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आदरणीया pooja yadav पत्नी के रूप में स्वयं के अस्तित्व की पहचान को सम्बोधित करती सुंदर लघु कथा … हार्दिक बधाई। आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी के कथन से सहमत।
नारी के अस्तित्व पर कब तक प्रश्न चिन्ह लगा रहेगा i पुरुष समाज को सोचना पड़ेगा i आख़िरी सवाद न होता और उससे पहले के सवाद में पर----के साथ एक दो उपयुक्त शब्द गढ़े जाते तो शायद शिल्प और निखरता i शायद तब कथा को समझने में शीर्षक की मदद न लेनी पड़ती i लघु कथा में शिल्प के विशेष अहमियत है i कथा का विषय और प्रस्तुति अच्छी है i
महिलाएं नौकरी सिर्फ पैसे के लिए ही नहीं अपनी एक पहचान बनाने के लिए भी करती हैं पर पुरुषवर्ग को ये बात पचाने में अभी वक़्त लगेगा :-)))))
अच्छी कहानी है बधाई आपको पूजा जी ,पहले से इस बार आपकी काफी सधी हुई लघु कथा आई है
रूढ़ीवादी परिवार का विनय.....सुन्दर प्रस्तुति..
सुंदर लघुकथा ,बधाई
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