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धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम
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तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम
तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम
बहुत ठोकर मिली दुनिया से ये सब जानते ही हैं
थका हारा बहुत लगता है आ तुझको सुलायें हम
नये सपने नये अरमान ले के देख आये हैं
भरोसा कर ले आँखें खोल तुमको भी दिखायें हम
बहुत बेरंग दुनिया थी तेरी अब तक चलो माना
धनक से रंग लाये हैं तुझे जी भर लगायें हम
सभी दिन कब हुये रोशन सभी रातें नही काली
तेरी तारीकियों में मिल सभी किरणें सजायें हम
तेरी मुस्कान की कलियाँ खिलेंगी फिर से गुलशन में
सुनहरी यादें ताज़ा कर तुझे आ गुदगुदायें हम
चलो दिल खोल के बोलें करें शिकवे भी आपस में
जलन दिल में लिये धीरे से काहे बुदबुदायें हम
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अविनाश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से अभारी हूँ !!!!!!
सुन्दर ग़ज़ल सुनाने के लिए आभार.हर शेर उम्दा लगा, बधाई...............
मज़ा आगया आदरणीय गिरिराज भाईजी. वाह !
एक बात साझा करना चाहूँगा. यदि आप को बुरा न लगे तो..
किसी मिसरे को बह्र के अनुरूप करने के क्रम में भी, ही आदि जैसे भरती के शब्द आवश्यकता से अधिक न लिया करें.
बाद बाकी बहुत खूब ! . :-)))
सादर
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने आदरणीय भंडारी जी
कोई जवाब नही आपका बहुत बहुत बधाई
आ० गिरिराज भंडारी जी
सुन्दर ग़ज़ल हुई है..सभी अशआर पसंद आये
तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम...........नजाकत
तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम.................हौसला ...बहुत खूब
नये सपने नये अरमान ले के देख आये हैं
भरोसा कर ले आँखें खोल तुमको भी दिखायें हम.............आदरणीय इस मिसरे को पुनः देख लें, मुझे लगता है शायद 'तुमको' की जगह 'तुझको' ज्यादा सही हो!
हार्दिक बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर
सादर
बहुत बेरंग दुनिया थी तेरी अब तक चलो माना
धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम.......... waah waah
धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम
शीर्षक पंक्ति पे बार बार कुर्बान हूँ! अप्रितम!!
बधाई !!
वाह वाह आदरणीय ग़ज़ब ग़ज़ब
इक इक अशआर पर तजुर्बा झलक रहा है
हर इक अशआर पर ढेरों दाद क़ुबूलकीजिये
जय हो
//चलो दिल खोल के बोलें करें शिकवे भी आपस में
जलन दिल में लिये धीरे से काहे बुदबुदायें हम //
इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, भाई गिरिराज जी।
सादर,
विजय निकोर
बहुत बेरंग दुनिया थी तेरी अब तक चलो माना
धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम....अच्छी गज़ल गिरिराज भंडारी ji
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