ़हमी सही मेरी,

इसी धोखे के चलते बेवजह हँसना हँसाना हो,

अदा इक तो सनम कातिल खुदा से तुमने है पाई,

गिरे बिजली मेरे दिल पे जो तेरा भीग जाना हो,

चुराने आँखों से काजल फलक से आ गए बादल,

घटा घनघोर घिर आये जो नज़रों का झुकाना हो.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1080

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on July 17, 2013 at 8:38pm

वही दिलकश नज़ारा हो वही मौसम सुहाना हो,

वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो

 

चुराने आँखों से काजल फलक से आ गए बादल,

घटा घनघोर घिर आये जो नज़रों का झुकाना हो

 

 

 

बहुत ही खुबसूरत  गजल आदरणीय अनंत जी ..बहुत-२ बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 17, 2013 at 8:28pm

बहुत सुन्दर वाह रूमानियत से भरी ग़ज़ल हर शेर लाजबाब दाद कबूल करें 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 8:13pm

आ0 अरून अनन्त भाई जी,    वाह! बहुत खूबसूरत गजल पगी है। तहेदिल दाद कुबूल करें।   सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 17, 2013 at 7:13pm

बहुत ही नजाकत से कोमल भावनाओं को सहेजा है गज़ल में 

खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Pragya Srivastava on July 17, 2013 at 5:09pm

बहुत खूबसूरत गजल बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 17, 2013 at 4:15pm

वाह आपकी ग़ज़ल ने तो दिल बाग बाग कर दिया, एक से बढ़ कर एक अशआर हुए हैं

//जुबां से कह नहीं पाया नज़र से तुम नहीं समझी,

बताना हो बड़ा मुश्किल कठिन उससे छुपाना हो,//

इस एक शेर के लिए खास दाद क़ुबूल कीजिए

Comment by विजय मिश्र on July 17, 2013 at 1:23pm
गजल अपनी रुमानियत के साथ है और कहना नहीं होगा कि तारीफ़ की हद कर दियी आपने . बहुत शीरीं सी प्यारी गजल . मुबारकबाद कुबूल करें जनाब अरुणजी .
Comment by Neeraj Nishchal on July 17, 2013 at 1:15pm

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय

अरुण भाई ।

Comment by vijay nikore on July 17, 2013 at 1:07pm

बहुत सुन्दर, आदरणीय।

 

विजय निकोर

Comment by Parveen Malik on July 17, 2013 at 1:04pm

पलटकर देखना तेरा ग़लतफ़हमी सही मेरी,

इसी धोखे के चलते बेवजह हँसना हँसाना हो,

चुराने आँखों से काजल फलक से आ गए बादल,

घटा घनघोर घिर आये जो नज़रों का झुकाना हो.

बहुत सुन्दर अरुण जी बधाई ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service