हद से अपनी गुजर गया कोई ।
चुपके दिल में उतर गया कोई ।।
आँख में आसमान लाया था
मेरी अंजुरी में भर गया कोई ।।
छोटी बच्ची सा झूल बाहों में
मन की हर पीर हर गया कोई
टूटी छत से उतर के कमरे में
चाँदनी सा पसर गया कोई ।।
डाल पे फूल खिल गया जैसे
स्वप्न जैसे सँवर गया कोई ।।
रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई ।।
सामने वालमीकि के फिर से
क्रौंच पर वार कर गया कोई
बह के आँसू के संग आँखों से
मार के हमको मर गया कोई ।।
.............. सुलभ
मौलिक तथा अप्रकाशित
Comment
रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई ।।
सामने वालमीकि के फिर से
क्रौंच पर वार कर गया कोई
वाह आदरणीय बहुत सुन्दर ग़ज़ल
हद से अपनी गुजर गया कोई ।
चुपके दिल में उतर गया कोई ।।
छोटी बच्ची सा झूल बाहों में
मन की हर पीर हर गया कोई
डाल पे फूल खिल गया जैसे
स्वप्न जैसे सँवर गया कोई ।।
बह के आँसू के संग आँखों से
मार के हमको मर गया कोई ।।.....................waaaaaaaaaah janaab Matla ta maqta behtreen ashaar se saji gazal ke liye dili mubarakbaad
लाजवाब ग़ज़ल, बेहतरीन अश'आर। ढेरो ढेर बधाई आ० सुलभ अग्निहोत्री जी।
रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई ।।
बह के आँसू के संग आँखों से
मार के हमको मर गया कोई ।। दोनों शेर पसंद आए, बहुत—बहुत बधाई आ.सलभ जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया savita mishra जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया Chhaya Shukla जी !
महीने की सर्व श्रेष्ठ रचना के लिए हार्दिक बधाई...
महीने की सर्व श्रेष्ठ रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर नमन !
बेहतरीन गज़ल आदरणीय सुलभ जी दिल से बधाई कबूल फरमाएं सादर -
पसंदीदा शेर -
सामने वालमीकि के फिर से
क्रौंच पर वार कर गया कोई
बह के आँसू के संग आँखों से
मार के हमको मर गया कोई ।। ... :)
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