(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
बेहतरीन लघुकथा,,बधाई आपको,,, |
असर-असर की बात है. लघुकथा में सामाजिक विद्रुपता खूब उभर कर आयी है.
हार्दिक बधाई स्वीकार करें, गणेश भाई
shabd nahi par marmik shabdo me bhawana ke badhaiyan swekaren
आदरणीय बागी जी
बच्चे चैन से सौएँ इसके लिए माँ को सुबह सुबह चिल्लाना पड़ता है और माँ का यह चिल्लाना किसी को जगाता है तो किसी की नीद में खलल डालता है i इसी सामाजिक विद्रूप को आपने शब्दों के बेहतरीन ताने बने मे पिरोया है i आपको मेरी बधाई i
गरीब की भूख , अमीर के नींद के छोटी ..........सच हे समाजवाद का जनाजा ,,,
आपका आभार !
आदरणीय गणेश भैया,
चैन की नींद का अन्तर बहुत सुन्दर ढंग से उभर कर सामने आया है,
सादर.
चैन से सोना ....दोनों के अलग- अलग मायने कितनी खूब सूरती से समझाए हैं आपने इस लघु कथा के माध्यम से वाह्ह्ह...
लघुकथा अपना प्रभाव् छोड़ने में कामयाब है ,बेहतरीन सन्देश देती हुई लघु कथा हेतु आपको हार्दिक बधाई आ० गणेश बागी जी |
बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली .....
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए ..
आदरणीया कल्पना रमानी जी, लघुकथा पर आपका आशीर्वाद पाना मुग्धकारी है, आभार आपका।
आदरणीय गणेश जी बागी जी,
'चैन से सोने' के दो भिन्न परिदृश्य, भिन्न अभिप्राय, भिन्न अर्थशास्त्र, भिन्न संगति-विसंगति और विडम्बना को इस लघु कथा के माध्यम से रेखांकित किया गया है; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
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