दोहा दशम - ..... उल्फत
अश्कों से जब धो लिए, हमने दिल के दाग ।
तारीकी में जल उठे, बुझते हुए चिराग ।।
ख्वाब अधूरे कह गए, उल्फत के सब राज ।
अनसुनी वो कर गए, इस दिल की आवाज ।।
आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फत के ईनाम ।
नींदों से ली दुश्मनी, और हुए बदनाम ।।
माना उनकी बात का, दिल को नहीं यकीन ।
आयें अगर न ख्वाब है, उल्फत की तौहीन ।।
यादों से हों यारियाँ , तनहाई से प्यार ।
उल्फत का अंजाम बस , इतना सा है यार ।।
मिला इश्क को हुस्न से,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 10, 2025 at 1:04pm — 2 Comments
अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार
सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।
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रहा झूठ से कौन है, वंचित कहो अबोध
भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।
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होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर
जीवन पाता अल्प ही, पर जीता भरपूर।३।
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जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ
हरा पेड़ तो छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।
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होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम
भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।
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भोला देता ताव है, करके ऊँची मूँछ
धूर्त…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 3 Comments
दोहा दसक -वाणी
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वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात
वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।
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वाणी में संयम नहीं, अब तो संत कुसंत
जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।
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वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव
वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।
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वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान
वो तो करती नित्य ही, रिश्तों पर संधान।४।
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सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह
देह न मन में नित बसे, वाणी करती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 1 Comment
यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास
सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।
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देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न
वह उनको साकार कर, पा लेता है रत्न।२।
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जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य
टूटा करता वह नहीं, बन जाता है भव्य।३।
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स्वप्न बने उद्देश्य जब, करना पड़ता कर्म
जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।
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निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग
मान उसे सबसे अधिक, सपनों से अनुराग।५।
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सपने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 1 Comment
दोहा पंचक. . . . . शृंगार
रैन स्वप्न की उर्वशी, मौन प्रणय की प्यास ।
नैन ढूँढते नैन में, तृषित हृदय मधुमास ।।
वातायन की ओट से, हुए नैन संवाद ।
अरुणिम नजरों में हुए, लक्षित फिर उन्माद ।
मृग शावक सी चाल है, अरुणोदय से गाल ।
सर्वोत्तम यह सृष्टि की, रचना बड़ी कमाल ।।
गौर वर्ण झीने वसन, मादकता भरपूर ।
जैसे हो यह सृष्टि का, अलबेला दस्तूर ।।
जब-जब दमके दामिनी, उठे मिलन की प्यास।
अन्तस में व्याकुल रहा, बांहों का मधुमास…
Added by Sushil Sarna on February 4, 2025 at 9:56pm — No Comments
दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
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देवलोक भी जोहता,
चकवे की ज्यों बाट।
संत सनातन संग कब,
सजता संगम घाट।1।
तीर्थराज के घाट पर,
आ पहुँचे वो संत।…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 4, 2025 at 11:00am — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना
जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।
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हमेशा दवा ही नहीं काम आती
कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।
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कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में
कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।
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तलाशे बहुत वट सदा काटने को
कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।
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हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत
कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।
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मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर
हमें फर्क किससे क़सर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2025 at 12:02pm — No Comments
कुंडलिया. . .
मन से मन का हो गया, मन ही मन अभिसार ।
मन में मन के प्रेम का, सृजित हुआ संसार ।
सृजित हुआ संसार , हाथ की चूड़ी खनकी ।
मुखर हुआ शृंगार , बात फिर निकली मन की ।
बंध हुए निर्बंध ,भाव सब निकले तन से ।
मन ने दी सौगात , प्रीति को सच्चे मन से ।
सुशील सरना / 2-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 2, 2025 at 5:05pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . संबंध
अर्थ लोभ की रार में, मिटा खून का प्यार ।
रिश्ते सब आहत हुए, शेष रही तकरार ।।
वाणी कर्कश हो गई, मिटी नैन से लाज ।
संबंधों में स्वार्थ की, मुखर हुई आवाज ।।
प्यार मिटा पैदा हुई, रिश्तों में तकरार ।
