एक गज़ल
वज्न- 122 122 122 12
मेरे दिल को तुझसे वफ़ा चाहिए
न जख्म ए जिगर फिर नया चाहिए
~
है अरसा हुआ मै हूँ अब भी वहीँ
तेरे दिल से निकली सदा चाहिए
~
जो बीमार को कर सके है भला
किसी हाथ में वो शिफ़ा चाहिए
~
ये हैं इन्तेज़ामात तेरे ख़ुदा
है किसने कहा इब्तिला* चाहिए दुःख
~
जो दिल हैं परेशां जफ़ा से यहाँ
महज़ उनके खातिर दुआ चाहिए
~
अजी संगदिल है वो मेरा सनम
नज़र मुझपे कर दे तो क्या चाहिए
~
~वेदिका
[मौलिक/ अप्रकाशित]
Comment
आपकी ग़ज़ल को पढ़ा आदरणीया गीतिकाजी. इस कोशिश के लिए हार्दिक बधाई.
जो दिल हैं परेशां जफ़ा से यहाँ
लिए उनके केवल दुआ चाहिए .... वाह वाह वाह बहुत खूब आदरणीया वेदिका जी … दिलकश अहसासों से लबरेज़ इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
प्रिय गीतिका, ऊपर बह्र लिखने से पढने वालों को व् समीक्षा करने वालों को सहूलियत रहती है|बाकि जो कहना चाहती थी सुधी जां पहले ही कह चुके थोड़े से सुधार से उम्दा ग़ज़ल निखर कर आएगी अंतिम शेर तो कमाल का है ...बहुत बधाई आपको प्रयास रत रहिये शुभकामनाएँ |
अजी संगदिल है वो मेरा सनम
नज़र मुझपे कर दे तो क्या चाहिए
बहुत सुन्दर गजल ,हार्दिक बधाई
आदरनीया वेदिका जी , खूब सूरत ग़ज़ल कही है , आपको मेरी दिली बधाइयाँ ॥ आ. नीलेश भाई जी से सहमत हूँ , बह्र मे भी होते हुये -
लिए उनके केवल दुआ चाहिए - शब्द संयोजन खटक रहा है -- चाहें तो आप ऐसा भी कह सकते हैं -- महज़ उनकी खातिर दुआ चाहिये ॥
अगर कुछ ग़लत कहा हो तो क्षमा करें ॥
bahut badhiya
अजी संगदिल है वो मेरा सनम
नज़र मुझपे कर दे तो क्या चाहिए
वाह क्या बात है आदरणीया वेदिका जी बहुत खूब कहा
वेदिका जी
गजल के साथ ही आखीरी शेर को सलाम i सादर i
बहुत ख़ूब ..सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..
ज़ख्मो जिगर शायद टाइपिंग एरर है ..ज़ख्मे जिगर होगा ..
.
लिए उनके केवल दुआ चाहिए ...इस मिसरे में वाक्य रचना थोड़ी इधर उधर लग रही है ..बाक़ी वरिष्ठ जन जैसा कहें
सादर
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