2122 2122 2122 212
दिख रही निश्चिंत कितनी है अभी सोयी हुई
गोद में ये खूबसूरत जिन्दगी सोयी हुई
बाँधती आग़ोश में है.. धुंध की भीनी महक
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई
चाँद अलसाया निहारे जा रहा था प्यार से
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई
खेलता था मुक्त.. उच्छृंखल प्रवाही धार से
लौट वो आया लिये क्यों हर नदी सोयी हुई
बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई
अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई
जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई
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--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
///धुंध की सोंधी महक है बाँधती आग़ोश में..
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई – सोया हुआ साथ देने नहीं आता, सोये हुए के पास जाना पड़ता है///
आदरणीय अनुराग जी बात आपकी सही है सोये हुये के पास जाना पड़ता है लेकिन यहाँ ये इच्छा व्यक्त की जा रही है कि जो सहर सोयी हुई है वो बेदार हो और साथ आये सो इस मिसरे में ग़लत कुछ नहीं है।
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१. जी सिज्जू भाई, आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला. पहली बात तो भोर मुज़क्कर है मुआन्नस नहीं. भोर को सोने के अलामत के लिए उपयोग में नहीं लाते. भोर, जागने का प्रतीक है और सार्वभौम सत्य है. आप सुधीजन कह रहे हैं तो “ भोर सोयी रह सकती है”.
///जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा – क्रिया पहले आ गई है
रोज सरयू पार सूरज जा रहा है सर्वदा – जियादा अच्छा लगता///
क्रिया का पहले आना मेरे खयाल से अरूज के अनुसार कोई ऐब नहीं है बल्कि आपने जो मिसरा सुझाया है उसमें अब सदा विरोधाभासी लग रहे हैं सूरज तो पहले से ही सरयू के पार जा रहा है और रोज़ जा रहा है जा रहा है अब सदा यूँ लग रहा है कि सूरज ने सरयू के पार जाना अब शुरू किया। सो ये मिसरा भी दुरूस्त है
२. जी सिज्जू भाई – मिसरा तो दुरुस्त है. लेकिन दोनों मिसरों में रब्त नहीं है.”सूरज तो पहले से ही सरयू के पार जा रहा है और रोज़ जा रहा है जा रहाहै” बिलकुल सही , सार्वभौम सत्य. अब यदि हम कहें कि “ सूरज पूरब में रोज निकलता है और तुम अभी तक सोये हुए” तो कैसा लगेगा. ///स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई—पहले
मिसरे के आधार पर लग रहा है कि बहुत दिनों से सोयी हुई है/// यहाँ ग़लत क्या है ये आप बता नहीं पा रहे हैं अनुराग जी
ये सीखने सिखाने का मंच है अनुराग जी मैं प्रशिक्षु हूँ इसलिये कुछ शंका थी और मैं बीच में आ गया मुआफ़ी चाहूँगा।
३. जी सिज्जू भाई , मैं अरूज़ नहीं जनता .लोगों ने बताया कि गज़ल में सरल वाक्य हो तो रवानी आती है. इसलिए मैं अरूज़ की बात नहीं कर रहा हूँ क्योंकि मैं खुद नहीं जनता. भाषा, कुछ सीखना चाहता हूँ इसीलिए मेरा सवाल था. आप संतुस्ट हैं तो मान लेता हूँ. मैं विज्ञान का विद्यार्थी हूँ. मेरी समझ उसी तरफ खींचती है. मैं दावा नहीं करता कि सही हूँ. माजरत के साथ.
वाह क्या बात है ,,,,,,,,,,,,,खूबसूरत गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई, सादर |
बहुत ही सुंदर गजल कही आपने, आदरणीय सौरभ जी. हर एक शे'र बहुत उम्दा, पढ़कर मन को आनंद की अनुभूति हुई. बहुत -बहुत बधाई सर. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
सादर!
चाँद अलसाया निहारे जा रहा था प्यार से
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई
बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई
अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई
जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई
सुकोमल प्रकृति चित्रण के साथ द्रौपदी वाला शेर .....!!! हरएक शेर अलग २ आयाम लिए हुए ....स्तब्ध करती रचना आदरणीय सौरभ सर
जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई..............kuch spast nahi ho raha hai kriya shabd ......kriya vartman suchak prayukt hui hai pahle misre me jabki ....dusre me ...."..abhi ...soyi hui ho" abhasi kriya ka bodh hota hai .........alpagya hoo.....kuch galat ho to muaf karenge ...saurabh sir ji
///धुंध की सोंधी महक है बाँधती आग़ोश में..
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई – सोया हुआ साथ देने नहीं आता, सोये हुए के पास जाना पड़ता है///
आदरणीय अनुराग जी बात आपकी सही है सोये हुये के पास जाना पड़ता है लेकिन यहाँ ये इच्छा व्यक्त की जा रही है कि जो सहर सोयी हुई है वो बेदार हो और साथ आये सो इस मिसरे में ग़लत कुछ नहीं है।
///जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा – क्रिया पहले आ गई है
रोज सरयू पार सूरज जा रहा है अब सदा – जियादा अच्छा लगता///
क्रिया का पहले आना मेरे खयाल से अरूज के अनुसार कोई ऐब नहीं है बल्कि आपने जो मिसरा सुझाया है उसमें अब सदा विरोधाभासी लग रहे हैं सूरज तो पहले से ही सरयू के पार जा रहा है और रोज़ जा रहा है जा रहा है अब सदा यूँ लग रहा है कि सूरज ने सरयू के पार जाना अब शुरू किया। सो ये मिसरा भी दुरूस्त है
///स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई—पहले
मिसरे के आधार पर लग रहा है कि बहुत दिनों से सोयी हुई है/// यहाँ ग़लत क्या है ये आप बता नहीं पा रहे हैं अनुराग जी
ये सीखने सिखाने का मंच है अनुराग जी मैं प्रशिक्षु हूँ इसलिये कुछ शंका थी और मैं बीच में आ गया मुआफ़ी चाहूँगा।
बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई .....आदरणीय सौरभ पांडे सर आनंद आ गया ,हार्दिक बधाई ! सादर !
आ0 सौरभ जी
हिन्दी ने गजल को स्वीकार कर लिया है i यह बात पुरानी हो चुकी पर सचमुच गजल हिन्दी में हो इसकी तलाश मुझे बहुत दिनों से थी i यह इच्छा आपने पूरी की और क्या खूबसूरत गजल है i मतला और मकता दोनों ही अव्वल i हिन्दी को ऐसी गजलों की आवश्यकता है i सादर i
दिख रही निश्चिंत कितनी है अभी सोयी हुई
गोद में ये खूबसूरत जिन्दगी सोयी हुई ---------------------- क्या बात है !
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