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लघुकथा : श्रेष्ठ कौन ? (गणेश जी बागी)

                     पीतल और ऐलुमिनियम के बर्तनों में वर्चस्व की लड़ाई होने लगी, आखिर तय हुआ कि चाँदी महाराज से निर्णय करवाया जाये कि कौन श्रेष्ठ है । पीतल ने कहा कि उसके बर्तनों में देवों को भोग लगाया जाता है, कुलीनजनों के पास उसका स्थान है जबकि ऐलुमिनियम के बर्तनों में झुग्गी-झोपड़ी के लोग खाते हैं और तो और इसका कटोरा भिखमंगे लेकर घूमते रहते हैं । 
                    ऐलुमिनियम अपने पक्ष में कोई विशेष दलील नहीं दे सका I चाँदी महाराज ने अपने निर्णय में कहा कि पीतल भरे हुए को भरता है जबकि ऐलुमिनियम भूखे को खिलाता है, अत: भूखे को खिलाने वाला हीसदैव श्रेष्ठ होता है ।  
                    यह निर्णय सुनकर एक कोने में पड़ी 'पत्तल' मुस्कुरा उठी ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : दृष्टिकोण

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 13, 2014 at 10:19pm

आदरणीय सुशील सरना जी, उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार।

Comment by Manan Kumar singh on November 13, 2014 at 10:18pm

बागीजी, आपने राज की बात की । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 12, 2014 at 11:18am

पत्तल का मुस्कराना से लगता है अब अच्छे दिन आने वाले है, जब यह लघु कथा और भी सार्थक लगेगी | वाह ! बहुत सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आद श्री गणेश जी "बागी" जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 12, 2014 at 11:04am

वाह! बहुत सुन्दर लघुकथा आदरणीय गणेश बागी जी 

वर्चस्व की लड़ाई में सर्वश्रेष्ठ तो लड़ाई से परे ही रहता है...तभी तो सर्वश्रेष्ठ है ..आखिर उसे ज़रुरत भी क्या?

पत्तल की मुस्कराहट पर निःशब्द हूँ..... बस बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये इस शानदार प्रभावी लघुकथा पर 

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:04pm

आह  ---वाह-----

मैं तो मंत्रमुग्ध हूँ i  यह प्लाट कैसे रचनाकार के मानस में आया ? लघु कथा एक बार फिर विजयि नी हुयी है i  आदरणीय बागी जी आपकी लेखनी स्तुत्य है i यह  कथा लघु- कथा साहित्य में मील का पत्थर साबित होगी ,  इसमें संदेह नहीं है  i ईश्वर आप की लेखनी को और उर्जस्वित करे i  पत्तल का मुस्कराना तो गजब ही  ढा गया i  ऐसी रचनाये बनती नहीं अवतरित होती हैं i आपको कोटिशः बधाई i  आदरणीय बागी जी i

Comment by Chhaya Shukla on November 11, 2014 at 12:23pm

आ. गणेश जी ,
कितनी सहजता से समझा दिया आपने देने वाला श्रेष्ठ है |

"परोपकाराय सतां विभूतयः" को सिद्ध करती सार्थक लघु कथा

नमन आपकी लेखनी को !

सादर

Comment by Mohinder Kumar on November 11, 2014 at 11:37am

आदरणीय गणेश जी,

नीँव के पत्थर को कौन देखता है सभी भव्य इमारत की प्रशंसा करते हैँ.  पत्तल भी शायद नीँव का पत्थर ही है जिसका जिक्र हम लोग भूल जाते हैँ.  सार्थक विषय और भावपूर्ण रचना के लिये बधाई 

 

Comment by khursheed khairadi on November 11, 2014 at 8:59am

आदरणीय बागी साहब ,कमाल कर दिया आपने |प्रतीकों के साथ नैतिक शिक्षा पंचतंत्र से ही भारतीय साहित्य की परिपाटी रही है |आपने उसी परिपाटी का पूर्ण उतरदायित्व के साथ निर्वहन किया है |सादर अभिनन्दन |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 11, 2014 at 8:22am

आपकी यह लघुकथा ,बेमिसाल है आदरणीय बागी जी. एक न्यायोचित सार लेकर खड़ी इस लघुकथा पर आपकी कलम की जादूगिरी का कोई जवाब ही नही. बहुत-बहुत अच्छी लगी मुझे यह लघुकथा. आपको ह्रदय से बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 11, 2014 at 12:22am

जिन सटीक शब्दों में इस मंच के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराजभाईसाहब ने इस लघुकथा पर टिप्पणी की है वो लघुकथा के विन्यास की ओर भी सार्थक इंगित करते हैं. मैं भी उन्हीं शब्दों को संबल बना कर गणेश भाई आपको हार्दिक बधाइयाँ दे रहा हूँ. 

इस लघुकथा में बिम्बों और कथ्य का अत्यंत संयत संतुलन हुआ है. यही इस लघुकथा की खूबसूरती है.

बहुत खूब गणेश भाई.. !!

 

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