For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सत्य पिरो लूँ (नवगीत)......................डॉ० प्राची

अहसासों को

प्रज्ञ तुला पर कब तक तोलूँ

चुप रह जाऊँ

या अन्तः स्वर मुखरित बोलूँ

 

जटिल बहुत है

सत्य निरखना- 

नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,

यद्यपि भावों की भाषा में

स्वर आवृति को खूब पढ़ा है

 

प्रति-ध्वनियों के

गुंजन पर इतराती डोलूँ

 

प्राण पगा स्वर

स्वप्न धुरी पर

नित्य जहाँ अनुभाव प्रखर है

क्षणभंगुरता - सत्य टीसता

सम्मोहन की ठाँव, मगर है

 

भाव भूमि पर

आदि-अंत के तार टटोलूँ

 

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 966

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 10, 2014 at 10:09am

नवगीत सन्निहित भाव कथ्यु आपको पसंद आए..आपकी मूल्यवान सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ आ० नीरज कुमार 'नीर'जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 10, 2014 at 10:08am

नवगीत के भावों को समझने के लिए और सराह कर अनुमोदित करने के लिए धन्यवाद आ० सावित्री राठौर जी 

Comment by Neeraj Neer on March 9, 2014 at 7:48pm

सामजिक वर्जनाओं एवं रूढ़ियों , पाखंडों से आवृत मनोदशा में सत्य निरखना वाकई बहुत मुश्किल है 

जटिल बहुत है

सत्य निरखना- 

नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,

यद्यपि भावों की भाषा में

स्वर आवृति को खूब पढ़ा है.....

और ये :

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ

 

प्रति-ध्वनियों के

गुंजन पर इतराती डोलूँ... सुन्दर सन्देश एवं जीवन भरती पंक्तियाँ ... बहुत सुन्दर एवं उत्कृष्ट रचना .. आपको हार्दिक बधाई आदरणीया .. 

Comment by Savitri Rathore on March 9, 2014 at 12:26am

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ
प्राची जी अत्यंत सुन्दर और मार्मिक भाव.………वास्तव में यदि जीवन को क्षण-क्षण जीने की अदम्य इच्छा हो और जिस रूप में हम उसे जीना चाहते हैं,वह उससे भिन्न हो,तो मन को बहुत कष्ट होता है,उस पर यदि हम उस भिन्न जीवन को जीने के लिए विवश हों तो हृदय गहरी पीड़ा में डूब जाता है और संसार को दिखाने के लिए हम अपने मन पर झूठ का आवरण चढ़ाकर जीवन जीते हैं,पर वास्तव में यह जीवन नहीं है। इस विवशता को शब्दों में पिरोने  हेतु बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 8, 2014 at 2:40pm

नवगीत के भाव पक्ष और शब्द चयन पर आपके सराहनात्मक अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद आ० शिज्जू शकूर जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 8, 2014 at 8:29am

आदरणीया डॉ प्राची जी बहुत खूबसूरत भावों, अप्रतिम शब्दों से सुसज्जित इस रचना के लिये बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2014 at 10:55pm

रचना पर आपकी पाठकीय उपस्थिति और अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० सविता मिश्रा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2014 at 10:51pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी

रचनाओं पर  गंभीरता से आपकी संवेदनशील पाठकीय प्रतिक्रियाएं.... उन कईयों के लिए उदाहरण सदृश होनी चाहियें जो सिर्फ चलताऊ टिप्पणियाँ भर कर जैसे किसी परम्परा का निर्वहन मात्र करते हैं.

वस्तुतः पाठकीय प्रतिक्रियाएं ही किसी रचनाकार के लिए अपने सम्प्रेषण की सफलता और सार्थकता को जान पाने का माध्यम होती हैं, इसलिए एक संवेदनशील पाठक को पूरी ईमानदारी से अपनी प्रतिक्रया देनी चाहिए और यदि वो पाठक रचनाकार भी हो तब तो ये ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है.

इस नवगीत के भावार्थ को छूने का आपने  बहुत सफल प्रयास किया है...जो मेरे लिए आत्मीय संतोष का विषय है.. साथ ही इस अभिव्यक्ति में मुख्यतः उन सत्यों को स्वीकारने की बात है जिसे हमारा अंतर्मन महसूस करता है,किन्तु हम जानते बूझते कई कई कारणों से उन्हें नकारते चले जाते हैं..शायद दो ज़िंदगियाँ जीते हैं हम एक साथ; एक मन ही मन जिसे हम चाह कर भी स्वीकार नहीं करते और दूसरी प्राकट्य रूप में बाहर.

रचना पर समय देने और कथ्य भाव को सराहने के लिए सादर धन्यवाद 

Comment by savitamishra on March 7, 2014 at 8:01pm

बहुत सुन्दर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2014 at 7:33pm

आदरणीया प्राची जी , एक इमानदार मन मे उठने वाले सत्य -असत्य , अच्छा - बुरा के द्वंद को बहुत सुन्दर शब्द दिया है आपने । असत्य के मायाजाल से उब कर,  सत्य की ओर जाने की इच्छा बलवती होती लग रही है ॥ आपको इस सोचने को विवश करती रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥ आदरणीया, अगर निहित भावों को समझने मे गलती किया हूँ तो ज़रूर समझाइयेगा ॥ सादर ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service