For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - बोलिये किसको सुनायें.. // -- --सौरभ

2122 2122 2122 212

 

दिख रही निश्चिंत कितनी है अभी सोयी हुई  
गोद में ये खूबसूरत जिन्दगी सोयी हुई

बाँधती आग़ोश में है.. धुंध की भीनी महक
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई

चाँद अलसाया निहारे जा रहा था प्यार से
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई

खेलता था मुक्त.. उच्छृंखल प्रवाही धार से
लौट वो आया लिये क्यों हर नदी सोयी हुई

बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई

अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई

जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई
========
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1135

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Prateek on December 27, 2014 at 5:28pm

///धुंध की सोंधी महक है बाँधती आग़ोश में..
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई सोया हुआ साथ देने नहीं आता, सोये हुए के पास जाना पड़ता है///  

आदरणीय अनुराग जी बात आपकी सही है सोये हुये के पास जाना पड़ता है लेकिन यहाँ ये इच्छा व्यक्त की जा रही है कि जो सहर सोयी हुई है वो बेदार हो और साथ आये सो इस मिसरे में ग़लत कुछ नहीं है।

---------------------------***************

१.        जी सिज्जू भाई, आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला.  पहली बात तो भोर मुज़क्कर है मुआन्नस नहीं.  भोर को सोने के अलामत के लिए उपयोग में नहीं लाते. भोर, जागने का प्रतीक है और सार्वभौम सत्य है. आप सुधीजन कह रहे हैं तो “ भोर सोयी रह सकती है”.   

///जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा क्रिया पहले आ गई है

रोज सरयू पार सूरज जा रहा है सर्वदा   जियादा अच्छा लगता///  

क्रिया का पहले आना मेरे खयाल से अरूज के अनुसार कोई ऐब नहीं है बल्कि आपने जो मिसरा सुझाया है उसमें अब सदा विरोधाभासी लग रहे हैं सूरज तो पहले से ही सरयू के पार जा रहा है और रोज़ जा रहा है जा रहा है अब सदा यूँ लग रहा है कि सूरज ने सरयू के पार जाना अब शुरू किया। सो ये मिसरा भी दुरूस्त है

२.        जी सिज्जू भाई – मिसरा तो दुरुस्त है. लेकिन दोनों मिसरों में रब्त नहीं है.”सूरज तो पहले से ही सरयू के पार जा रहा है और रोज़ जा रहा है जा रहाहै”  बिलकुल सही , सार्वभौम सत्य. अब यदि हम कहें कि “ सूरज पूरब में रोज निकलता है और तुम अभी तक  सोये हुए” तो कैसा लगेगा. ///स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुईपहले
मिसरे के आधार पर लग रहा है कि बहुत दिनों से सोयी हुई है///  यहाँ ग़लत क्या है ये आप बता नहीं पा रहे हैं अनुराग जी

ये सीखने सिखाने का मंच है अनुराग जी मैं प्रशिक्षु हूँ इसलिये कुछ शंका थी और मैं बीच में आ गया मुआफ़ी चाहूँगा।

३.      जी सिज्जू भाई , मैं अरूज़ नहीं जनता .लोगों ने बताया कि गज़ल में सरल वाक्य  हो तो रवानी आती है. इसलिए मैं अरूज़ की  बात नहीं कर रहा हूँ क्योंकि मैं खुद नहीं जनता. भाषा, कुछ सीखना  चाहता हूँ इसीलिए मेरा सवाल था. आप संतुस्ट हैं तो मान लेता हूँ. मैं विज्ञान  का विद्यार्थी हूँ. मेरी समझ उसी तरफ खींचती है. मैं दावा नहीं करता कि सही हूँ.  माजरत के साथ.   

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2014 at 2:25pm
वाह क्या बात है ,,,,,,,,,,,,,खूबसूरत गजल के लिए आपको हार्दिक बधाईसादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 27, 2014 at 11:56am

बहुत ही सुंदर गजल कही आपने, आदरणीय सौरभ जी. हर एक शे'र बहुत उम्दा, पढ़कर मन को आनंद की अनुभूति हुई. बहुत -बहुत बधाई सर. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

सादर!