फीके - फीके हो गए, जीवन के त्योहार ।।
दिखने को ऐसा लगे, जैसे सब हों साथ ।
वक्त पड़े तो छोड़ता, खून, खून का हाथ ।।
आपस में ऐसे मिलें, जैसे हों मजबूर ।
निभा रहे संबंध सब , जैसे हो दस्तूर ।।…
Added by Sushil Sarna on February 1, 2025 at 2:24pm — No Comments
*दोहा अष्टक*
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पहन पीत पट फूलते,
सरसों यौवन बंध।
चिकनाहट सी गात में,
श्वास तेल की गंध।1।
उड़ते हुए पराग कण,
मधुकर कर गुंजार।…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 29, 2025 at 5:00pm — 3 Comments
शंका-दोहा अष्टक
***
शंका दुख को जन्म दे, शंका मतकर व्यर्थ।
घर-बाहर इससे सदा, होता सकल अनर्थ।१।
*
आसपास जब-जब बढ़े, शंकाओं के शूल।
असमय जाते सूख तब, सुख के सारे फूल।२।
*
शंका नामक रोग से, तन-मन जल भंगार।
औषध पाया खोज कब, इस का ये संसार।३।
*
लघुतम रहे विवाद को, शंका नित दे तूल।
संतों को असहज रहे, दुर्जन को अनुकूल।४।
*
शंका उस मन जन्म ले, जिसमें रहता खोट।
सदा रक्तरंजित रहे, इससे पाकर चोट।५।
*
शंका बैरी चैन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:40am — No Comments
जन्म दिवस गणतंत्र का, मना रहे हम आज
रखने को सौगंध खा, संविधान की लाज।।
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नाम रखा गणतंत्र गह, राजतंत्र की रीत
कैसे हो गण का भला, ऐसे में कह मीत।।
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संविधान की पीठ ने, रचे बहुत से स्वप्न
गण तक पहुँचे वो नहीं, तंत्र कर गया दफ्न।।
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पथ में बिखरे शूल सब, यदि ले तंत्र समेट
जनसेवक से हो नहीं, जनता का आखेट।
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आठ दशक से जप रहे, गण हैं जिसका मंत्र
देता रोक स्वराज वह, क्यों पगपग पर तंत्र।।
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गण की गण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2025 at 7:30am — No Comments
छः दोहे (प्रकृति)
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अलंकार सम रूख धर,
रंग बिरंगा रूप।
पुष्प पात फल वृन्त रस,
बाँट रहे ज्यों भूप।1।
धरा गगन के मध्य में,
मेघों का संचार।
शांत करें तन ताप मन,
ज्यों शीतल उद्गार।2।
हर्षाए से मेघ भी,
जल भर लाए थाल।
नव अंकुर मुँह खोलते,
ज्यों तरिणी…
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 24, 2025 at 5:30pm — 1 Comment
दोहा सप्तक. . . धर्म
धर्म बताता जीव को, पाप- पुण्य का भेद ।
कैसे जीना चाहिए, हमें सिखाते वेद ।।
दया धर्म का मूल है, यही सत्य अभिलेख ।
करे अनुसरण जीव जो, बदले जीवन रेख ।।
सदकर्मों से है भरा, हर मजहब का ज्ञान।
चलता जो इस राह पर, वो पाता पहचान ।।
पंथ हमें संसार में, सिखलाते यह मर्म ।
जीवन में इन्सानियत, सबसे उत्तम कर्म ।।
चलते जो संसार में, सदा धर्म की राह ।
नहीं निकलती कष्ट में, उनके मुख…
Added by Sushil Sarna on January 18, 2025 at 1:00pm — 1 Comment
*दोहे (प्रकृति)*
कुदरत पूजूँ प्रथम पद,
पग - पग पर उपकार।
अस्थि चर्म की देह मम,
पंच तत्त्व का सार।1।
दसों दिशाएं मन बसीं,
करते कवि अरदास।
धरा अग्नि रवि वायु…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 18, 2025 at 12:30pm — 1 Comment
दोहा सप्तक. . . जीत -हार
माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।
संग जीत के हार पर, जीवन का शृंगार ।।
हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।
डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।
जीत हार के सूत में, उलझा जीवन गीत ।
दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।
कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।
जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।
मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।
हर कोशिश में जीत की, मुखरित…
Added by Sushil Sarna on January 16, 2025 at 3:00pm — 1 Comment
शर्मिन्दगी ....
"मैने कहा, सुनती हो ।"रामधन ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा ।
"क्या हुआ, कुछ कहो तो सही ।"
"अरे होना क्या है । अपने पड़ोसी रावत जी की बेटी संजना ने अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ भाग कर कोर्ट मैरिज करके इस उम्र में अपने माँ-बाप को शर्मसार कर दिया ।बेचारे! अच्छा हुआ, अपनी कोई बेटी नही केवल एक बेटा राहुल है ।" रामधन ने कहा।
इतने में डोर बेल बजी टननन ।
"कौन? " रामधन जी दरवाजे खोलते हुए बोले ।
" रामधन जी, अपने संस्कारवान बेटे को…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 15, 2025 at 1:12pm — 5 Comments
दोहा सप्तक . . . . पतंग
आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।
बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।
बंधी डोर से प्यार की, उड़ती मस्त पतंग ।
आसमान को चूमते, छैल-छबीले रंग ।।
कभी उलझ कर लाल से, लेती वो प्रतिशोध ।
डोर- डोर की रार का, मन्द न होता क्रोध ।।
नीले अम्बर में सजे, हर मजहब के रंग ।
जात- पात को भूलकर, अम्बर उड़े पतंग ।।
जैसे ही आकाश में, कोई कटे पतंग ।
उसे लूटने के लिए, आते कई दबंग…
Added by Sushil Sarna on January 14, 2025 at 8:30pm — 1 Comment
जब उमड़ते भाव अविरल अश्रु का संसार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर
पीर के परिमाप से करके स्वयं का 'नाथ' तर्पण
रात दिन पीड़ा दबाए आत्म का करके समर्पण
दर्द की अभिव्यंजना से कुछ नई गढ़ कल्पनाएँ
चित्र छपते जब हृदय पर कुछ नए किरदार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर
तप्त धरती बादलों की जिस घड़ी करती प्रतीक्षा
दर्द में डूबे हृदय की वास्तविक होती परीक्षा
याचना करता पपीहा और बिछुड़न के हृदय से
छेड़ती है राग विरहन जब…
Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2025 at 2:14pm — 4 Comments
प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआत
सूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमन
होता जीवन में नव संचार
बाँट रहे तिल शक्कर मूंगफली वस्त्र
ढोल पर तक - धिन - तक - धिन थिरकते
युवा बुजुर्गों संग बाल
कर्णप्रिय लोकगीतों की मधुर सी धुन…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 13, 2025 at 8:00pm — 2 Comments
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