वर्जना के टूटते
प्रतिबन्ध नें-
उन्मुक्त, भावों को किया जब,
खिल उठीं
अस्तित्व की कलियाँ
सुरभि चहुँ ओर फ़ैली,
मन विहँस गाने लगा मल्हार...
...फिर गूँजी फिजाएं
जब सरकता चाँद पूनम
छत चढ़ा,
तारों नें झिलमिल
दीप उत्सव में जलाए,
प्राण प्रिय नें
हाथ थामा,
सिहरते पल नें किया शृंगार...
..फिर गूँजी फिजाएं
बधिर साँकल,
बंद खिड़की
ख्वाब की - घुटती सिसकती,
ले कहीं से
अंजुरी भर
हौसले की रश्मियों को,
जब खुली, पा नभ तलक विस्तार...
..फिर गूँजी फिजाएं
Comment
भाव जब उन्मुक्त
पल रच रहे श्रृंगार
हौसले की रश्मि का
आकाश तक विस्तार
तो गूंजेंगी फिजाए
आदरणीया प्राची जी आपकी कविता पर मेरे भाव सुमन ------
बड़ी हे प्रेरक और मोहक है आपकी कल्पना i शुभ कामनाये i
ऋषि मुनियों का नाम आने पर हर कहीं ' शृंगी ' ऋषि ही लिखा गया है अतः ' शृंगार ' लिखना ही उचित है। इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया प्राचीजी ॥
ले कहीं से
अंजुरी भर
हौसले की रश्मियों को,
जब खुली, पा नभ तलक विस्तार...
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना आदरणीया प्राची जी बहुत बहुत बधाई
गीत बहुत मनमोहक है| और इसके स्थायी ने तो मुझे सम्मोहित ही कर दिया है, बहुत प्यारा और सकारात्मकता से भरपूर "फिर गूंजी फिज़ाएँ" इसके चयन के लिए आपको साधुवाद देना चाहती हूँ|
और //शुद्ध अक्षर शृंगार होता है न कि श्रृंगार// .... जानकारी के लिए आभार!
शत शत शुभकामनायें आ0 प्राची दी!
//जब सरकता चाँद पूनम
छत चढ़ा,
तारों नें झिलमिल
दीप उत्सव में जलाए,
प्राण प्रिय नें
हाथ थामा,
सिहरते पल नें किया शृंगार...
..फिर गूँजी फिजाएं // बहुत बढ़िया,
आदरणीया डॉ प्राची जी इस खूबसूरत रचना के लिये बधाई स्वीकार करें
आदरणीय डॉ ० अनुराग सैनी जी
रचना पर आपके अनुमोदन के लिए आभार
काश आप इस रचना पर बन रहे संवाद को भी नीचे की टिप्पणियों में पढ़ते ...तो शृंगार शब्द के स्थान पर श्रृंगार के आग्रही न रहते
सादर.
शब्द संयोजन , भाव और अभ्व्यक्ति सटीक और उम्दा है
इंसान पुरे भाव में बहता सा जाता है इस रचना में
शृंगार को अगर श्रृंगार पढ़ा जाए तो बहुत ही उम्दा रचना है
आपको तहे दिल से मुबारकबाद
हार्दिक आभार आ० श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय अजीत शर्मा जी
प्रस्तुत गीत की साहित्यिक भाषा एवं शैली पर आपसे मुखर अनुमोदन प्राप्त होना प्रशस्तिपत्र के ही सामान है, इस बहुमूल्य प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
आदरणीय,
शृंगार और श्रृंगार दोनों ही quillpad पर आसानी से टाईप हो जाते हैं..पर यहाँ वर्तनी अनुरूप शुद्ध रूप 'शृंगार' को ही लिखा गया है...
इस शब्द विशेष पर मंचपर कई बार सार्थक गंभीर और अत्यंत विषद चर्चाएँ हो चुकी हैं, वर्ण-स्वर संयोजन के नियमों का अवलोकन व तर्क सम्मत विवेचन करने पर, सार स्वरुप निम्नवत statement मंच मान्य / सर्व मान्य है...
//तालव्य श में व्यञ्जन र संयुक्त होता है तो श्र होता है. उससे ऋ संयुक्त होता है तो शृ होता है. शृंगार का शृं तालव्य श में ऋ और मात्रा अं के संयुक्त होने से बनता है. शुद्ध अक्षर शृंगार होता है न कि श्रृंगार........( आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी के शब्दों में) //
इस शब्द विशेष पर आपसे जानना रुचिकर होगा.
खैर ...आदरणीय आप अवश्य ही आश्वस्त हो लें कि इस अभिव्यक्ति में कामचलाऊ वर्तनी का प्रयोग कदापि नहीं किया गया है.
सादर.
संस्कृतनिष्ठता के समीपस्थ शब्द कभी-कभी अत्यन्त आनन्द के स्रोत होते हैं. कारण, अब ये शब्द दुर्लभ प्रजातियों में सम्मिलित होने जा रहे हैं, ऐसा, पता नहीं क्यों, मुझे प्रतीत होता है..... साहित्यिक भाषा एवं शैली की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं ..... अत्यन्त शानदार हिन्दी गीत !!!
पुनश्च, Quillpad शायद 'शृंगार' ही लिख ही लिख पाता है. अधिक से अधिक ‘श्रंगार ‘ लिख देगा .... सतोषजनक यह भी नहीं है .... वैसे विशुद्ध हिन्दी, विशेषतः संस्कृतनिष्ठ शब्दों की मनचाही वर्तनी को Quillpad से निकालना बहुत दुरूह, कभी-कभी तो खिसियाहट भरा कार्य लगने लगता है .... कामचलाऊ वर्तनी का प्रयोग अरुचिकर लगता है ..... अस्तु, बधाई आ०
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