Comment by vandana on December 27, 2014 at 5:26am

चाँद अलसाया निहारे जा रहा था प्यार से 
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोयी हुई 

बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने 
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई 

अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर 
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई 

जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा 
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई

सुकोमल प्रकृति चित्रण के साथ द्रौपदी  वाला शेर  .....!!! हरएक शेर अलग २ आयाम लिए हुए ....स्तब्ध करती रचना आदरणीय सौरभ सर 

Comment by ajay sharma on December 26, 2014 at 10:57pm

जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा 
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई..............kuch spast nahi ho raha hai kriya shabd ......kriya vartman suchak prayukt hui hai pahle misre me jabki ....dusre me  ...."..abhi ...soyi hui ho"   abhasi kriya ka bodh hota hai .........alpagya hoo.....kuch galat ho to muaf karenge ...saurabh sir ji 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2014 at 10:00pm

///धुंध की सोंधी महक है बाँधती आग़ोश में..
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई – सोया हुआ साथ देने नहीं आता, सोये हुए के पास जाना पड़ता है///  

आदरणीय अनुराग जी बात आपकी सही है सोये हुये के पास जाना पड़ता है लेकिन यहाँ ये इच्छा व्यक्त की जा रही है कि जो सहर सोयी हुई है वो बेदार हो और साथ आये सो इस मिसरे में ग़लत कुछ नहीं है।

///जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा – क्रिया पहले आ गई है

रोज सरयू पार सूरज जा रहा है अब सदा – जियादा अच्छा लगता///  

क्रिया का पहले आना मेरे खयाल से अरूज के अनुसार कोई ऐब नहीं है बल्कि आपने जो मिसरा सुझाया है उसमें अब सदा विरोधाभासी लग रहे हैं सूरज तो पहले से ही सरयू के पार जा रहा है और रोज़ जा रहा है जा रहा है अब सदा यूँ लग रहा है कि सूरज ने सरयू के पार जाना अब शुरू किया। सो ये मिसरा भी दुरूस्त है

///स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई—पहले
मिसरे के आधार पर लग रहा है कि बहुत दिनों से सोयी हुई है///  यहाँ ग़लत क्या है ये आप बता नहीं पा रहे हैं अनुराग जी

ये सीखने सिखाने का मंच है अनुराग जी मैं प्रशिक्षु हूँ इसलिये कुछ शंका थी और मैं बीच में आ गया मुआफ़ी चाहूँगा।

Comment by Anurag Prateek on December 26, 2014 at 9:23pm
मान्यवर,
धुंध की सोंधी महक है बाँधती आग़ोश में..
काश फिर से साथ हो वो भोर भी सोयी हुई – सोया हुआ साथ देने नहीं आता, सोये हुए के पास जाना पड़ता है
जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा – क्रिया पहले आ गई है
रोज सरयू पार सूरज जा रहा है अब सदा – जियादा अच्छा लगता
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई—पहले
मिसरे के आधार पर लग रहा है कि बहुत दिनों से सोयी हुई है
बेहतरीन शे’र - बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई

---माज़रत के साथ, सर
Comment by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 5:12pm

बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने 
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई .....आदरणीय सौरभ पांडे सर आनंद आ गया ,हार्दिक बधाई ! सादर !

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 26, 2014 at 11:53am
वाह ! क्या बात है, बहुत सुन्दर भावों से सजी हुयी रचना ,
बोलिये किसको सुनायें जागरण के मायने
पत्थरों के देस में है हर गली सोयी हुई
अब नहीं छिड़ता महाभारत कुटिल की चाल पर
अब लिये पासे स्वयं है द्रौपदी सोयी हुई
जा रहा है रोज सूरज पार सरयू के सदा
स्वर्णमृग की सोनहिरनी हो अभी सोयी हुई॥
हर चाल के ही मायने बदल रहे हैं , बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ पांडे जी, सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2014 at 11:39am

आ0  सौरभ जी 

 हिन्दी ने गजल को स्वीकार कर लिया है i यह बात पुरानी हो चुकी पर सचमुच गजल हिन्दी में हो इसकी तलाश मुझे बहुत  दिनों से थी i यह इच्छा आपने पूरी की  और क्या खूबसूरत गजल है i मतला और मकता  दोनों ही अव्वल i हिन्दी को ऐसी गजलों की आवश्यकता है i सादर  i

दिख रही निश्चिंत कितनी है अभी सोयी हुई  
गोद में ये खूबसूरत जिन्दगी सोयी हुई ---------------------- क्या बात है !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service