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गज़ल - जलते नयन बेतहाशा - इमरान

221 221 22

ठंडी पवन बेतहाशा,
जलते नयन बेतहाशा।

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा।

ज़िन्दा अगर हो तो सुन्न क्यों,
ख़ूने बदन बेतहाशा।

मैला बदन कैसे पहनूँ,
उजला क़फन बेतहाशा।

मौसम चुनावी, मिलेंगे,
झूठे वचन बेतहाशा।

नेता न छोड़ेंगे करने,
भारी गबन बेतहाशा।

माज़ी जिगर का बना है,
कोई वज़न बेतहाशा।

मिलने लगे हैं कुछ अपने,
डाले शिकन बेतहाशा।

देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।

आकर न दें वो गवाही,
भेजे समन बेतहाशा।

उबरे हर इक बार हमने,
झेले पतन बेतहाशा।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by इमरान खान on April 10, 2014 at 4:56am
धन्यवाद श्याम नारायण साहब
Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 9, 2014 at 11:13pm

मौसम चुनावी, मिलेंगे,
झूठे वचन बेतहाशा।

बहुत खूब.... छोटी बह्र में एक शानदार गजल हुई भाई !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2014 at 6:57pm

आदर्नीय इमरान भाई , छोटी बह्र मे लाजवाब ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें !!

इस मिसरे की तक्तीअ पुनः करे के देख लीजियेगा ॥ 

 ज़िन्दा अगर हो तो सुन्न क्यों,

Comment by विजय मिश्र on April 9, 2014 at 4:06pm
सही में ,हर जगह बढ़ी है - गुनाह बेलगाम बेतहाशा | बहुत खूबसूरत पैमाइश |शुक्रिया इमरान भाई |
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2014 at 12:27pm

आदरणीय इमरान भाई , बेहतरीन गजल कही हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 8, 2014 at 12:16pm

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह इमरान भाई जी छोटी बह्र पर शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने'

ठंडी पवन बेतहाशा,
जलते नयन बेतहाशा।--क्या कहने 

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा। ---सच कहा परदेश में जाकर यही भाव उमड़ते हैं बहुत उम्दा शेर 

मिलने लगे हैं कुछ अपने,
डाले शिकन बेतहाशा।----कमाल 

देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।-----यहाँ खन का अर्थ समझ नहीं आया ..क्या कोई उर्दू शब्द है ?

बहुत बढ़िया ग़ज़ल दिली दाद कबूलें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 8, 2014 at 12:25am

मिलने लगे हैं कुछ अपने,
डाले शिकन बेतहाशा

उबरे हर इक बार हमने,
झेले पतन बेतहाशा

बेहतरीन गजल कही आदरणीय इमरान साहब , दिली दाद कुबूल कीजिये

Comment by वेदिका on April 8, 2014 at 12:01am
ठंडी पवन बेतहाशा,
जलते नयन बेतहाशा
सुन्दर प्रयोग बेहतरीन गजल
शुभकामनाएं आ0 इमरान जी
Comment by gumnaam pithoragarhi on April 7, 2014 at 4:30pm

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा।

नेता न छोड़ेंगे करने,
भारी गबन बेतहाशा।

उबरे हर इक बार हमने,
झेले पतन बेतहाशा।

खूब सर जी बहुत खूब ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by coontee mukerji on April 7, 2014 at 3:52pm


देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।....बहुत खूब.

कृपया ध्यान दे...

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