(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
व्रत जैसे पवित्र काम भी संकल्प मान कर नहीं, बल्कि फैशन और रूतबे के लिए किये जा रहे है | ये अंधी दौड़ कहाँ
तक ले जायेगी कहा नही जा सकता | इस पर गहरा ब्यंग करती सुंदर लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई आ श्री गणेशजी
"बागी" जी
वाह ! लघुकथा में सामाजिक नवीनता का उत्तम तंज , और त्योहारों पर यथार्थवादी पुट से स्निग्ध ...बधाई आपको.
आदरणीय जीतेन्द्र जी, सादर आभार, एक लघुकथाकार से सराहना पाना अच्छा लगा, पुनः आभार।
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी, लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया प्रोत्साहित कर गयी, बहुत बहुत आभार।
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, लघुकथा को अपना आशीष प्रदान करने हेतु आभार।
लघुकथा पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय विनय जी।
सटीक रचना आदरणीय
आज का सच ,लोग रित्यों के लिए नहीं दिखावे और रुतबे के लिए पर्वों को मनाते हैं |
बधाई सर !
भावों की शुभ्रता शुचिता को दरकिनार कर करवाचौथ जैसे नितांत निज अपनत्वपूर्ण पर्व भी आज समाज के एक वर्ग विशेष के लिए रूतबा प्रदर्शन का एक ज़रिया मात्र होते जा रहे हैं... इस बिंदु को बहुत सटीकता और ख़ूबसूरती से आपकी लघुकथा प्रस्तुत कर रही है.
इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आ० गणेश जी
हाँ आज कल के त्योहारों में रुतबे की पर्दर्शनी और दिखावट कुछ ज्यादा ही हो गई है ,बढ़िया कटाक्ष किया है लघु कथा के माध्यम से हार्दिक बधाई आपको आ० गणेश बागी जी |
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