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दोहे : शुभ-नूतन की बाट // -सौरभ

प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार  
सामासिक दृढ़ भाव ले,  आह्लादित संसार  

सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ
मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप  

आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार
स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार   

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप  
*************

-सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2014 at 11:32pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भावनाओं को नत-मस्तक हो कर स्वीकार करता हूँ.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2014 at 11:31pm

भाई श्याम नारायणजी, आपकी टिप्पणी किसी रचना के होने का पैमाना है. आप अपनी उपस्थिति से अनुमोदित कर रचनाओं आ जिस तरह से मान रखते हैं वस्तुतः यह श्लाघनीय है.
शुभ-शुभ

Comment by Satyanarayan Singh on January 1, 2014 at 11:01am
परम आ. सौरभ जी सादर,

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ

नव वर्ष की शुभ कामनाओं सहित इस सुन्दर दोहावली के प्रस्तुति हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय
Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:45am

 

अंतर्मन की गहन सोच को दर्शाते अति सुन्दर दोहे। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 30, 2013 at 10:43pm

आ० सौरभ जी 

बहुत सुन्दर दोहावली प्रस्तुत हुई है.

कथ्य सांद्रता, भावोत्कृष्टता , शब्द चयन सभी बहुत प्रभावी हैं 

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ 
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ 

यह दोहा तो अद्वितीय है..कथ्य के साथ साथ शिल्प के स्तर पर भी 

बहुत बहुत बधाई आदरणीय 

सादर.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 28, 2013 at 10:19pm

आदरणीय सौरभ भाई , जिन शब्दों को दोहे के छोटे छोटे चरणों में रखना मुश्किल होता है उन सभी का प्रयोग बड़ी सहजता से सही जगह फिट करके पूरे दोहे को आपने सरस भावपूर्ण नूतन और शुभ बना दिया, नव वर्ष की तरह । यह आपके ही बस की बात है। मेरी हार्दिक बधाई और नव वर्ष की शुभकामना स्वीकार कीजिये। ... सादर सप्रेम राधे- राधे।

Comment by vandana on December 28, 2013 at 5:40pm

शाश्वत मनस स्वभाव से नूतन नवल स्वरूप 
खेल रही मृदु ओस में खिलखिल करती धूप  

आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार 
स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार   

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ 
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ 

बहुत सुन्दर भाव और आँखों के सम्बन्ध में नूतन अभिव्यक्ति बहुत ही सुन्दर दोहे आदरणीय सौरभ सर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2013 at 8:24pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी रचनायें मील के पत्थर की तरह हमे पूर्णता और अपनी अपूर्णता के बीच की दूरी बताती रहती है ॥ आपके गहरे भाव पूर्ण दोहों के लिये आपको ढेरों बधाइयाँ ॥

आओ मिलजुल तय करें, हमसब निज संसार

स्वीकारें उत्साह पल, जीयें मधुमय प्यार   

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ

इच्छा आशा औ’ व्यथा, भाव-भावना रूप
फिरभी कुहरे में निकल, पुलक किलकती धूप  - तीनो दोहे मुझे , मेरे  बहुत करीब लगे ॥ बधाइयाँ ॥

Comment by Saarthi Baidyanath on December 27, 2013 at 3:27pm

सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ 
मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ ......अहा , क्या शब्द हैं ..

आँखें : उम्मीदें तरल, आँखें : कठिन यथार्थ 
आँखें : संबल कृष्ण-सी, आँखें : मन से पार्थ .....पढ़कर , आनंद आ गया महाशय ! शब्दों का सामर्थ्य, रचना में और बलवती  हो रही है !..बहुत बढ़िया 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2013 at 2:52pm

आदरणीय सौरभ जी

सभी आदरणीयो  के बाद मै क्या कहूं  ? फिर भी ---

सौरभ  से  है वर्ष नव, सौरभ भरा  प्रकर्ष i

सौरभ  से  है हर्ष नव ,सौरभ ही उत्कर्ष ii

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