ग़ज़ल –
फैलुन फैलुन फैलुन फा
२२ २२ २२ २
बारिश के ख़त लाते हैं |
बादल बंद लिफ़ाफ़े हैं |
खेतों में पानी भर दो ,
पौधे भूखे प्यासे हैं |
हमने क्या ग़द्दारी की ,
सारे पेड़ रुआसे हैं |
मौत तुम्हारे आने तक ,
क्या क्या खेल तमाशे हैं |
फूल गुमां करते हो क्यों ,
मौसम आते जाते हैं |
ख़ुशबू तो रह जाती है ,
बेशक हम कुम्हलाते हैं |
कीचड़ से याराना कर ,
फूल कमल कहलाते हैं |
जिनको नींद नहीं आती ,
तारों से बतियाते हैं |
जो सच की खेती करते ,
उनके घर में फाके हैं |
घंटे भर की बारातें ,
अब किसके जनवासे हैं |
चाँद सितारों का सेहरा ,
तेरे ख़ूब सरापे हैं |
* मौलिक अप्रकाशित.
- अभिनव अरुण
[ १५०२२०१४ ]
Comment
आदरणीय!
बेहतरीन.......................लाजवाब.......................रचना ................जीतनी तारीफ की जाय कम..............
आदरणीय भाई अभिनव जी , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकारें .
बारिश के ख़त लाते हैं |
बादल बंद लिफ़ाफ़े हैं |
फूल गुमां करते हो क्यों ,
मौसम आते जाते हैं |
जो सच की खेती करते ,
उनके घर में फाके हैं |//आदरणीय अबिनव जी ग़ज़ल के माध्यम जीवन दर्शन को सुंदर प्रतीकों के माध्यम से चित्रित करने की जो कोशिस की है उसके लिए मेरी तरफ से तहे दिल बधाई ..सादर
अच्छी गज़ल हुई है भाई, ले लो मेरी बधाई।
बारिश के ख़त लाते हैं |
बादल बंद लिफ़ाफ़े हैं |
जो सच की खेती करते ,
उनके घर में फाके हैं |
फूल गुमां करते हो क्यों ,
मौसम आते जाते हैं |
ख़ुशबू तो रह जाती है ,
बेशक हम कुम्हलाते हैं |
बहुत बहुत खूब सर जी बधाई स्वीकारें अच्छी ग़ज़ल के लिए ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कीचड़ से याराना कर ,
फूल कमल कहलाते हैं |
जिनको नींद नहीं आती ,
तारों से बतियाते हैं |
जो सच की खेती करते ,
उनके घर में फाके हैं |//////////वाह वाह बहुत ही प्यारी ग़ज़ल आदरणीय।।। हार्दिक बधाई आपको
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को ........ |
क्या बात ...बहुत सुन्दर .. बधाई आदरणीय
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