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तान्या : महसूस किया तुमको

इन मौन चट्टानों के सामने खड़ा
यह सोचता हूँ ,
कितनी कठोर हैं ये /
जितनी कठोर लगती हैं
क्या उतनी ही?
या कहीं ज्यादा ?
क्या भेद सकेगा कोई इनको?
और फिर मैं देखता हूँ
आकाश की ओर /
बदली छाई है ,
धूप का कतरा नहीं है ।

और फिर क्या देखता हूँ
तोड़ कर प्रस्तर कवच को ,
मोतियों सा झर रहा है ,
दुधिया झरना ।

भूल जाता हूँ मैं 
कि
कितने कठोर हैं ये पाषाण खंड ,
कि
मैं इन्हें भेद नहीं सकूँगा ,
कि
बदली है / धुप का कतरा नहीं है ।

याद रह जाता है
मृदु हास्य करता
वो झरना / छलछलाता
वो शीतलता , तरलता
वो सिहरन / अपनापन
धूप सी खिल उठी है हर ओर ।

आज मैंने
इस तरह
महसूस किया है तुमको ।

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर 'शेखर'

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2013 at 3:20pm

आदरणीय ...महसूस की जाने वाली कविता ...इस सार्थक प्रस्तुति पर हार्द्की बधायी

Comment by राजेश 'मृदु' on October 3, 2013 at 2:43pm

तान्‍या श्रृंखला की रचना अनुपम हैं आपकी वे एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं, शायद प्रेम का परिपाक ऐसा ही होता है, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2013 at 11:38am

फिर से आपकी एक प्रीत रस से नम रचना पढने को मिली बिलकुल अलग तरह जी जो एक मंथर गति से चलने वाले निर्झर की तरह दिल में उतरती जाती है बहुत सुन्दर एहसास से लबरेज़ प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई आपको 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 3, 2013 at 11:17am

आदरणीय अरविन्द जी झरने सी बहती सुन्दर अतुकांत कविता खूबसूरत भाव वाह बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 3, 2013 at 9:13am

वाह !!! अतुकांत कविता को सुंदर भावों से सजा दिया है. (कृपया देख लें धुप/धूप)

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 2, 2013 at 9:45pm

आदरणीय , आप सभी का आभार
शेखर

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:45pm

सुंदर भावाभिव्यक्ति है अरविन्द भाई.... बधाई हो...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 9:33pm

आदरणीय अरविन्द भाई , अति सुंदर अतुकांत रचना !!!! सुन्दर भाव अभिव्यक्ति !!! आपको बधाई !!!! 

Comment by MAHIMA SHREE on October 2, 2013 at 8:37pm

सुंदर .. भावाभिव्यक्ति ... बधाई आपको

Comment by रविकर on October 2, 2013 at 5:54pm

आशा जगाती कविता-
आभार आदरणीय-

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